खामोश! देश ‘जोसेफ गोएबेल्स’ के हवाले है


Prime Minister Narendra Modi clean chit in one more case of code of conduct

 

हमें नाज़ है अपने प्रधानमंत्री पर जिन्होंने हमें हमारा ‘जोसेफ गोएबेल्स’ लौटा दिया. हाँ जनाब, वही जोसेफ गोएबेल्स, महान नाज़ी जर्मन के महान हिटलर का एक वफादार सिपहसलार. जिसके कंधे पर यह जिम्मेदारी थी कि चांसलर की तारीफ अवाम से इस अंदाज़ में कराए की सब झूम-झूम उठे. लाजिम हैं की उनके साथ जर्मनी की मीडिया, कलाकार, संगीतकार जैसी तमाम दूसरे तबके भी साथ थे.

आखिर मुल्क पर कम्युनिस्ट, यहूदी और उदारवादियो का काला साया जो मंडरा रहा था. कहिए कि देश इनकी वजह से खतरे में था. तो साहब कला के तमाम माध्यम और रचनात्मकता की जवाबदेही बनती थी कि वो नाज़ी मुल्क की खातिर एक हो जाए. उन ताकतों को ढाह दे जो अमन और इंसाफ की आड़ में जुबान लड़ाती हो. इससे यह जरूरी बन पड़ा कि वे हिटलर के प्रौपेगंडा मिनिस्टर जोसेफ गोएबेल्स की सरपरस्ती में गोलबंद हो जाए. अवाम को यह सीख दे कि, नस्ल की हिफाजत के लिए बाहरी ताकतों से लड़ना और उन्हें मार भागना किस कदर जरूरी है.

खैर…हम अपने अज़ीज़ प्रधानमंत्री की बात कर रहे थे. भारत देश के जन-गण-मन को उनका शुक्रगुजार होना चाहिए. आखिर उन्होंने बरसों से कब्र में दफ़न जोसेफ गोएबेल्स को फिर से ज़िन्दगी की एक नई रौशनी दी है.

जनाब अब किसी की हिमाक़त नहीं होगी कि मुल्क के निज़ाम पर उंगली उठा सके. ख़ुशी मनाइए के अब तमाम कलाकार और मीडिया हमारी हुकुमत के साथ है. और होनी भी चाहिए. आखिर सरकारें होती क्यों हैं. और जो नहीं हैं उन्हें भी ठिकाने लगा दिया जाएगा. एक-दो बच भी गए तो उनकी भी कोई लम्बी उम्र नहीं होगी. उन्हें ठीक वैसे ही निकाल बाहर कर दिया जाएगा जैसे जर्मन मीडिया से यहूदिओं और गैर-नाजियों को किया गया था.

उनके लिखे को वैसे ही मिटा दिया जाएगा जैसा एमिल जोला, थॉमस मान, हेनरिक मान, फ्रायड, एचजी वेल्स, मार्सेल प्रुस्त, जैक लंडन के साथ किया गया था. उन गिरोहों का पर्दाफाश कर ख़ाक में मिला दिया जाएगा जो देश की महान सरकार के लिए बेहतर भावना की जगह तर्क-कुतर्क का पहाड़ लिए फिरते हैं.

एक मुद्दत का इंतजार सही, फख्र करने लायक कोई घड़ी तो आई है. और कुछ नाकारा लोग हैं कि सर धुनें जा रहे हैं. मैं उन तमाम निराशावादियों को ख़बरदार करता हूँ. आह! उनकी मजाल देखिए की वे इस देश को गर्त में धकेलने के लिए हमारे वजीर-ए-आजम के खिलाफ साजिश में मुब्तिला हैं.

जनाब वजीर-ए-आजम ने इस देश का बहुत भला किया है. लेकिन उन्हें इससे कोई संतुष्टि अब तक नहीं मिली है. उनकी फिक्र में अभी मुल्क को बहुत कुछ करना है. अवाम के लिए उनके जेहन में नामालूम कितनी प्लानिंग है. और देखिए एन वक़्त पर इलेक्शन भी आ पड़ा.

लिहाजा उन्होंने तमाम हल्कों से गुजारिश की हैं कि वो जनता तक अपने पैगाम के साथ जाए. उन्हें लोकतंत्र और हक़ की सीख दे. यह भी समझाए की वोटिंग अधिकार क्या होते हैं. और उनका इस्तेमाल क्यों जरूरी है. उन्होंने इस पूरे मामले को लेकर खास जिम्मेदारी मीडिया वालों को दी है. उन मीडिया घरानों को जो देश की भलाई के लिए हमारे वजीर-ए-आज़म से वफ़ादारी रखते हैं. बेवजह कोई सवाल नहीं करते ताकि सरकार का उनके बेहद जरूरी कामों से एक लम्हा भी जाया न हो. और हिमाक़त देखिए की ऐसे नेक नीयत मीडिया वालों पर ‘गोदी मीडिया’ ‘बिकाऊ मीडिया’ जैसे लांछन लगाए गए हैं. इनमें उन मीडिया का बड़ा हाथ है जो बेवजह सरकार पर घात लगाए रहते हैं.

ओह! सबसे अहम बात तो मैं भूल ही गया. हमारे वजीरे-ए-आज़म ने बड़े मीडिया घरानों से एक बेहतर माहौल बनाने के लिए ख़ास गुजारिश की है. हाँ ज़ाहिर तौर पर उन पर अपने पक्ष में बयार चलाने की जिम्मेदारी भी सौंपी है. जनता को मोबिलाइज करने का पूरा का पूरा ठेका दे दिया है. यह प्रयोगशाला में गुजर-बसर कर रही अवाम के लिए मुमकिन करेगी की वो वोट का इस्तेमाल कर उन्हें दोबारा गद्दी पर बैठा दे. ताकि मुल्क तरक्की की राह पर आगे बढ़ सके. अच्छे दिन आने की उम्मीद बंध सके जो पिछले पांच साल के शोर-गुल में कहीं गुम सी हो गई थी.

और वो तमाम लोग जो जो जॉन एलिया के बड़े फैन हो कहते फिरते हैं –

सीना दहक रहा हो तो क्या चुप रहे कोई
क्यूँ चीख चीख कर न गला छील ले कोई

प्रधानमंत्री ने उन्हें करारा जवाब दिया है. अब मीडिया घोषित तौर पर उनके साथ है जिनकी पहुँच की कोई दाद नहीं है. जिनके पास सरकार के खिलाफ उठती आवाज़ को कुचलने की ताक़त जेसीबी मशीन से कही ज्यादा है. आज जोसफ गोएबल्स की रूह से लिपट कर यह मीडिया कहीं ताक़तवर हो चुकी है.

फिलहाल इस देश को सरकार ने उनके हवाले कर दिया है. हाँ कुछ बावरे हैं जो सपने देखते हैं. नामुमकिन से सपने. सपने जिन्हें कुछ लोग जिंदा होने के लिए जरूरी मानते हैं. उनकी खुशफहमी के लिए मैं यहां बता देना चाहता हूं, पंजाब के मशहूर क्रांतिकारी कवि पाश ने भी कहा था सबसे खतरनाक होता है सपनों का मर जाना.


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