आज से दर्शन के लिए खुलेगा सबरीमला मंदिर, प्रवेश के लिए महिलाओं को दिखाना होगा अदालती आदेश


sabarimala case sc upholds sending religious questions to larger bench

 

17 नवंबर से शुरू होने वाले दो महीने की लंबी वार्षिक तीर्थयात्रा सत्र के लिए केरल स्थित सबरीमला मंदिर खुल रहा है. वहीं केरल सरकार ने कहा है कि जो महिलाएं मंदिर में प्रवेश करना चाहती है उन्हें ‘अदालती आदेश’ लेकर आना होगा.

शीर्ष अदालत ने इस धार्मिक मामले को बृहद पीठ में भेजने का निर्णय किया था. शीर्ष अदालत ने पहले पिछले साल रजस्वला उम्र की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की अनुमति दी थी .

केरल के देवस्वओम मंत्री के सुरेंद्रन ने 15 नवंबर को कहा कि सबरीमला आंदोलन करने का स्थान नहीं है और राज्य की एलडीएफ सरकार उनलोगों का समर्थन नहीं करेगी जिन लोगों ने प्रचार पाने के लिए मंदिर में प्रवेश करने का एलान किया है.

भगवान अयप्पा मंदिर में प्रवेश करने वाली महिला कार्यकर्ताओं को पुलिस सुरक्षा प्रदान किये जाने संबंधी खबरों को खारिज करते हुए सुरेंद्रन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले को ले कर ”कुछ भ्रम” है और सबरीमला मंदिर जाने की इच्छुक महिलाओं को ‘अदालत का आदेश’ लेकर आना चाहिए.

मंत्री ने कहा, ”सबरीमला आंदोलन करने वालों के लिए स्थान नहीं है. कुछ लोगों ने संवाददाता सम्मेलन आयोजित कर मंदिर में प्रवेश करने की घोषणा की है. वे लोग केवल प्रचार के लिए ऐसा कर रहे हैं. सरकार इस तरह की चीजों का समर्थन नही करेगी.”

कुछ कार्यकर्ताओं के इस कथन के बारे में पूछे जाने पर कि शीर्ष अदालत ने 28 सितंबर 2018 के फैसले पर रोक नहीं लगायी है, मंत्री ने कहा, ”वे लोग शीर्ष अदालत का रूख कर सकते हैं और वहां से आदेश लेकर आयें और मंदिर में प्रवेश कर सकते हैं.”

उन्होंने कहा, ”आदेश में अब भी कुछ भ्रम है. सरकार कानूनी विशेषज्ञों की राय लेगी.”

राज्य माकपा नेतृत्व के करीबी ने बताया कि माकपा राज्य सचिवालय की आज यहां बैठक हुई जिसमें अदालत के फैसले पर चर्चा हुई.

उन्होंने बताया कि सचिवालय की आम भावना यह थी कि शीर्ष अदालत अपने फैसले को जबतक अंतिम रूप न हीं दे देती है तबतक महिलाओं को मंदिर में प्रवेश करने की अनुमति नहीं देने की है .

उन्होंने कहा कि जो मंदिर में प्रवेश करना चाहती हैं वह अदालत जायें और अपने पक्ष वहां से फैसला लेकर आयें.

कानून मंत्री एके बाला ने कहा कि सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले में मौजूद ‘भ्रम’ पर सक्षम कानूनी विशेषज्ञों की राय लेगी .

उच्चतम न्यायालय के जस्टिस आरएफ नरिमन ने 15 नवंबर को कहा कि सरकार को सबरीमला मामले में 3:2 के बहुमत से दिये गए फैसले में ‘असहमति का बेहद महत्वपूर्ण आदेश’ पढ़ना चाहिए.

जस्टिस नरिमन ने अपनी और जस्टिसधनन्जय वाई चन्द्रचूड़ की ओर से 14 नवंबर को दिये गए फैसले में असहमति का आदेश लिखा था.

न्यायमूर्ति नरिमन और न्यायमूर्ति चन्द्रचूड़ सबरीमला मामले की सुनवाई करने वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ के सदस्य थे ओर उन्होंने सबरीमला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने संबंधी सितंबर, 2018 के शीर्ष अदालत के फैसले पर पुनर्विचार की याचिकाओं को खारिज करते हुए को बहुमत के फैसले से असहमति व्यक्त की थी.

सबरीमला मंदिर में ‘निहत्थी महिलाओं’ को प्रवेश से रोके जाने को ‘दुखद स्थिति’ करार देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अपने अल्पमत के फैसले में कहा कि 2018 की व्यवस्था पर अमल को लेकर कोई बातचीत नहीं हो सकती है और कोई भी व्यक्ति अथवा अधिकारी इसकी अवज्ञा नहीं कर सकता है.


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