आरसीईपी: भारत के कड़े रुख से सदस्य देश सामंजस्य स्थापित करने में रहे विफल


rcep agreement: india has taken tough stand regarding market access, investment and e-commerce fail to reach common ground

 

16 देशों वाली क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (आरसीईपी) के व्यापार मंत्रियों की 1 नवंबर को एकबार फिर से बैठक होने वाली है.

माना जा रहा था कि बैंकाक में 11 से 12 अक्टूबर को हुई बैठक मंत्रियों की आखरी बैठक होगी. लेकिन, बाजार में पहुंच, निवेश और ई-कॉमर्स पर भारत के कड़े रुख से बाकी देश सामंजस्य स्थापित करने में विफल रहे हैं.

क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी एक मुक्त व्यापार समझौता है जिसमें वस्तुओं एवं सेवाओं, निवेश, आर्थिक और तकनीकी सहयोग और बौद्धिक संपदा अधिकार से जुड़े मुद्दे शामिल हैं. आरसीईपी के 16 सदस्य देश इन क्षेत्रों में तय लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में लंबे समय से प्रयासरत हैं.

आरसीईपी के ब्लॉक में दस आसियान सदस्य (ब्रुनेई , कंबोडिया , इंडोनेशिया , लाओस , म्यामां , फिलिपीन , सिंगापुर , थाइलैंड और वियतनाम) और उनके छह मुक्त व्यापार भागीदार आस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, दक्षिण कोरिया और न्यूजीलैंड शामिल हैं.

वार्ताकारों से कहा गया है कि बैंकाक में 19 अक्टूबर तक बातचीत कर आपसी मतभेदों को दूर कर लें. 4 नवंबर को सभी देशों के प्रमुखों की बैठक होने वाली है जिसके बाद इस समझौते पर मोहर लग जाएगी.

नाम ना बताने की शर्त पर एक भारतीय व्यापार अधिकारी ने कहा, ‘समझौते को लेकर सभी देशों के बीच दूरी कम हो रही है. सभी देशों को बातचीत पूरा करने के लिए 22 अक्टूबर तक का समय दिया गया है. इसमें देशों के द्विपक्षीय संबंध भी शामिल हैं.’

व्यापार मंत्री पियूष गोयल ने शनिवार को ट्वीट कर कहा, ‘बैंकाक में हुए 9वें आरसीईपी मंत्रियों की बैठक में सभी साझेदार देशों के साथ सफल बातचीत हुई. व्यापार और निवेश, पारस्परिक आर्थिक विकास और घरेलू उद्योग और किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए विचार-विमर्श में हिस्सा लिया.’

कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के सांसद बिनॉए विसवम ने शनिवार को गोयल को पत्र लिखकर कहा है कि भारत पर आरसीईपी का नकारात्मक प्रभाव क्या होगा, यह चर्चा करने के लिए संसद का तत्काल सत्र बुलाने के लिए कदम उठाएं.

उन्होंने कहा, प्रस्तावित मुक्त व्यापार समझौते में सिर्फ डेयरी क्षेत्र ही नहीं है बल्कि इसका नकारात्मक प्रभाव कृषि क्षेत्र के साथ विनिर्माण क्षेत्र पर भी पड़ेगा. इसमें धातू उद्योग, काली मिर्च, इलायची, रबर और नारियल शामिल है. भारत के लोग स्वभाविक रूप से पूछेंगे कि जब अमेरिका अपनी चीजों को लेकर इतना संरक्षणवादी है तो भारत अपने लोगों और अपनी अर्थव्यवस्था को कैसे भूल सकता है.’

भारत ने आरसीईपी देशों से आयत शुल्क पर अचानक वृद्धि से खुद को सुरक्षित करने के लिए एक ऑटो-ट्रिगर तंत्र अपनाने का प्रस्ताव दिया है. खासतौर से चीन के लिए जिसके साथ भारत का लगभग 3 लाख 80 हजार करोड़ रुपये का व्यापार घाटा चल रहा है.
हालांकि कई विश्लेषकों का मानना है कि 100 से 200 चीजों पर सामानों की संख्या आधारित ऑटो-ट्रिगर तंत्र लगाने के बावजूद आरसीईपी सदस्य देशों से अचानक आयात शुल्क में वृद्धि से देश का नुकसान होने से नहीं बचाया जा सकता है.


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