आरक्षित सीटें मुसलमानों की राह में बाधक: रिपोर्ट
मौजूदा लोकसभा में सबसे कम 23 मुसलमान सांसद हैं. देश की 14 फीसदी मुस्लिम आबादी को केवल 4.24 फीसदी प्रतिनिधित्व मिल पाया है. सर्वाधिक 49 मुसलमान सांसद साल 1980 में (9.08 प्रतिशत) में चुने गए थे.
देश में 20 फीसदी से अधिक मुस्लिम आबादी वाली 96 लोकसभा सीटों पर अधिकतम नौ फीसदी मुसलमानों का प्रतिनिधित्व रहा है. मुस्लिम प्रतिनिधित्व की आंकलन रिपोर्ट के अनुसार अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के लिए परिसीमन प्रक्रिया में खामियां मुख्य वजह हैं.
‘इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जेक्टिव स्टडीज’ की ताजा रिपोर्ट के अनुसार सभी मुस्लिम बहुल सीटों का अनुसूचित जातियों के लिये आरक्षित होना मुस्लिम प्रतिनिधित्व की राह में बाधक है. 20 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम आबादी वाली नौ सीटें अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिए आरक्षित होने के कारण इन पर मुस्लिम प्रतिनिधित्व के दरवाजे बंद हो गये.
इनमें उत्तर प्रदेश की नगीना, बाराबंकी और बहराइच, पश्चिम बंगाल की कूच बिहार, जॉयनगर, मथुरापुर, बर्धमान पूर्बा और बोलपुर तथा असम की करीमगंज सीट शामिल हैं.
‘संसद में मुस्लिम प्रतिनिधित्व’ विषय पर अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार पूरे देश में लगभग 20 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम आबादी वाले 96 लोकसभा क्षेत्र हैं. इनमें सर्वाधिक 28 क्षेत्र उत्तर प्रदेश में हैं. पश्चिम बंगाल में 20, बिहार, असम और केरल में नौ, जम्मू कश्मीर में छह और महाराष्ट्र में पांच क्षेत्र हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक 2008 में परिसीमन आयोग ने विधयिका में मुस्लिम प्रतिनिधित्व और आबादी में अनुसूचित जाति एवं जनजाति की हिस्सेदारी को ध्यान में रखते हुए लोकसभा एवं विधानसभा क्षेत्रों का सीमांकन किया. इसमें 2001 की जनगणना को आधार मानते हुए 2026 तक के लिए परिसीमन कर आरक्षित सीटों का निधार्रण किया गया.
मौजूदा व्यवस्था में अनुसूचित जाति एवं जनजाति की तर्ज पर मुस्लिम समुदाय के लिये विधायिका में सीटों का आरक्षण संभव नहीं है.
अध्ययन में अपर्याप्त मुस्लिम प्रतिनिधित्व की दूसरी वजह परिसीमन के फार्मूले को बताया गया है. इसके अनुसार, परिसीमन प्रक्रिया में जिस तरह अनुसूचित जनजातियों के लिए सीट आरक्षित करने का तरीका निर्धारित है, उस तरह अनुसूचित जाति के लिए सीट निर्धारण का कोई तरीका परिभाषित नहीं किया गया है. अनुसूचित जातियों के लिये सीटों का आरक्षण पूरी तरह से परिसीमन आयोग के विवेक पर निर्भर होने के कारण यह असमानता अधिक हो गयी है.
रिपोर्ट में अनुसूचित जातियों की तुलना में मुस्लिम आबादी की अधिकता वाली नौ आरक्षित सीटों के अलावा उत्तर प्रदेश की धरौरा, अमेठी, रायबरेली, उन्नाव और सीतापुर और असम में सिल्चर सीटों पर अनुसूचित जातियों की बहुलता के बावजूद ये अनारक्षित श्रेणी में है. रिपोर्ट के अनुसार विधायिका में विभिन्न वर्गों के असमान प्रतिनिधित्व की इन वजहों का जिक्र सच्चर कमेटी की रिपोर्ट (2006) में भी किया गया है.
देश में अगले महीने होने जा रहे आम चुनाव में 96 मुस्लिम बहुल लोकसभा क्षेत्रों पर सभी दलों की नजर है. चुनावी दंगल में किस्मत आजमा रहे कुछ राजनीतिक दलों की रणनीति इन सीटों पर मतविभाजन की है तो कोई मतों के ध्रुवीकरण की पुरजोर कोशिश में है.
मुस्लिम बहुल 96 लोकसभा सीटों के अध्ययन पर आधारित शोध पत्र में यह आंकलन किया गया है. रिपोर्ट को समाज विज्ञानी शफीक रहमान ने तैयार किया है.