राफेल सौदे की शुरुआती कीमत पर एकमत नहीं थी परचेज कमिटी


 

अब ‘दि कारवां‘ मैगजीन ने राफेल लड़ाकू विमान खरीद सौदे पर यह दावा किया है कि फ्रेंच अधिकारियों से बात करने वाला सात सदस्यीय भारतीय दल सौदे की शुरुआती कीमत से लेकर प्रक्रिया संबंधी बहुत से पहलुओं पर एकमत नहीं था.

जबकि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को यह बताया है कि सौदे की प्रक्रिया पर एकमत से निर्णय लिया गया. जो सूचनाएं मैगजीन ने प्रकाशित की हैं, उसके अनुसार सात सदस्यीय दल के तीन सदस्यों ने स्पष्ट कहा था कि यह सौदा भारतीय हितों के अनुरूप नहीं है.

मैगजीन के अनुसार, मुख्य रूप से इस सौदे की कीमत पर सदस्यों के बीच में मतभेद था. इस सौदे की शुरुआती कीमत का आंकलन 5.2 बिलियन यूरो था. कीमत का यह निर्धारण सात सदस्यीय भारतीय दल के सदस्य एम.पी. सिंह ने किया था.

उन पर ही इस सौदे की शुरुआती कीमत का निर्धारण करने की जिम्मेदारी थी. समिति के अन्य दो सदस्यों राजीव वर्मा (संयुक्त सचिव और अधिग्रहण मैनेजर, वायु) और अनिल सुले (वित्त मैनेजर, वायु) ने इस कीमत का समर्थन किया।

मैगजीन की रिपोर्ट के अनुसार, दल के सात सदस्यों में इन तीनों के पास सौदे की कीमत का निर्धारण करने की विशेषज्ञता थी. लेकिन दल के बाकी चार सदस्यों ने यह कहते हुए विरोध जताया कि सौदे की यह कीमत आचित्यपूर्ण नहीं हैं. इन चार सदस्यों में दल के प्रमुख और वायु सेना के उपप्रमुख राकेश कुमार सिंह भदौरिया भी शामिल थे.

इस मतभेद के बाद कीमत निर्धारण का मुद्दा रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) के पास पहुंच गया जिसके प्रमुख तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर परिक्कर थे. उनके नेतृत्व में राफेल सौदे की वैकल्पिक कीमत निर्धारित की गई जो शुरुआती कीमत से 2.5 बिलियन यूरो ज्यादा थी.

इस ऊंची वैकल्पिक कीमत को प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी ने मंजूर कर दिया. ‘दि कारवां’ की रिपोर्ट कहती है कि  कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी को कीमत निर्धारण जैसे तकनीकी मुद्दे की कोई विशेषज्ञता हासिल नहीं थी.

इसके अलावा, मैगजीन ने अपनी रिपोर्ट में तीन सदस्यों के हवाले से खरीद प्रक्रिया में हुई कई गड़बड़ियों का उल्लेख किया है. उसका दावा है कि राफेल विमान बनाने वाली दासौल्ट कंपनी को सरकार ने 36 जहाजों के मिलने से पहले ही बड़ी रकम अदा करने का समझौता तो किया, लेकिन दासौल्ट से सिक्योरिटी के रूप में कोई रकम जमा नहीं करवाई.

मैगजीन अपनी रिपोर्ट में कहती है कि रक्षा खरीद सौदों में विनिर्माता कंपनी या संबंधित देश की सरकार की ओर से सिक्योरिटी जमा कराना मानक प्रक्रिया के तहत आता है. ताकि समझौते के उल्लंघन की स्थिति में इस रकम से नुकसान की भरपाई सुनिश्चित हो सके. लेकिन राफेल सौदे में इस मानक प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया.

रिपोर्ट कहती है कि राफेल सौदे की शुरुआती कीमत और खरीद प्रक्रिया पर असहमति जताने वाले तीन सदस्यों ने 36 राफेल विमानों की खरीद सौदे को यूपीए के दौरान हुए 126 मीडियम मल्टी रोल लड़ाकू विमानों के खरीद सौदे से बेहतर बताए जाने के प्रति भी अपनी असहमति जताई थी.

(अधिक जानकारी के लिए उपरोक्त वीडियो देखें)

 

 


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