यूपीए से महंगा है मोदी सरकार में हुआ राफेल सौदा


Paris: Spies in the military office engaged in monitoring Rafael production?

 

अंग्रेजी अखबार द हिन्दू द्वारा राफेल विमान सौदे पर किए जा रहे खुलासों का सिलसिला जारी है. अखबार ने भारतीय खरीद दल (आईएनटी) के तीन वरिष्ठ सदस्यों द्वारा लिखे डिसेंट नोट (Dissent Note) के आधार पर दावा किया है कि मोदी सरकार के कार्यकाल में हुआ राफेल सौदा यूपीए की तुलना में किफायती नहीं था.

इन सदस्यों ने इस सौदे की बढ़ी हुई कीमत पर गहरी आपत्ति जताई थी. अखबार ने सरकार के इस दावे का भी खंडन किया है कि ‘ऑफ़ दि शेल्फ’ खरीददारी से 36 में से पहले 18 राफेल विमानों की डिलीवरी यूपीए की तुलना में जल्दी होगी.

अखबार के ये दोनों दावे मोदी सरकार द्वारा किए जा रहे दावों के ठीक उलट हैं. मोदी सरकार ये दावा करती रही है कि उसने हर राफेल विमान यूपीए वाले सौदे के मुकाबले 59 करोड़ रुपये सस्ता खरीदा है. वहीं, उसका दावा यह भी रहा है कि ऑफ द शेल्फ खरीददारी से विमानों की आपूर्ति जल्दी हो जाएगी. मोदी सरकार ने यही दो दावे सुप्रीम कोर्ट में भी किए हैं.

अखबार के अनुसार, जिन तीन वरिष्ठ सदस्यों ने सौदे की लागत पर आपत्ति जताई थी, उनमें एम. पी सिंह, परामर्शदाता (लागत), ए. आर. सुले, वित्तीय मैनेजर (वायु सेना) और राजीव वर्मा (संयुक्त सचिव और अधिग्रहण मैनेजर, वायु सेना) शामिल थे. उन्होंने सौदे की लागत पर अपनी कड़ी आपत्ति 1 जून, 2016 को लिखे गए डिसेंट नोट में दर्ज कराई थी. हैरत की बात ये है कि उन्होंने ये डिसेंट नोट 23 सितंबर, 2016 को राफेल सौदे पर हस्ताक्षर होने से 3 महीने पहले ही दे दिया था.

तीनों सदस्यों ने अपने डिसेंट नोट में स्पष्ट लिखा था कि फ्रांस सरकार ने इस सौदे की जो लागत बताई है, वह जायज नहीं ठहरती है. यहां तक कि फ्रांस सरकार द्वारा सौदे की बताई गई अंतिम लागत को बेहतर शर्तों का नहीं कहा जा सकता. सदस्यों ने लिखा था कि सौदे की लागत दोनों देशों के बीच संयुक्त बयान में जिक्र की गई जरुरतों के मुताबिक़ नहीं है.

जाहिर है कि इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद पहले से मोदी सरकार पर हमलावर विपक्ष और अधिक आक्रामक हो गया है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने एक बार फिर ट्वीट कर कहा है कि दि हिन्दू के खुलासे से सरकार द्वारा किए गए दावे धराशायी हो गए हैं.


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