शैक्षणिक संस्थानों पर हो रहे हमले को लेकर पीपुल्स ट्रिब्यूनल ने जारी की रिपोर्ट


Report of the People's Tribunal released on the attack on academic institutions

 

शैक्षणिक संस्थाओं पर लगातार हो रहे हमलों को लेकर पीपुल्स ट्रिब्यूनल की रिपोर्ट जारी हो गई है. इसे दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में ‘भारतीय विश्वविद्यालयों के परिसरों की घेराबंदी’ शीर्षक से जारी किया गया. यह रिपोर्ट पीपुल्स कमीशन ऑन श्रिकिंग डेमोक्रेटिक स्पेस इन इंडिया(पीसीएसडीएस) नाम के संगठन के तत्वाधान में जारी की गई. दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशन क्लब के साथ यह रिपोर्ट देश के दूसरे राज्यों में भी जारी की गई.

यह रिपोर्ट देश की शिक्षा पर हो रहे संस्थागत हमले के बारे में है. 11 से 13 अप्रैल 2018 के बीच शिक्षा पर हो रहे हमले को लेकर पीसीएसडीएस ने पीपुल्स ट्रिब्यूनल आयोजित की थी. इस दौरान 17 राज्यों के 50 संस्थानों और विश्वविद्यालयों के लगभग 130 छात्रों और शिक्षकों ने अपने शपथ पत्र पस्तुत किए थे, 49 ने मौखिक गवाहियां दी थीं. पीसीडीएस ने इसी आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की है. पीसीडीएस की पीपुल्स ट्रिब्यूनल के ज्यूरी पैनल में पूर्व जस्टिस होसबेट सुरेश, प्रोफेसर अमित भादुड़ी, पूर्व जस्टिस बीजी कोलसे पाटिल, प्रोफेसर उमा चक्रवर्ती, प्रोफेसप टीके ओमन, प्रोफेसर वसंती देवी, प्रोफेसप घनश्याम शाह, प्रोफेसर मेहर इंजीनियर, प्रोफेसर करल्पना कन्नबीरन और सुश्री पामेला फिलिप जैसी विख्यात हस्तियां शामिल थीं.

कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में रिपोर्ट के बारे में बताते हुए पामेला फिलिप ने कहा, “ वर्तमान सरकार ने पिछले चार साल में उच्च शिक्षा का अभूतपूर्व स्तर पर निजीकरण किया है. इसका एकमात्र उद्देश्य उच्च शिक्षा को समाज के उच्च और सुविधा संपन्न तबके तक सीमित कर देना है.”

उन्होंने आगे कहा कि स्वायत्ता के नाम पर प्रबंधन को खुली छूट दी जा रही है. इससे प्रबंधन मनमाने तौर पर फीस बढ़ा रहा है और पाठ्यक्रम में बदलाव कर रहा है.

उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने जानबूझकर शिक्षा संस्थानों की फंडिंग में भारी कटौती की है, विद्यार्थियों को मिलने वाली फेलोशिप और स्कॉलरशिप खत्म कर दी गई हैं. इससे विद्यार्थी बड़े-बड़े शिक्षा लोन के लिए मजबूर हुए हैं. लोन लेकर पढ़ाई करने पर उनके ऊपर भारी दबाव होता है, जिसकी वजह से कई बीच में ही अपनी पढ़ाई छोड़ देते हैं.

रिपोर्ट में शिक्षा के भगवाकरण का भी जिक्र है. इस पहलू पर बोलते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद कहते हैं कि वर्तमान सरकार ने शिक्षा का भगवाकरण ना करके इसका घटियाकरण कर दिया है.

प्रोफेसर अपूर्वानंद कहते हैं, “ भारत में शिक्षा के क्षेत्र में एक बड़ा रेगिस्तान फैलता जा रहा है, जो दिल्ली से नजर नहीं आता है. दिल्ली से दूर छोटे राज्यों में ये साफ नजर आता है और ये रेगिस्तान काफी पहले से फैल रहा है.”

प्रोफसर अपूर्वानंद ने कहा कि शिक्षा का भगवाकरण बहुत नियोजित तरीके से धीरे-धीरे किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि एनसीआरटी की किताबों को धीरे-धीरे भीतर से बदला जा रहा है. शिक्षा का सेक्युलर ताना बाना बदला जा रहा है. विश्वविद्यालयों के रिफ्रेशर कोर्सेस को आरएसएस के छुटभैये नेता संबोधित कर रहे हैं. कुल मिलाकर शिक्षा को इतना नीचे लाया जा रहा है कि इसके ऊपर चर्चा के लिए ही कुछ ना बचे.

शिक्षा के नव-उदारवादी मॉडल पर बोलते हुए प्रोफेसर रघुराम कहते हैं कि वर्तमान नेतृत्व दलितों, पिछड़ों, मुसलमानों और गरीब तबके के विद्यार्थियों को निशाना बना रहा है, इसलिए सार्वजनिक शिक्षा की फंडिंग में लगातार कमी की जा रही है.

उन्होंने आगे कहा कि फंडिंग में कटौती की वजह से शोध को लेकर सुविधाओं में कमी हो रही है, शिक्षकों की तनख्वाह में कमी हो रही है, ज्यादा से ज्यादा शिक्षकों को ठेके पर रखा जा रहा है. इस प्रकार एक उथल-पुथल पैदा की जा रही है, ताकि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पूरी तरह से समाप्त की जा सके.

बीते सालों में देखा गया है कि वर्तमान सरकार का विरोध करने वाले छात्रों को देशद्रोही बोला गया. मीडिया ने उनके लिए टुकड़े-टुकड़े गैंग जैसे शब्दों का प्रयोग किया. उन्हें सस्पेंड किया गया, जेल में डाला गया. उनकी असहमति को हिंसक और संस्थागत तरीके से कुचला गया.

इस पहलू पर बोलते हुए रिपोर्ट के संपादक अमित सेनगुप्ता ने बताया कि वर्तमान सरकार की नीतियों को लेकर आलोचनात्मक रुख रखने वाले शिक्षकों और विद्यार्थियों को चुन-चुनकर निशाना बनाया गया. जिसने भी सरकार की आलोचना की उसकी गृह मंत्रालय ने प्रोफाइलिंग की और उसे संस्पेंड करके एक उदाहरण पेश किया गया.

अमित सेनगुप्ता ने कहा कि बीते चार सालों में बहुत से शिक्षकों को नौकरी से निकाल दिया गया क्योंकि वे सरकार की नीतियों के प्रति आलोचनात्मक थे.

उन्होंने अपना उदाहरण देते हुए बताया कि उन्हें भारतीय जनसंचार संस्थान से इसलिए इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया क्योंकि वे जेएनयू आंदोलन में शामिल थे.


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