उच्च वर्ग के अधिकतम वोट जाते हैं बीजेपी के खाते में


role of caste and class in the indian electoral politics

  फाइल फोटो

भारतीय राजनीति में किसी पार्टी को सत्ता तक पहुंचाने में जाति और वर्ग महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. 16वीं लोकसभा यानी 2014 के आम चुनावों में बीजेपी को परंपरा के विपरीत सामाजिक समूहों से परे हटकर समर्थन मिला था. लेकिन अभी तक उसको समर्थन करने वाला बड़ा हिस्सा अगड़ी जातियों और अपेक्षाकृत धनी लोगों में से आता है.

इस चुनाव में इन समूहों की भूमिका कैसी रहती है यो तो परिणाम आने के बाद सामने आएगा. लेकिन पिछले चुनाव में बीजेपी को मिले समर्थन के बारे में अंग्रेजी अखबार मिंट ने एक विश्लेषण प्रकाशित किया है.

इस बारे में जुटाए गए आंकड़े राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे 2015-16 से लिए गए हैं. ये आंकड़े बीते साल जारी किए गए थे. इसके अलावा मिंट की इस रिपोर्ट में वोट शेयर के आंकड़े चुनाव आयोग की आधिकारिक वेबसाइट से जुटाए गए हैं.

इन आंकड़ों से एक बात साफ तौर पर जाहिर होती है कि बीजेपी ने अपेक्षाकृत अमीर और उच्च जाति वाले इलाकों से बहुत जोरदार समर्थन प्राप्त किया. जबकि बाकी हिस्सों से उसे इस तरह का समर्थन नहीं मिला. अन्य पार्टियां ऐसा समर्थन हासिल नहीं कर सकीं.

सीडीएस ने चुनाव के पहले किए गए एक सर्वे में कहा है कि बीजेपी इस लोकसभा चुनाव में भी पहले की तरह अमीर और उच्च वर्ग में सबसे ज्यादा वोट हासिल करेगी. ये सर्वे इसी साल मार्च में सामने आया था.

पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी की स्पष्ट जीत के पीछे का एक कारण उसे पिछड़े वर्ग के एक हिस्से का समर्थन हासिल होना भी था. हालांकि उस चुनाव में देश के उत्तर और दक्षिण हिस्से में साफ भेद दिखाई पड़ा था.

उत्तर भारत में जिन जिलों में इस तरह के पिछड़े वर्ग का वोट अधिक है वहां बीजेपी को अधिक वोट मिले थे. लेकिन दक्षिण के मामले में ऐसा नहीं था. यहां ये वोट क्षेत्रीय दलों को मिले थे.

लोकनीति के सर्वे से पता चलता है कि बीते कुछ सालों में बीजेपी पिछड़े वर्ग की अपेक्षाकृत ऊपरी जातियों के एक भाग का समर्थन पाने में सफल रही है. जबकि पिछड़े वर्ग के निचले समूहों में उसने जबरदस्त समर्थन हासिल किया है.

बीजेपी के नेता अकसर पिछड़े वर्ग में उप-वर्ग बनाने की वकालत करते रहे हैं. इस बारे में अध्ययन के लिए एक कमिटी भी गठित की जा चुकी है. पार्टी ये साबित करना चाहती है कि पिछड़े वर्ग का एक हिस्सा आरक्षण का सबसे ज्यादा लाभ लेता रहा है. जबकि दूसरे हिस्से को पर्याप्त लाभ नहीं मिल पाया है.

जानकारों के मुताबिक बीजेपी इस रणनीति के माध्यम से पिछड़े वर्ग के वोट बैंक को बांट देना चाहती है. इसकी वजह कुछ क्षेत्रीय दलों की वोट बैंक में सेंध लगाना है.

उदाहरण के लिए उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और कर्नाटक ने जेडीएस. ये ऐसी पार्टियां हैं जिनके लिए पिछड़े वर्ग का कुछ हिस्सा लगातार वोट करता रहा है. जाति भी इसका एक प्रमुख कारण है.

उत्तर भारत में बीजेपी आर्थिक रूप से अपेक्षाकृत कमजोर लेकिन संख्या में ज्यादा वाले इस हिस्से की गोलबंदी करने में सफल रही है. दक्षिण भारत में उसे अभी तक क्षेत्रीय पार्टियों का सहारा लेना पड़ता है.

अनुसूचित जातियों (एससी) के वोट बैंक में बीजेपी अभी तक सेंध नहीं लगा पाई है. अगर 2014 के आम चुनावों की बात करें तो एससी जातियों की अधिकता वाले जिलों में बीजेपी को उत्साहजनक समर्थन नहीं मिल सका था.

पंजाब, पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु ऐसे राज्य हैं जहां एससी कैटेगरी में आने वाली जातियों की संख्या सबसे अधिक है. इन राज्यों में बीजेपी अभी तक अपनी पैठ बनाने में नाकाम रही है.

देश के 640 जिलों में से 94 जिले जिनमें अपेक्षाकृत अमीरों की संख्या ज्यादा है, वहां बीजेपी को अधिकतम वोट मिले हैं. बाकी जिलों में दूसरी पार्टियां आगे रही हैं.


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