मध्य प्रदेश डायरी: अजय सिंह को ‘अपनों’ की चुनौती


Political situation in Sidhi constituency of Madhya Pradesh

 

हम अकसर जुमला उछालते हैं कि हमें तो अपनों ने लूटा गैरों में कहा दम था. मध्य प्रदेश के कद्दावर नेता और पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह इस बार के आम चुनाव में कुछ ऐसी ही स्थिति में उलझे हैं. वे विंध्‍य क्षेत्र में अपने पिता अर्जुन सिंह की राजनीतिक विरासत को संभाल रहे हैं. चुरहट अर्जुन सिंह का अपना क्षेत्र रहा है और नवंबर में हुए विधानसभा चुनाव में अजय सिंह इस सीट से चुनाव हार गए थे.

अब वे सीधी सीट से लोकसभा जाने की तैयारी में हैं. यहां उन्‍हें जातीय समीकरण का लाभ तभी मिलेगा जब कांग्रेस की गुटबाजी से पार पाकर वे संतुलन पैदा कर पाएं, नहीं तो अतीत की तरह उनके खाते में एक पराजय और दर्ज होगी.

मध्य प्रदेश की सीधी लोकसभा सीट राज्य की अहम लोकसभा सीटों में से एक है. यह एक ऐसी सीट रही है जिसपर कभी किसी एक पार्टी का दबदबा नहीं रहा है. यहां पर बीजेपी और कांग्रेस दोनों के बीच बराबरी का मुकाबला रहा है. बीजेपी यहां पर पिछले दो चुनाव जीतने में सफल रही है.  2019 का चुनाव जीतकर उसकी नजर यहां पर हैट्रिक लगाने की होगी तो कांग्रेस यहां पर वापसी करने की आस में है.

कांग्रेस प्रत्‍याशी अजय सिंह ने 2014 का चुनाव सतना से लड़ा था तब वे बीजेपी के गणेश सिंह से मात्र 8 हजार 688 मतों से पराजित हुए थे. विश्‍लेषण बताते हैं कि 2014 में अपने ही गढ़ में अजय सिंह को मोदी लहर के कारण छोटे से अंतर से हार हाथ लगी थी. लेकिन, इस हार में उन साथी विधायकों का भी योगदान था जो चुनाव के ठीक पहले सिंह का साथ छोड़ कर बीजेपी में चले गए थे.

क्षेत्र के मतदाताओं को याद है कि चुनाव प्रचार अभियान के खत्म होने के एक दिन पहले तक कांग्रेस विधायक नारायण त्रिपाठी कांग्रेस की प्रचार रैली में शामिल थे लेकिन प्रचार समाप्त होने के ठीक पहले अंतिम चुनावी सभा में विधायक त्रिपाठी तत्‍कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मंच पर जा पहुंचे और बीजेपी का दामन थाम लिया.

इसके बाद 2018 के विधानसभा चुनाव में अजय सिंह को उनके गढ़ चुरहट में ही शिकस्‍त मिली थी. इस शिकस्‍त में मां सरोज सिंह और बहन वीणा सिंह के साथ हुई कानूनी लड़ाई का भी योगदान था. इस बार सिंह को अपने मामा डॉ. राजेन्‍द्र सिंह को भी अपने साथ लाने के लिए मशक्‍कत करनी होगी. असल में, विधानसभा के पूर्व उपाध्‍यक्ष राजेन्‍द्र सिंह भी लोकसभा का टिकट मांग रहे थे मगर उन्‍हें टिकट नहीं मिला.

प्रचार अभियान शुरू कर चुके राजेंद्र सिंह टिकट न मिलने से निराश हैं. अजय सिंह को उन्‍हें भी अपने साथ लाना होगा. सीधी लोकसभा क्षेत्र में 2009 और 2014 में बीजेपी सफल रही. लेकिन इस बार चुनाव में सीधी की सांसद रीति पाठक का बीजेपी में ही विरोध हो रहा है. 2009 में जीतने वाले बीजेपी के पूर्व सांसद गोविंद मिश्र ने बीजेपी छोड़ दी है. वे रीति पाठक के विरोध में आ खड़े हुए हैं.

रीति पाठक को टिकट देने का विरोध करते हुए सिंगरौली के जिलाध्यक्ष कांतिदेव सिंह ने पद से इस्तीफा दे दिया था. बीजेपी का दावा है कि वे मान गये हैं, लेकिन चुनाव में उनकी क्या भूमिका सीधी के बीजेपी जिलाध्यक्ष राजेंद्र मिश्रा और चार बार के विधायक ब्राह्मण नेता केदार शुक्ल भी पाठक को टिकट मिलने से खुश नहीं हैं.

ब्राह्मण वोटों को साधने के लिए सीधी क्षेत्र में अजय सिंह की चुनाव सभाओं में क्षेत्र के कद्दावर ब्राह्मण नेता रहे स्वर्गीय श्रीनिवास तिवारी के चित्र मंच पर लगाए जा रहे हैं. श्रीनिवास तिवारी के बेटे दिवंगत सुंदरलाल तिवारी से अजय सिंह के रिश्ते पिछले कुछ समय में अच्छे हो गए थे. सुंदर लाल तिवारी की मृत्‍यु के बाद कांग्रेस ने उनके बेटे सिद्धार्थ तिवारी को रीवा से टिकट दिया है. अजय सिंह रीवा में सिद्धार्थ को ठाकुर वोट दिलवाने में सहायता कर सकते हैं तो सीधी में तिवारी के साथ होने से अजय सिंह को ब्राह्मण वोटों का लाभ मिल सकता है.

दूसरी तरफ, कांग्रेस प्रत्‍याशी अजय सिंह को ठाकुर वोटों के साथ पटेल वोटों को साधने की जरूरत है. सीधी लोकसभा क्षेत्र के सिहावल विधानसभा से विजयी कांग्रेस के इकलौते विधायक कमलेश्‍वर पटेल की पिछड़े वर्ग के मतदाताओं पर मजबूत पकड़ है. उनकी सक्रियता अजय सिंह की राह आसान कर सकती है.


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