लवासा का डिसेन्ट नोट सार्वजनिक करने से किसकी जान को खतरा?
चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनाव में आदर्श चुनाव आचार संहिता उल्लंघन की शिकायतों को देख रहे तीन चुनाव आयुक्तों के व्यक्तिगत विचारों को बताने से इनकार कर दिया है अंग्रेजी वेबसाइट इंडिया टुडे की ओर से आरटीआई के तहत पूछे गए सवालों के जवाब में आयोग ने अजीबोगरीब जवाब दिया है.
आचार संहिता के लगने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के भाषणों को लेकर चुनाव आयोग के पास कई शिकायतें आई थीं. इस मामले में आयोग की ओर से गठित कमीशन ने सभी मामलों में इन दोनों बीजेपी उम्मीदवारों को क्लीन चिट दे दी थी. लेकिन चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने क्लीन चिट दिए जाने का विरोध किया था.
कमीशन में तीन सदस्य, मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा, चुनाव आयुक्त सुनील चंद्र और चुनाव आयुक्त अशोक लवासा थे.
इंडिया टुडे ने आचार संहिता उल्लंघन के मामलों में तीनों चुनाव आयुक्तों के विचार की प्रति की मांग की थी. इसके जवाब में आरटीआई के रूल 8(1) का जिक्र करते हुए कहा गया है कि सूचना को सार्वजनिक करने से किसी व्यक्ति के जान को खतरा होगा.
आयोग की ओर आरटीआई के जवाब में कहा गया है, “आरटीआई एक्ट 2005 के रूल 8(10)(जी) के तरह सूचना को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है, सार्वजनिक करने से उनकी पहचान जाहिर होने पर किसी व्यक्ति के जान या शारीरिक सुरक्षा को खतरा हो सकता है.”
जवाब में सूचना साझा नहीं करने के पीछे सुरक्षा का हवाला दिया गया है.
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक अशोक लवासा ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ शिकायत के चार मामलों में क्लीन चिट दिए जाने का विरोध किया था जबकि अमित शाह के भाषणों को लेकर उन्होंने एक मामले में आपत्ति दर्ज की थी. बाद में लवासा ने मामले में दिए गए अपने डिसेन्ट नोट यानी कि आपत्ति को सार्वजनिक करने की मांग की थी.
चुनाव आयोग ने लवासा की मांग को खारिज करते हुए कहा था कि इसे रिकॉर्ड के तौर पर रखा जाएगा.
आरटीआई के तहत पूछे गए सवालों में शामिल है, “आचार संहिता लागू होने के बाद आम चुनाव 2019 में राजनेताओं के द्वारा उकसाने वाले बयानों को लेकर चुनाव आयोग के फैसलों की जानकारी दी जाए.”
इसके साथ ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के भाषणों पर मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा, चुनाव आयुक्त सुनील चंद्र और चुनाव आयुक्त अशोक लवासा के विचारों की प्रति मुहैया करवाने की मांग की गई थी.
पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने चुनाव आयोग के जवाब को हास्यपद बताया है. उन्होंने कहा है कि इस मामले में शायद आयोग सोच रहा हो कि कोई बीजेपी का आदमी लवासा को मार सकता है.