यासीन मलिक और जमात-ए-इस्लामी सदस्य हिरासत में
जम्मू कश्मीर में अलगाववादियों पर कार्रवाई के संकेतों के बीच जेकेएलएफ प्रमुख यासीन मलिक, जमात-ए-इस्लामी प्रमुख अब्दुल हमीद फैयाज और प्रवक्ता जाहिद अली को हिरासत में ले लिया गया है.
इसके साथ ही जमात-ए-इस्लामी के कम से कम 24 सदस्य हिरासत में लिए गए हैं.
माना जा रहा है कि 26 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में अनुच्छेद 35-ए पर सुनवाई हो सकती है. इसलिए बतौर एहतियात मलिक सहित दूसरों को हिरासत में लिया गया है.
अनुच्छेद 35-ए के तहत भारत के संविधान के अंतर्गत कश्मीर राज्य को विशेष अधिकार दिए गए हैं.
पुलिस ने हिरासत में लेने की घटना को नियमित कार्रवाई बताया. वहीं अधिकारियों का कहना है कि यह अलगाववादी समूह तहरीक-ए-हुर्रियत से जुड़े संगठन पर पहली बड़ी कार्रवाई है.
इस बीच केन्द्र ने अर्द्धसैनिक बलों की 100 अतिरिक्त कंपनियों की भारी तैनाती को बिना कोई कारण बताए कश्मीर रवाना किया है.
जम्मू कश्मीर में इस कारवाई के बाद लाल चौक और बाकी दूसरे इलाकें बंद हैं.
पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने जमात-ए-इस्लामी जम्मू एडं कश्मीर के नेताओं पर छापेमारी की वैधता पर सवाल उठाते हुए कहा कि ‘मनमाने’ कदम से राज्य में ‘मामला जटिल’ ही होगा.
महबूबा ने ट्वीट किया, “पिछले 24 घंटों में हुर्रियत नेताओं और जमात संगठन के कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया है. इससे जम्मू कश्मीर में केवल हालात जटिल ही होंगे.”
उन्होंने कहा, “किस कानूनी आधार पर उनकी गिरफ्तारी न्यायोचित ठहराई जा सकती है? आप एक व्यक्ति को हिरासत में रख सकते हैं लेकिन उनके विचारों को नहीं.”
नेशनल कांफ्रेंस ने भी नेताओं को हिरासत में लिए जाने की आलोचना की है. वे इसके खिलाफ प्रदर्शन भी कर रहे हैं.
उदारवादी हुर्रियत कांफ्रेंस के अध्यक्ष मीरवाइज उमर फारूख ने इस गिरफ्तारी की निंदा की है. उन्होंने कहा कि ‘बल प्रयोग और डराने से’ स्थिति केवल ‘खराब’ ही होगी.
मीरवाइज ने ट्वीट किया, “जमात-ए-इस्लामी नेतृत्व और इसके कार्यकर्ताओं पर रात में हुई कार्रवाई और यासिन मलिक की गिरफ्तारी की कड़ी निंदा करता हूं. कश्मीरियों के खिलाफ इस तरह के गैरकानूनी और कठोर उपाय निरर्थक हैं. इससे जमीन पर वास्तविकताएं नहीं बदलेंगी. बल प्रयोग और डराने से स्थिति केवल खराब होगी.”
जमात-ए-इस्लामी ने एक बयान जारी कर हिरासत में लिए जाने की निंदा की और कहा है, “यह कदम कश्मीर में और अनिश्चितता का राह के लिए भली-भांति रची गई साजिश है.”
इससे पहले 20 जनवरी को यासीन मलिक से सुरक्षा वापस लिए जाने जैसी खबरें भी आई थी. हालांकि एक प्रेस कांफ्रेंस में मलिका ने सरकार की अधिसूचना को झूठा करार देते हुए कहा था कि जब उन्हें कोई सुरक्षा मिली ही नहीं तो सरकार वापस क्या लेगी.
पुलवामा जिले में सीआरपीएफ के काफिले पर भीषण आतंकवादी हमले के आठ दिन बाद यह कार्रवाई सामने आई है. इस हमले में सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हो गए थे.