बीजेपी सरकार में दोहरी समस्या से जूझता ग्रामीण भारत


rural india is in distress, wages on is it's lowest

 

आम चुनावों की घोषणा हो चुकी है और सरकार अपनी उपलब्धियों को गिना रही है. लेकिन बीजेपी की अगुआई वाली एनडीए सरकार के दौरान ग्रामीण क्षेत्र के हालात सुधरने के बजाय लगातार गिरते गए हैं.

ग्रामीण क्षेत्र में मजदूरी में वृद्धि अपने सबसे निचले स्तर पर है. दिसंबर के महीने में ये अब तक के सबसे निचले स्तर पर रही. इसके साथ ही कृषि उपजों के मूल्य में भी काफी कमी दर्ज की गई है. ग्रामीण आय में तो गिरावट का दौर पूरे पांच साल जारी रहा.

दिसंबर महीने में खाने की चीजों में थोक मूल्यों में वार्षिक मंहगाई शून्य से 0.07 फीसदी नीचे थी. जबकि गैर खाद्य चीजों के मामले में ये 4.45 फीसदी थी.

बीते साल 2018 के दौरान राष्ट्रीय दैनिक मजदूरी दर 322.62 रही, जो इससे पहले साल के दिसंबर महीने से 3.84 फीसदी अधिक थी. जबकि ग्रामीण उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के मुताबिक मुद्रास्फीति 1.5 फीसदी रही, इसका सीधी सा मतलब है कि आय में महज 2.3 फीसदी की वृद्धि हुई.

एनडीए सरकार के दौरान दिसंबर 2014 से 2018 के बीच आय में सांकेतिक वृद्धि 4.2 फीसदी रही, जबकि वास्तविक वृद्धि महज 0.5 फीसदी रही. ये वास्तविक वृद्धि 4.2 फीसदी की मुद्रास्फीति को घटाने से प्राप्त होती है.

अब अगर 2009 से 2013 के बीच की बात करें, जब यूपीए-2 शासन में थी, तब वार्षिक आधार पर ग्रामीण आय में सांकेतिक वृद्धि दर 17.8 फीसदी थी. जबकि मुद्रास्फीति को घटाकर 6.7 फीसदी थी. इस दौरान कृषि क्षेत्र में मुद्रास्फीति 11.1 फीसदी रही थी. आंकड़े साफ गवाही दे रहे हैं कि ग्रामीण क्षेत्र में मजदूरी दर में वृद्धि बीते पांच साल में निम्नतम रही.

इन सब बहसों के बीच सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कृषि संबंधी कामों में मजदूरी का आंकलन ही नहीं हुआ है. लेबर ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक दिसंबर महीने में मुख्य रूप से कृषि से जुड़े आठ क्षेत्रों में वृद्धि दर 5.14 फीसदी रही, जो कि आम मजदूरी दर 4.68 से अधिक है. इस दौरान किसानों की उपज में बहुत कम बढ़त दर्ज की गई है, यहां तक कि कई मामलों में अपस्फीति की स्थिति भी रही है.

दूसरी ओर कुशल कामगारों जैसे बढ़ाई, मेकेनिक, पलंबर आदि के मामले में मजदूरी ग्रामीण क्षेत्र की मजदूरी से भी कम रही. ये स्थिति पांच में से तीन सालों के दौरान बनी रही. ये वृद्धि दर निर्माण क्षेत्र में कार्यरत लोगों से भी कम रही है.

अब साफ तौर पर कहा जा सकता है कि सिर्फ कृषि क्षेत्र का संकट ही ग्रामीण भारत की एकमात्र समस्या नहीं है. कृषि क्षेत्र की आय पहले से ही 14 साल के निम्नतम स्तर पर है.


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