फिल्म समीक्षकों से नाराज तमिल फिल्म प्रोड्यूसर्स ने बनाए अपने नियम
8 जुलाई को तमिल फिल्म प्रोड्यूसर्स काउंसिल (टीएफपीसी) का संचालन करने वाली अस्थायी समिति के सदस्यों ने एक बयान जारी किया था. इस बयान में तीन मुख्य बिंदुओं को प्राथमिकता दी गई है.
बयान में प्रोड्यूसर्स के अलग-अलग मीडिया घरानों से संबंध होने पर चिंता जताई गई है. तीन में से दो बिंदु प्रोड्यूसर्स के खर्च से जुड़े थे. तीसरा प्रमुख बिंदु फिल्मों की आलोचनाओं को लेकर था.
बयान में कहा गया है, “फिल्म आलोचना की आड़ में अगर कोई व्यक्ति फिल्म/कलाकार/निर्देशक/निर्माता की आलोचना में हद पार करता है, तो उसे कानूनी कार्यवाई का सामना करना पड़ सकता है. साथ ही उसे सभी तमिल फिल्मों से जुड़े समारोह में आने का न्योता कभी नहीं दिया जाएगा.”
इस बयान पर फिल्म इंडस्ट्री के वरिष्ठ पीआरओ डायमंड बाबू ने साफ करते हुए कहा, “यह अखबारों में काम करने वाले पत्रकारों के लिए नहीं है. लेकिन इन दिनों कोई भी फिल्म की आलोचना करते हुए कुछ भी लिख दे रहा है. जिससे लोगों को चोट पहुंचती है. वे कहते हैं कि फलां व्यक्ति को फिल्म मेकिंग के बारे में कुछ नहीं मालूम है. फिल्म रिव्यू के बहाने किसी व्यक्ति की बेइज्जती नहीं करनी चाहिए.”
उन्होंने कहा कि निर्माताओं के लिए यूट्यूब पर फिल्म की समीक्षा करने वाले परेशानी का सबब बने हुए हैं. जबकि अखबारों में समीक्षा बहुत ही सधी हुई भाषा में लिखी जाती है. यूट्यूब या अन्य वीडियो ब्लॉगिंग मंच अखबारों जैसी समीक्षा नहीं रहती है.
ये अब निर्माताओं के लिए परेशानी का सबस बन चुकी है क्योंकि वहां लोगों कि पहुंच इतनी ज्यादा है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.
उन्होंने यूट्यूब के एक विवादास्पद समीक्षक ‘ब्लू सताई’ मारण का उदाहरण देते हुए कहा कि जो भी उनके बनाए वीडियो पर क्लिक करते हैं उसे किसी न किसी फिल्म की समीक्षा के रूप में उनके विचारों को सुनना पड़ता है. उन्होंने कहा कि अखबारों के सब्सक्राइबर इससे काफी अलग होते हैं. मारण के यूट्यूब पर लगभग 10 लाख सब्सक्राइबर होने वाले हैं. उनके चैनल का नाम तमिल टॉकीज है.
सूत्रों के मुताबिक फिल्म काउंसिल का बयान खासतौर पर मारण को करारा जवाब देने के लिए था.
एक अन्य यूट्यूब समीक्षक ने इस मुद्दे पर कहा, “जैसे मैं बाजार से कोई सामान खरीदता हूं और मुझे वो अच्छा लगता है तो मैं उसके बारे में अच्छा कहता हूं. यदि मुझे नहीं अच्छा लगता है तो मैं उस पर रूखी प्रतिक्रिया देता हूं या उसे बुरा कहता हूं. मैं किसी भी फिल्म का एक उपभोगता हूं. असल में निर्माताओं को बढ़ते हुए इंटरनेट मंचों से परेशानी है. अगर वो मुझे इसके लिए दोषी ठहराना चाहते हैं तो उन्हें समझना चाहिए कि मैं जो बोलता हूं बस उसी के लिए जिम्मेदार हूं. लोग क्या समझते हैं इसकी जिम्मेदारी मेरी नहीं है. इसके अलावा मुझे मेरे सब्सक्राइबर्स के प्रति भी सच्चा रहना है. मेरे लिए यह नैतिकता का मामला है.”
ड्रीम वॉरियर पिक्चर्स के संस्थापक और सह निर्माता एसआर प्रभु का मानना है कि समीक्षा लिखना अब व्यापार बन चुका है. इसे नैतिक तरीके से करने की जरूरत है.
उन्होंने कहा, “एक निर्माता होने के नाते मुझे निजी तौर पर मेरे कंटेंट की आलोचना कर पैसे कमाने पर आपत्ति नहीं है. काउंसिल का बयान कानूनी रूप से कमजोर है. साथ ही संविधान में अभिव्यक्ति की आजादी के भी खिलाफ है. यह कोर्ट को फैसला करना चाहिए कि समीक्षा अभिव्यक्ति की आजादी के अंतर्गत आता है या नहीं.”
एक अन्य यूट्यूब समीक्षक प्रशांत रंगास्वामी ने कहा, “फिल्म एक पब्लिक प्रोडक्ट है. यह निजी संपत्ति नहीं है. मैं फिल्म खरीदने के लिए टिकट के पैसे देता हूं. मुझे समझ नहीं आ रहा है कि इस तरह का बयान देने की क्या जरूरत पड़ी.”
एक तरफ जहां निर्माताओं ने समीक्षकों के खिलाफ बयान जारी किया वहीं दूसरी तरफ कुछ निर्माता समीक्षकों के पक्ष में भी सामने आए हैं.
वे अपनी आने वाली फिल्मों का इस तरह के मंचों पर प्रमोशन करते हैं. इसका मतलब है कि कई निर्माता यूट्यूब पर समीक्षा के तरीकों से सहमत हैं.
अम्मा क्रिएशन के निर्माता टी सिवा ने आरोप लगाया कि निर्माताओं पर यूट्यूब समीक्षकों से फिल्में प्रचार करवाने का दबाव होता है. उन्होंने कहा, “ये वही लोग हैं जो हमें ब्लैकमेल करते हैं. वे हमें खुले तौर पर पूछते हैं. अगर हम उन्हें पैसे नहीं देते हैं तो वे हमें खराब समीक्षा करने की धमकी देते हैं. पेमैंट कैश में नहीं होता है बल्कि विज्ञापन करने के बहाने होता है.”
सिवा अस्थायी समिति के सदस्य भी हैं. उन्होंने कहा कि मैंने कई निर्माताओं को सलाह दी थी कि यूट्यूब समीक्षा के चक्कर में ना पड़ें. क्योंकि इससे हमारी इंडस्ट्री को कोई फायदा नहीं होता है. क्या फिल्म कोई ऐसा उत्पाद है जिसकी कोई भी आलोचना कर सकता है, कोई भी टिप्पणी कर सकता है. मैं उन सबसे गुजारिश करना चाहता हूं कि क्या यह किसी साबुन या शैंपू की समीक्षा करने जैसा है. साबुन या शैंपू बनाने वाली कंपनियां चुपचाप बैठी रहती अगर कोई उनकी कंपनी को बदनाम करता. इसके लिए उन्हें अपने आरोपों को साबित करना पड़ता.”
व्यक्तिगत अपमान के मुद्दे पर प्रभु का मानना है कि इसका फैसला अलग अलग मामले में किया जाना चाहिए. वहीं सिवा का कहना है कि मूल नैतिकता को बरकार रखने की जरूरत है.
मदरास हाई कोर्ट की वरिष्ठ वकील सुधा रामालिंगम ने इस मुद्दे पर कहा कि इसे कानूनी रूप से चुनौती नहीं दी जा सकती है.
यह एक व्यक्ति की शिष्टता पर निर्भर करता है. लेकिन ये कोई ऐसा मामला नहीं है जिसका फैसला कोर्ट करता हो. उन्होंने कहा कि ऐसी टिप्पणियां जो किसी को व्यक्तिगत रूप से नुकसान पहुंचाती हों, सिर्फ उसे ही चुनौती दी जा सकती हैं. ऐसे मामलों में जो भी कहा गया हो वो सही होना चाहिए, गलत नहीं.
डायमंड बाबू ने आखिरी टिप्पणी करते हुए कहा कि “किसी भी फिल्म कि किस्मत रिलीज होने के तीन दिनों में तय हो जाती है. अच्छे या बुरे रिव्यू से कोई खास फर्क नहीं पड़ता है.”