जियो और पेटीएम के लिए ग्राहकों की प्राइवेसी का कोई मोल नहीं?


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कुछ बड़ी भारतीय कंपनियां उपभोक्ताओं की निजी जानकारियां जांच एजेंसियों के साथ साझा करने की वकालत कर रही हैं. जानकारों का मानना है कि सरकार के करीब आने के लिए कंपनियां ऐसा प्रस्ताव दे रही हैं. भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण(ट्राई) को दिए सुझावों में ज्यादातर भारतीय कंपनियों ने प्राइवेसी के साथ समझौता करने पर राजी दिखती हैं.

हफिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक टेलीकॉम कंपनी रिलायंस जियो ने ट्राई से कहा है कि कानून प्रवर्तन एजेंसियों को उपयोगकर्ताओं के डाटा तक पूरी पहुंच होनी चाहिए. इनमें नागरिकों की डिस्क्रिप्टिव व्यक्तिगत और संवेदनशील डाटा तक पहुंच भी शामिल है.

ऑनलाइन पेमेंट और ई-शॉपिंग कंपनी पेटीएम भी कुछ ऐसा ही मानती है. पेटीएम ने ट्राई को दिए अपने सुझाव में कहा है कि भारतीय प्राधिकरणों को भारतीय डाटा पर बे-रोकटोक पूरी पहुंच होनी चाहिए. इससे पहले पेटीएम के सीईओ विजय शेखर शर्मा के भाई अजय शर्मा ने पीएमओ की ओर से उपभोगकर्ताओं का डाटा मांगने की बात कह चुके हैं.

वीडियो के सार्वजनिक होने पर पेटीएम की ओर से कहा गया था कि हम आपका व्यक्तिगत डाटा किसी तीसरे व्यक्ति के साथ साझा नहीं करेंगे.

ब्रॉडबैंड और टीवी केबल कंपनी जीटीपीएल हैथवे ने सुझाव दिया है कि भारत में सेवा देने वाले सभी एप्लीकेशन का पंजीकरण भारत में होना चाहिए और सुरक्षा के मद्देनजर डाटा तक जांच एजेंसियों की पहुंच होनी चाहिए.

व्हाट्स एप जैसी मैसेजिंग एप उपभोगकर्ताओं के संवादों को इनस्क्रिप्ट कर देती हैं. जिससे कोई भी तीसरा पक्ष इन संदेशों को पढ़ नहीं सकता है. इनस्क्रिप्ट डाटा का रिकॉर्ड सेवा देने वाली कंपनियों के पास नहीं होता है. ऐसी स्थिति में इस माध्यम से किया जाने वाले संवाद ज्यादा सुरक्षित होते हैं. व्हाट्स एप और ऐसी कंपनियों से कॉल के साथ-साथ वीडियो कॉल की सुविधा भी मिलती है. जिसकी वजह से टेलीकॉम कंपनियों पर उपभोक्ताओं की निर्भरता घट गई है.

पेशे से वकील मिशी चौधरी कहती हैं, “यह संरक्षणवादी अर्थव्यवस्था की ओर ले जाने वाला कदम है. वे(कंपनियां) कहना चाह रही हैं कि भारतीय कंपनियों पर नियंत्रण संंभव है और विदेशी कंपनियों की ओर से डाटा उपनिवेशवाद खड़ा किया जा रहा है.

जानकार यह भी मानते हैं कि भारतीय कंपनियां इंस्क्रिप्सन को तोड़ने का प्रस्ताव देकर सरकार के करीब आना चाहती हैं और विदेशी कंपनियों के लिए मुश्किल पैदा करना चाहती हैं, जो वैश्विक मापदंड का पालन करती हैं.

जानकारों का मानना है कि टेलीकॉम कंपनियों ने कॉल की सुविधा तक ही अपने को सीमित रखा हैं, वह नई तकनीकों के लिए प्रयास नहीं कर रही हैं.

पिछली सरकारें भी उपभोक्ताओं की प्राइवेसी पर हमला करती रही हैं. पूर्व विज्ञान और तकनीक मंत्री कपिल सिब्बल ने ब्लैकबेरी को भारतीय डाटा डिस्क्रिप्ट करने पर मजबूर कर दिया था. लेकिन सवाल उठता है कि वैश्विक मापदंड को तोड़कर क्या हम अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत कर सकते हैं?


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