दुर्लभ रोगों की इलाज नीति पर पलटी सरकार
आर्थिक रूप से लाचार और दुर्लभ आनुवांशिक बीमारियों से पीड़ित बच्चों और प्रभावित परिवारों को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने भारी झटका दिया है. मंत्रालय ने कहा है कि वह ‘तकनीकी’ और ‘प्रशासनिक’ वजहों के चलते दुर्लभ रोगों के इलाज के लिए 100 करोड़ रुपए का कोष बनाने में असमर्थ है.
स्वास्थ्य मंत्रालय ने पिछले साल दुर्लभ लोगों के इलाज के लिए बनाई गई राष्ट्रीय नीति में यह कोष बनाने का वादा किया था. इस कोष का 60 फीसदी हिस्सा केंद्र सरकार को वहन करना था, जबकि 40 फीसदी भागीदारी राज्य सरकार को करनी थी.
दिल्ली हाई कोर्ट में दाखिल अपने हलफनामे में मंत्रालय ने कहा है कि इस तरह का कोई भी कोष नहीं बनाया गया है क्योंकि दुर्लभ रोग प्रबंधन का कार्य राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत आता है. इस मिशन के कोष का इस्तेमाल केवल प्राथमिक और द्वितीयक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए ही किया जा सकता है. चूंकि दुर्लभ रोग इन दोनों श्रेणियों में नहीं आते, इसलिए इन रोगों के इलाज के लिए 100 करोड़ का कोष नहीं बनाया जा सकता.
दिल्ली हाई कोर्ट में इन रोगों से ग्रसित परिवारों ने याचिका दायर कर सरकार से मदद की गुहार लगाई थी. दुर्लभ रोगों के इलाज में प्रति वर्ष सामान्यतः 3-45 लाख तक का खर्च आता है, जिसका वहन करना अधिकतर लोगों के लिए संभव नहीं होता.
चूंकि दुर्लभ रोगों से जुड़ी दवाइयों का बाजार सीमित है, इसलिए भी इनसे जुड़ी दवाइयां महंगी होती हैं. प्रभावित परिवारों को सरकार से आशा थी कि वह संबंधित दवा कंपनियों से बात कर इन रोगों का सस्ता इलाज मुहैया कराएगी. अब सरकार द्वारा इस मामले में एकाएक हाथ पीछे खींच लेने की वजह से इन रोगों से ग्रस्त परिवारों को फिर से मायूसी हाथ लगी है.
पिछले साल इन रोगों के इलाज के लिए अलग से नीति बनने की घोषणा के बाद 180 परिवारों ने इलाज का खर्च उठाने के लिए सरकार से आवेदन किया था. स्वास्थ्य मंत्रालय ने इनमें से किसी भी आवेदन को मंजूर नहीं किया गया था.समय पर इलाज नहीं मिलने के चलते इन रोगों से पीड़ित कुछ बच्चों की मौत भी हो चुकी है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक विश्व में करीब 6-8 हजार दुर्लभ रोगों की श्रेणी में आते हैं. विभिन्न अनुमानों के अनुसार, इस समय 450 बीमारियों से पीड़ित मरीज भारत में मौजूद हैं. गौचर, फेबरी,पाम्पे आदि रोग आनुवांशिक दुर्लभ बीमीरियों की श्रेणी में आते हैं.
इन रोगों में शरीर में किसी खास एन्जाइम की कमी हो जाती है, जिसके चलते शरीर में आनुवांशिक विकृतियां आ जाती हैं. ऐसी स्थिति में शरीर की नसों में कृत्रिम ढंग से एन्जाइम की आपूर्ति की जाती है.