पोस्ट कार्ड वॉर से डाक विभाग को लगेगी चपत!


Postal Department will look at Post Card War

 

भारतीय जनता पार्टी और तृणमूल कांग्रेस पार्टी के बीच सियासी जंग जारी है. ये लड़ाई तमाम मोर्चों पर लड़ी जा रही है. लेकिन अब ये दोनों पार्टियां इस लड़ाई में पोस्ट कार्ड को हथियार बना रही हैं. दरअसल पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ‘जय श्री राम’ के नारे को लेकर बेहद संजीदा है. बीजेपी इस बात को बखूबी समझ गई है. इसलिए अब ममता बनर्जी को 10 लाख पोस्ट कार्ड पर ‘जय श्री राम’ का नारा लिखकर ममता बनर्जी को भेज रही है.

वहीं ममता बनर्जी ने भी ‘जय श्री राम’ के नारे सामने ‘जय हिंद, जय बांग्ला’ का नारा दिया. और तय किया कि वो बीजेपी के 10 लाख पोस्ट कार्ड का जवाब 20 लाख पोस्ट कार्ड पर ‘जय हिंद, जय बांग्ला’ लिखकर देगी.

लेकिन राजनीतिक लड़ाई में इससे पहले कभी पोस्ट कार्ड या किसी ऐसे माध्यम का इस्तेमाल नहीं हुआ जो आम या ग़रीब लोगों के लिए हों. कुल मिलाकर दोनों ही पार्टियां एक दूसरे को 30 लाख पोस्ट कार्ड भेजेगी. पहली नज़र में लगता है कि इससे तो डाक विभाग की पोस्ट कार्ड की बिक्री एक दम से बढ़ जाएगी. लेकिन असलियत इससे बेहद जुदा है. असल में इस राजनीतिक नूरा कुश्ती से डाक विभाग को करोड़ों की चपत लगने वाली है.

भारतीय डाक पर तमाम रिपोर्ट और किताब लिख चुके वरिष्ठ पत्रकार अरविंद कुमार सिंह बताते हैं कि, “पोस्ट कार्ड जब अंग्रेजी राज में आया तब भी इसका मक़सद आम और ग़रीब आदमी को संचार का सबसे ताक़तवर और सस्ता साधन मिल सके. आज़ादी के बाद भी ग़ौर करें तो पोस्ट कार्ड के दाम बहुत कम ही बढ़े हैं. आज भी पोस्ट कार्ड का दाम 50 पैसे है जो कि 1 जून 2001 से है जबकि उसकी लाग़त 12 रुपये से ज्यादा है. एक पोस्ट कार्ड पर 11.50 रुपये से ज्यादा का घाटा उठाया जा रहा है क्योंकि ग़रीब आदमी से जुड़ा हुआ है.”

अरविंद कुमार सिंह ये भी बताते हैं कि2009-10 के बाद पोस्ट कार्ड का इस्तेमाल बहुत कम हुआ है. इसे गरीबों को संचार लाठी कहा जाता रहा है.

डाक विभाग को लगेगी चपत!

पोस्ट कार्ड का चलन ही इसलिए शुरू किया गया था ताकि गरीब जनता अपने संदेशों को सस्ते दर पर भेज सकें. इसलिए इसकी क़ीमत लागत से कई गुना कम रखी गई. आपको जानकर हैरानी हो सकती है कि जो पोस्ट कार्ड 50 पैसे का बिकता है असल में उसकी लाग़त 12 रुपये 16 पैसे आती है. यानी एक पोस्ट कार्ड की बिक्री पर डाक विभाग को 11 रुपये 66 पैसे का नुकसान होता है.

यानी एक पोस्ट कार्ड पर भारतीय डाक विभाग को 11 रुपये 66 पैसे का नुक़सान होता है ऐसे में जब बीजेपी और टीएमसी एक दूसरे को 30 लाख पोस्ट कार्ड भेज रही हैं तो 50 पैसे के एक पोस्ट कार्ड के हिसाब से डाक विभाग को 34 करोड़ 9 लाख रुपये से ज्यादा का नुकसान होने का अनुमान है.

पोस्ट कार्ड की राजनीति

राजनीतिक लड़ाई में पोस्ट कार्ड का ऐसा इस्तेमाल पहली बार है. अरविंद कुमार सिंह बताते हैं, “राजनीति तौर पर अब तक सांसद या विधायक अपने क्षेत्र के लोगों को पोस्ट कार्ड के माध्यम से चिट्ठियां लिखते रहते थे. लेखक, पत्रकार और किसी खास सामाजिक अभियान के तौर पर भी इसका इस्तेमाल किया जाता रहा है. लेकिन मैंने कभी नहीं सुना कि पोस्ट कार्ड का इस्तेमाल राजनीति प्रयोजन के तौर पर हुआ हो. ये शायद पहली बार है जब राजनीति के लिए इसका इस्तेमाल हो रहा है. यह एक ठीक परंपरा नहीं है.”

दरअसल पोस्ट कार्ड पर इतना नुकसान डाक विभाग इसलिए उठाता है कि गरीब लोगों के लिए उसकी सेवाएं दी जा सकें. लेकिन राजनीतिक हथियार के तौर पर इसका इस्तेमाल पोस्ट कार्ड के उद्देश्य को ही ख़त्म कर दे रहा है.

पोस्ट कार्ड का इतिहास

दुनिया में पहला पोस्ट कार्ड अक्टूबर 1869 में ऑस्ट्रिया में जारी किया गया था. पोस्ट कार्ड का डिजाइन बनाने का श्रेय वियना के सैन्य संस्थान के डॉक्टर एमैनुएल हरमैन को जाता है. पोस्टकार्ड की पहली प्रति एक अक्टूबर 1869 में जारी की गई. यहीं से पोस्टकार्ड के सफर की शुरुआत हुई. ब्रिटेन मे पोस्टकार्ड 1870 में शुरू किया गया.

पहला पोस्ट कार्ड पीले रंग का था. भारत का पहला पोस्ट कार्ड साल 1879 में जारी किया गया. देश के पहले पोस्टकार्ड की कीमत तीन पाई रखी गई थी और ये हल्के भूरे रंग का था. इस कार्ड पर ‘ईस्ट इण्डिया पोस्ट कार्ड’ छपा था. अगले साल भारत में पोस्ट कार्ड के चलन के 150 साल पूरे होंगे.

भारतीय डाक विभाग वित्त वर्ष 2018-19 में कुल 15,000 करोड़ रुपये का घाटा हुआ है. पिछले तीन वित्त वर्ष में इंडिया पोस्ट के घाटे में 150 फीसदी की बढ़त हुई है. अब यह सबसे ज़्यादा घाटे वाली सरकारी कंपनी हो गई है.

आखिर में ये सवाल बेहद जरूरी हो जाता है कि राजनीतिक संघर्ष के लिए आम आदमी के लिए दी जा रही सेवाओं का इस्तेमाल करना आखिर कितना सही है. और इस पोस्ट कार्ड की लड़ाई से डाक विभाग को जो नुकसान होगा उसकी भरपाई कौन करेगा और कैसे होगी.


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