आजादी के पहले वाली रफ्तार से बढ़ रही है अमीरी और गरीबी के बीच की खाई


retail inflation rate increased to 3.99 percent

 

समय के साथ अमीरी और गरीबी की खाई लगातार बढ़ती जा रही है और इस मुद्दे पर तमाम बहस भी होती रहती है. लेकिन किस दौर में ये कितनी रही है, इस पर कम ही बात होती है.

अर्थव्यवस्थाओं के खुलने और पूंजीवाद के मजबूत होने के साथ ही आय के मुकाबले संपत्ति में तेजी से वृद्धि हुई है, ये सिर्फ भारत में ही नहीं पूरी दुनिया में देखा गया है. कैलीफोर्निया स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधार्थी रिषभ कुमार और सौरभ गुप्ता के शोध पेपर पर आधारित निष्कर्षों में ये बात सामने आई है.

इसके मुताबिक बीते 20 सालों में राष्ट्रीय आय के मुकाबले राष्ट्रीय संपत्ति में तेज वृद्धि हुई है. 2012 में आय के मुकाबले संपत्ति 550 से 600 फीसदी थी जबकि 19वीं सदी के अंत तक ये 350-400 फीसदी थी.

ये स्थिति सिर्फ भारत में नहीं है. चीन, यूएस, यूरोप, जापान और रूस में भी आय के मुकाबले संपत्ति तेजी से इकट्ठी हुई है.

धन संचय तीन तरीकों से होता है. बचत, संपत्ति की कीमत में इजाफा और शुरुआती धन. इसमें बड़ा इजाफा जमीन की कीमतों में वृद्धि से होता लग रहा है.

इसका मतलब है कि जिनके पास पहले से धन है वो बाकी के मुकाबले और धनी होते जा रहे हैं. औपनिवेशिक शासन के अंतिम समय में संपत्ति राष्ट्रीय आय के अनुपात में संपत्ति 6-7 साल ज्यादा थी. 1950 और 1980 के बीच ये अंतर 3-4 साल के बीच बचा. अब ये फिर से छह साल के स्तर पर लौट रहा है.

राष्ट्रीय संपत्ति के अंतर्गत सरकारी और निजी संपत्ति आती है. इसमें जमीन, मशीनें, इमारतें विदेशी में संपत्ति, सोना-चांदी शामिल किया जाता है.

दूसरी ओर राष्ट्रीय आय में शुद्ध घरेलू उत्पाद और विदेशों से आने वाली आय को शामिल किया जाता है.

राष्ट्रीय बचत में शुद्ध पूंजी निर्माण, शुद्ध विदेशी निवेश और विदेशों से भेजा गया धन शामिल होता है.

1950 से 1980 के योजनागत विकास के दौर में राष्ट्रीय बचत सरकारी क्षेत्र से अधिक प्रभावित रही, जबकि 1990 के बाद से जब अर्थव्यवस्था खोल दी गई तब इस पर निजी क्षेत्र का प्रभाव अधिक रहा. इसके बाद सरकारी देयता भी लगातार बढ़ती रही.


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