वित्त वर्ष 2016-17 में बेरोजगारी की दर पिछले चार साल में सबसे अधिक रही है. अंग्रेजी अखबार बिजनेस स्टैंडर्ड ने श्रम ब्यूरो की ओर से एक अप्रकाशित रिपोर्ट के हवाले से यह खुलासा किया है. आठ नवंबर 2016 को नोटबंदी हुई थी.
श्रम ब्यूरो के छठे वार्षिक रोजगार-बेरोजगार सर्वे के मुताबिक वित्त वर्ष 2016-17 में बेरोजगारी की दर 3.9 फीसदी रही. जबकि वित्त वर्ष 2015-16 में बेरोजगारी दर 3.7 फीसदी और वित्त वर्ष 2013-14 में 3.4 फीसदी रही. गरीबी की दर की गणना कुल मजदूरों की संख्या और बेरोजगारों की संख्या के अनुपात से की जाती है.
बिजनेस स्टैंडर्ड अखबार में छपी खबर के मुताबिक श्रम और रोजगार मंत्री संतोष गंगवार ने दिसंबर 2018 में रिपोर्ट को स्वीकृति दी थी. लेकिन केन्द्र सरकार ने रिपोर्ट को दबा दिया. अखबार ने रिपोर्ट अपने पास होने का दावा किया है.
रिपोर्ट के मुताबिक श्रम बल भागीदारी दर(एलएफपीआर) साल 2015-16 में 75.5 फीसदी रही जो साल 2016-17 में बढ़कर 76.8 फीसदी हो गई. एलएफपीआर रोजगार ढूंढने वाले कामगारों की संख्या से निर्धारित होती है.
रिपोर्ट के मुताबिक साल 2016 के नवंबर और दिसंबर महीने के दरम्यान भारत में आर्थिक गतिविधि में तीन फीसदी की गिरावट दर्ज की गई. और अर्थव्यस्था पर इसका बुरा प्रभाव कई महीनों तक बना रहा.
अमेरिका की संस्था नेशनल ब्यूरो ऑफ इकोनॉमिकल रिसर्च ने दिसंबर 2018 में कहा था कि नोटबंदी से भारत की अर्थव्यवस्था को बड़ा धक्का लगा है. इसका असर साल 2017 में देखने को मिला था.
अब श्रम ब्यूरो रोजगार की स्थिति पर रिपोर्ट प्रकाशन नहीं करती है. इसका प्रकाशन नेशनल सैंपल सर्वे के जिम्मे है. साल 2017-18 में रोजगार की स्थिति पर रिपोर्ट का प्रकाशन अबतक नहीं हो पाया है.
(इनपुट स्क्रॉल और द क्विंट से भी)