वित्त स्थाई समिति: निजीकरण से नहीं दूर होगा सरकारी बैकों का संकट
संसद की वित्तीय मामलों की स्थाई समिति ने कहा है कि सरकारी बैकों का मौजूदा संकट अस्थाई है और इस संकट के बहाने उनका निजीकरण नहीं किया जा सकता.
कांग्रेस नेता वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता वाली समिति ने रिजर्व बैंक आफ इंडिया (आरबीआई) की भूमिका और शक्तियों का मूल्यांकन करने के लिए एक उच्च स्त्तरीय समिति गठित करने की सिफारिश की है.
समिति ने जोर दिया है कि आरबीआई को 11 सरकारी बैंकों की स्थिति में जल्द सुधार के लिए एक व्यापक रोडमैप मुहैया कराना होगा.
आरबीआई को समय-समय पर सरकारी बैंकों के बढ़ते एनपीए से निपटने के लिए बनाए गए दिशा-निर्देशों और योजनाओं के आर्थिक प्रभाव के बारे में बताना होगा. साथ-साथ उसे सरकारी बैंकों द्वारा धोखाधड़ी और फर्जी मामलों में से निपटने के लिए बने मौजूदा प्रावधानों की भी समीक्षा करनी होगी.
प्रस्तावित उच्च स्तरीय समिति आरबीआई की स्वायत्तता और सरकारी बैंकों के विनियामक के रूप में उसकी भूमिका सुनिश्चित करने के लिए बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट, आरबीआई एक्ट और संबंधित प्रावधानों का भी निरीक्षण करेगी. वह सुनिश्चित करेगी कि बैकों के बोर्ड में आरबीआई के नामांकित सदस्य हों.
स्थाई समिति की एक अहम सिफारिश ये भी है कि वरिष्ठ बैंकर्स के अनुभव और विशेषज्ञता का लाभ उठाने के लिए सरकारी बैकों में उनके रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाकर 70 साल कर दी जाए. निजी बैंकों में पहले ही ये प्रावधान है.
बीते कुछ समय से देश का केंद्रीय विनियामक बैंक आरबीआई अपनी स्वायत्तता और अपनी कार्य-प्रणाली को लेकर भारी आलोचना का सामना कर रहा है. आरबीआई के पूर्व गवर्नर उर्जित पटेल के इस्तीफे को इसकी कार्यप्रणाली में सरकार के दखल का नतीजा माना गया था. हालांकि हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बात से इंकार किया है.
वहीं, देश के सरकारी बैंक इस समय गंभीर संकट का सामना कर रहे हैं. पिछले तीन वर्षों में उनके एनपीए में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है. वहीं बहुचर्चित पीएनबी घोटाले ने भी सरकारी बैंकों की साख और विश्वसनीयता को प्रभावित किया है.