अमेरिकी चुनाव: राजनीतिक साजिशों ने और मजबूत किया सैंडर्स का दावा


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अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव की प्रक्रिया भारतीय चुनावों से काफी अलग होती है. इसमें आम चुनाव से पहले प्रबल दावेदारों को प्राथमिक चुनाव में हिस्सा लेना होता है जिसके जरिए उनकी लोकप्रियता का अंदाजा लगाया जाता है और पार्टी को आपने सबसे मजबूत उम्मीदवारों का पता चलता है. यह प्राथमिक चुनाव दो तरीकों से होता है, एक कॉकस और दूसरा प्राइमेरी.

कॉकस उम्मीदवारों के चयन का एक पारंपरिक तरीका है जिसकी जड़ें 18वीं सदी के बॉस्टन में पाई जा सकती हैं जहां कॉकस क्लब नाम का समूह राजनीति पर सार्वजनिक चर्चा और लोक कार्यालयों के चुनाव कराया करता था. कॉकस के जरिए राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के उम्मीदवारों का नामांकन वर्ष 1796 से 1824 तक चला. 1831 के बाद, नैशनल कनवेन्शन ने कॉकस की जगह ले ली और 2016 के चुनाव बाद 10 कॉकस राज्यों ने प्राथमिक चुनावी तरीका अपना लिया. इस वर्ष सिर्फ आयोवा, नवाडा, नॉर्थ डकोटा, वायोमिंग और कुछ चुनिंदा क्षेत्र ही कॉकस करवाएंगे.

कॉकस और प्राथमिक के बीच मूल अंतर यह है कि कॉकस का आयोजन राजनीतिक पार्टीयां करवाती हैं और प्राथमिक राज्य सरकार द्वारा किया जाता है. किसी भी कॉकस के दौरान, राज्य में उस पार्टी के समर्थक सार्वजनिक स्थलों (जिन्हें प्रिसिंक्ट कहा जाता है) पर जमा होकर प्रतिनिधियों का चयन करते हैं जो उनका नैशनल कनवेन्शन में प्रतिनिधित्व करेंगे. यह प्रक्रिया घंटों तक जारी रहती है जिस दौरान लोग अपने पसंदीदा उम्मीदवार के समर्थन में अलग-अलग गुटों में बंट जाते हैं जहां उम्मीदवार अपने विचार और योजनाओं पर चर्चा करते हैं और उनके समर्थक एक दूसरे को यह विश्वास दिलाने में जुट जाते हैं कि आखिर उनका उम्मीदवार सबसे बेहतर क्यों है. कॉकस दो तरीकों से किया जा सकता है, एक गुप्त मतदान, दूसरा अपने चुने उम्मीदवार का उस सार्वजनिक स्थल पर खुल्ला समर्थन. डैमोक्रेटिक पार्टी का कॉकस खुल्ले मतदान के तहत होता है और रिपब्लिक पार्टी का कॉकस गुप्त मतदान के जरिए.

कॉकस के अंदर ‘वायबिलिटी’ और प्रतिनिधित्व को समझना बेहद जरूरी है. वायबल करार किए जाने के लिए उम्मीदवार के लिए 15 प्रतिशत मत हासिल करना अनिवार्य है जिसके बाद उम्मीदवार प्रतिनिधियों के लिए मुकाबला करते हैं. हालांकि कुछ राज्यों में अनिवार्य प्रतिशतता ज्यादा है. यही प्रतिनिधि नैश्नल कनवेन्शन में उनका प्रतिनिधित्व करते हैं.

आयोवा कॉकस अमूमन जनवरी या फरवरी को प्राथमिक चुनाव की दौड़ का आगाज करता है और इसका बड़ा असर देश के दूसरे हिस्सों में नजर आता है. यह आने वाले चुनावों में लोगों के राजनीतिक झुकाव में काफी हद तक निर्णायक साबित होता है.

जॉर्ज मेकगवर्न, जो कि 1972 में डेमोक्रैटिक प्रत्याशी थे, ने आयोवा कि अहमियत के बारे में कहा था, ‘आयोवा बेहद ही महत्वपूर्ण है. यह देश में हमारी पहली परीक्षा होती है.’ आयोवा में एक उम्मीदवार को मिलने वाले समर्थन का स्तर इस बात का एक संकेत देता है कि वो बाकी अमेरिकी मतदाताओं के साथ कैसा प्रदर्शन करेंगे. 2008 में बराक ओबामा को प्राइमेरीस की तुलना में कॉकस में ज्यादा कामयाबी हासिल हुई थी जो कि कॉकस की अहमियत दर्शाता है.

प्राइमेरी का आयोजन राज्य करता है, न कि राजनीतिक पार्टीयां. यह एक सामान्य चुनावी प्रक्रिया जैसा ही होता है जिसमें मतदाता अपनी पसंद के उम्मीदवार के लिए अपना मत डालने जाते हैं. यह भी अलग-अलग तरीकों से करवाया जा सकता है जैसे ओपन बैलेट या क्लोस्ड बैलेट. ओपन बैलेट के ज़रिए पंजीकृत मतदाता किसी भी पार्टी के उम्मीदवार के पक्ष में अपना मत डाल सकते हैं लेकिन क्लोस्ड बैलेट में मतदाताओं को किसी पार्टी विशेष के साथ पंजीकृत होना अनिवार्य है और वह केवल उस पार्टी के उम्मीदवार को ही मत डाल सकते हैं.

बीते वर्षों में कॉकस को लेकर कई सवाल खड़े किए गए. बहुत लोगों का मानना है कि इस प्रक्रिया में मौजूद प्रतिनिधित्व का पहलू अलोकतांत्रिक है. 2016 में एपी-एनओआरसी सेंटर द्वारा की गई पोल में यह पाया गया कि 81 प्रतिशत अमेरिकी प्राइमेरी को ज्यादा निष्पक्ष और लोकतांत्रिक मानते हैं. सिर्फ 17 प्रतिशत लोगों ने कॉकस को अपना पसंदीदा तरीका माना.

सुपर ट्यूज्डे- मंगलवार का दिन अमेरिका में चुनावों का पारंपरिक दिन होता है. सुपर ट्यूज्डे वो एक या दो चुनावी दिन होते हैं जब सबसे ज्यादा अमेरिकी राज्य प्राइमेरी चुनाव और कॉकसिस करवाते हैं. इस वर्ष का सुपर ट्यूज्डे मार्च तीन को है जिसमें 16 राज्य मतदान करेंगे. तीन फरवरी और छह जून के बीच 57 प्राइमेरी और कॉकस आयोजित किए जाएंगे जिनके नतीजे उम्मीदवारों के प्रतिनिधियों की संख्या तय करेंगे.

आयोवा के नतीजों की घोषणा में खासा देरी हुई है. गौरतलब है कि पीट बूटिजिज ने नतीजों से पहले ही खुद को विजेता करार कर दिया था. यह बात और भी दिलचस्प हो जाती है जब मतों की गिनती के दौरान पीट वाकई सबसे आगे चलते नजर आए. 38 वर्षीय डेमोक्रैटिक दावेदार पीट दो बार साऊथ बेंड, इन्डियाना के मेयर रह चुके हैं, उन्होंने अफगानिस्तान में सात महीने के लिए अमेरिकी खुफिया अधिकारी के तौर पर भी काम किया है.

अगर वो राष्ट्रपति बनने में कामयाब होते हैं तो वो पहले ऐसे अमेरिकी राष्ट्रपति होंगे जो खुल्ले तौर पर समलैंगिक हैं. वो सैंडर्स की तरह सबके लिए चिकित्सा, जलवायु परिवर्तन, शिक्षा को सस्ता करने की बात तो करते हैं पर यह उनके प्राथमिक मुद्दे नहीं हैं. उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण है अपनेपन की भावना, उनका मानना है कि अमेरिका में सबको एक घर का एहसास होना चाहिए और इसके चलते वो मासिक स्वास्थ्य, अफीम संकट और बढ़ती खुदकुशी की संख्या जैसे मुद्दों पर बात करते हैं. उनके अनुसार आज की तारीख में चुनाव प्रचार का सबसे महत्वपूर्ण पहलु यह है कि हम क्या पैगाम भेज रहे हैं, जिस दौर में नफरत और कुछ विशेष समूहों को हाशिए पर डालने की राजनीति हो रही है क्या हम सबको साथ लेकर चलने का पैगाम भेज रहे हैं. वह कहते हैं कि एक समलैंगिक व्यक्ति होने के कारण वो इन सारे मुद्दों को समझते हैं और इस दर्द को महसूस करते हैं.

नतीजों की घोषणा के बाद पीट सिर्फ 0.1 प्रतिशत सैंडर्स से आगे हैं और उन्हें विजेता घोषित कर दिया गया है. जहां पीट को 26.2 प्रतिशत मत मिले हैं और सैंडर्स को 26.1 प्रतिशत और दोनों ही उम्मीदवारों को 11-11 प्रतिनिधि हासिल हैं. डेमोक्रैटिक पार्टी के मुताबिक आयोवा के नतीजों की घोषणा में देरी तकनीकी खराबियों के कारण हुई है लेकिन लोग इस दावे पर कुछ खास भरोसा नहीं कर रहे हैं. बीते दिनों में मतदाताओं में मायूसी और डेमोक्रैटिक पार्टी के खिलाफ काफी गुस्सा नजर आ रहा है. अभी तक के नतीजों की विश्ववसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं और ट्विटर पर हर तरफ से पार्टी का विरोध हो रहा है, एक तरफ मतदाताओं का आक्रोश है तो दूसरी तरफ रिपब्लिकन पार्टी के लोग तंज कसने और खिल्ली उड़ाने में पीछे नहीं हट रहे हैं.

ज्यादातर लोगों का मानना यही है कि डेमोक्रैटिक पार्टी ने सैंडर्स को रोकने के लिए नतीजों में गड़बड़ी की है. यह इस बात में भी जाहिर है कि जिन इलाकों में सैंडर्स को एकतरफा समर्थन हैं वहां के मतदान की गिनती आखिर में करवाई गई जिससे उन्हें न्यू हैम्पशायर पोल्स में नुकसान और पीट को फायदा हुआ है. यह न सिर्फ ट्रंप को आने वाले चुनावों में जीत थाल में परोसने का काम है बल्कि डेमोक्रैटिक पार्टी का पतन है क्योंकि आज उन्होंने अपने रिवायती और मूल समर्थकों का विश्वास खो दिया है.

वहीं सैंडर्स पूरी शिद्दत से जुटे हुए हैं और मैंचेस्टर, न्यू हैम्पशायर में उन्होंने खुद को विजेता घोषित कर दिया है क्योंकि उन्हें 6000 मत ज्यादा हासिल हैं, वो मतों की दोबारा गिनती करवाने के भी समर्थन में हैं.

सैंडर्स और उनके समर्थकों का चुनावी जोश बरकरार है और उनके साथ हो रहे ये राजनीतिक साजिशें उन्हें और भी मजबूती के साथ चुनौतियों का सामना करने को प्रेरित कर रही हैं. सुपर ट्यूज्डे को लेकर तो अटकलें लगाई ही जा रही हैं और राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो सैंडर्स को इस मतों के साथ छेड़खानी से सुपर ट्यूज्डे में फायदा ही मिलेगा.


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