क्या कृषि क्षेत्र का सूरत-ए-हाल बदल पाएगी पीएम-किसान योजना?
देश में किसानों के आक्रोश का सामना कर रही और तीन राज्यों के चुनाव हार चुकी बीजेपी लोकसभा चुनावों से पहले किसानों की आवभगत करने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है. कुछ ही महीने दूर लोकसभा चुनावों से पहले कल केंद्र सरकार ने किसानों के लिए नई स्कीम प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम किसान) योजना की शुरुआत की है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में 75,000 करोड़ रुपये की प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम किसान) योजना की शुरुआत की. सरकारी दावों के मुताबिक कल योजना की पहली किस्त के तौर पर करीब एक करोड़ किसानों को इसका लाभ मिला.
प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम किसान)योजना के तहत दो हेक्टेयर तक खेतिहर जमीन वाले किसानों को सालाना 6,000 रुपये की राशि दी जाएगी. इसका उद्देश्य खेती और घरेलू जरूरतों को पूरा करने में वित्तीय मदद देना है.
इससे पहले तेलंगाना, ओडिशा, झारखंड, पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश सरकारों ने किसानों को आय सहायता दी है. इन स्कीम के जरिए पैसा सीधे किसानों के बैंक खातों में जाता रहा है.
द मिंट की खबर के मुताबिक बजट सत्र में योजना की घोषणा करने वाले तत्कालीन वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने योजना ऐतिहासिक बताया है. उन्होंने कहा कि योजना से किसानों को सम्मानजनक जीवन मिलेगा.
पर यहां सवाल है कि तमाम किसान योजनाओं के बीच कृषि संकट का सामना करने के लिए ये योजना किस हद तक कारगर होगी.
कितनी कारगार होगी पीएम-किसान योजना
बीते साल अगस्त में नबार्ड की ओर से जारी ऑल इंडिया फाइनेंशियल इन्क्लूशन सर्वे (एनएएफआईएस) के आकंड़े बताते हैं कि एक सामान्य किसान परिवार प्रति माह 8931 रु कमाता है.
ऐसे में 6 हजार सालाना के हिसाब से एक किसान परिवार को प्रति माह 500रु सहायता राशि दी जा रही है. यानी प्रति माह किसानों की आय में 5.6 फीसदी की वृद्धि होगी.
योजना की आलोचनाओं के बीच इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि ये राशि बेहद गरीब किसान परिवारों के लिए जरूरी है, पर अलग-अलग किसान संगठनों ने योजना से नाराजगी जताते हुए इसे सरकार का ‘मजाक’ करार दिया है.
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) के मुताबिक फिलहाल केंद्र सरकार हड़बड़ाई हुई है. उन्होंने कहा कि “सरकार चुनावों से पहले किसानों के अकाउंट में 2,000रु डाल कर उनका वोट लेना चाहती है.” एआईकेएससीसी देशभर के 200 किसान समूहों का एक संगठन है.
किसान संगठन से जुड़ी समाज सेवी किरन विसा ने बताया कि “ये योजना किसानों के साथ एक मजाक है. योजना के नाम पर हर साल किसानों को इतनी सी सहायता राशि देने से उनके लाखों के कर्ज नहीं उतर जाएंगे.”
अर्थशास्त्रियों और शिक्षाविद् योजना की आलोचना करते हुए कह रहे हैं कि योजना में कृषि मजदूरों और किराए की जमीनों पर खेती करने वाले किसानों को नजरअंदाज किया गया है. उनका कहना है कि देश में मौजूदा कृषि संकट से ये वर्ग सबसे ज्यादा जूझ रहा है.
मोदी सरकार ने साल 2015 में केंद्र ने मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना की शुरुआत की थी. जो मिट्टी की गुणवत्ता जांचने और सही उर्वरक का इस्तेमाल कर खेती की लागत को कम करने पर केंद्रीत थी. इसके बाद साल 2016 फरवरी में पीएम फसल बीमा योजना, अप्रैल 2016 में ई-नाम इलेक्ट्रॉनिक नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट और साल 2018 सितंबर में पीएम-आशा योजना की शुरूआत की गई . और अब पीएम-किसान केंद्र की पांचवी फ्लैगशिप किसान योजना है.
योजना लॉन्चिंग की टाइमिंग पर आलोचकों का कहना है कि मोदी सरकार ने चुनावों से ठीक पहले इस योजना को लाकर अपने कार्यकाल में लॉन्च की पिछली सभी योजनाओं की नाकामियों को छुपाने की कोशिश की है.
पिछली योजनाओं की बात करें तो फसल बीमा योजना अपने क्रियान्वयन की कमजोरियों के कारण किसानों को लुभाने में नाकाम रही है. जबकि ई-नाम किसानों को खेती उत्पादों और फसल के बेहतर दाम नहीं उपलब्ध करा सकी, जिस कारण उत्पादक संघों का एकाधिकार बना रहा. पीएम-आशा योजना भी अपने लक्ष्य से दूर ही रही है और थोक खाद्य उत्पादों के दामों में मंदी का दौर बना रहा.
भारत कृषक समाज के चेयरमैन अजयवीर जाखड़ कहते हैं कि “पीएम किसान देश में कृषि नीति के क्षेत्र में नई पहल है, जो किसानों को जीवनयापन के लिए आय सहायता देती है… साथ ही हम ये भी कह सकते हैं कि आने वाले समय में हमें सब्सिडी या विस्तार सेवाओं की जगह इस तरह की आय सहायता पर आधारित किसान योजनाएं देखने को मिलेंगी.”
हालांकि ये अभी भी स्पष्ट नहीं है कि सरकार योजना को कैसे लागू करेगी, क्योंकि आशंका जताई जा रही है कि पहचान से जड़े सबूतों, बैंक खातों के साथ भूमि के रिकॉर्ड को समेटने में गड़बड़ी हो सकती है.
ऐसे में 500 रु प्रति माह की आय सहायता देकर सरकार भले ही किसानों का जीवन बदलने की बात करे, पर कृषि संकट से निपटने के लिए पीएम-किसान कितनी कारगर होगी इस पर फिर विचार किए जाने की जरूरत है.