कश्मीर मामले में राष्ट्रपति के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती


we are not a trial court can not assume jurisdiction for every flare up in country

 

पेशे से वकील शाकिर शबीर ने राष्ट्रपति के पांच अगस्त के उस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है जिसमें अनुच्छेद 367 में बदलाव की मंजूरी दी गई थी. जिसके बाद संविधान के अनुच्छेद 370 में संशोधन का मार्च प्रशस्त हो गया.  संशोधन के बाद राज्य में भारत का संविधान पूरी तरह से लागू हो गया है.

द लिफ्लेट में छपी खबर के मुताबिक कश्मीर में वकालत करने वाले शबीर ने याचिका में केन्द्र सरकार की ओर से लिए गए फैसले को जल्दबाजी और संवैधानिक प्रक्रिया की गैरमौजूदगी में लिया गया निर्णय बताया है.

शबीर ने संविधान के द्वारा निर्धारित कानूनों का पालन नहीं करने का आरोप लगाते हुए कहा कि जम्मू-कश्मीर और वहां के चुने हुए प्रतिनिधियों को विश्वास में लिए बगैर राष्ट्रपति की ओर से जल्दबाजी और मनमाने तरीके से आदेश जारी हुआ है.

याचिकाकर्ता शबीर ने कहा कि प्रतिवादी (भारत सरकार) की ओर से पीछे के दरवाजे से संवैधानिक आदेश जारी करने से जम्मू और कश्मीर के लाखों बशिंदों का जीवन खतरे में पड़ गया है.

शबीर का दावा है कि काउंसिल और मिनिस्टर्स से सलाह लिए बिना जम्मू और कश्मीर के राज्यपाल ने अपनी शक्तियों का दुरूपयोग किया है.

उन्होंने कहा कि राज्य की विधान सभा से परामर्श के बिना निर्णय लिया गया है.

उन्होंने कहा कि क्षेत्र के लोगों को उनके घरों में जबरदस्ती कैद में रखा गया है और पूरा राज्य किले में तब्दील हो गया है.

प्रतिवादियों के द्वारा गैरकानूनी और जल्दबाजी में लिए गए फैसले की वजह से लोकतांत्रिक देश के आधारभूत मूल्यों को खत्म किया गया है.

संविधान विशेषज्ञ एजी नूरानी ने बीबीसी को बताया कि, “ये एक ग़ैर-क़ानूनी और असंवैधानिक फ़ैसला है. अनुच्छेद 370 का मामला बिल्कुल साफ़ है. उसे कोई ख़त्म कर ही नहीं सकता है. वो केवल जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा के ज़रिए ख़त्म की जा सकती है लेकिन राज्य की संविधान सभा तो 1956 में ही भंग कर दी गई थी. अब मोदी सरकार उसे तोड़-मरोड़ कर ख़त्म करने की कोशिश कर रही है.”


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