पुण्यतिथि: सफ़दर जैसों के सपने हमेशा ज़िंदा रहेंगे


death anniversary of safdar hashmi

 

महज 34 साल की छोटी सी उम्र में रंगकर्म के मार्फ़त राजनीतिक-सांस्कृतिक क्षेत्र में गहरी दखल दी थी मशहूर रंगकर्मी और सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता सफ़दर हाशमी ने. 12 अप्रैल, 1954 को जन्मे सफ़दर ने दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से अंग्रेजी में ग्रेजुएशन करने के बाद एमए किया.

शुरू के दिनों में उन्होंने अध्यापन के क्षेत्र में हाथ आजमाया था. उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के ज़ाकिर हुसैन कॉलेज के साथ-साथ उत्तराखंड के श्रीनगर और कश्मीर के श्रीनगर में भी कुछ समय तक अध्यापन का काम किया था. इसके बाद पश्चिम बंगाल सरकार में वे सूचना अधिकारी के पद पर भी रहे. लेकिन 1983 में उन्होंने यह नौकरी भी छोड़ दी और पूरी तरह से राजनीतिक-सांस्कृतिक रूप से सक्रिय हो गए. उन्होंने कुछ समय के लिए पीटीआई और इकॉनॉमिक्स टाइम्स में पत्रकार के रूप में भी काम किया था.

1979 में उन्होंने अपने साथ काम करने वाली रंगकर्मी मलयश्री हाशमी से शादी की थी. सफ़दर ने अपनी रंग मंचीय सक्रियता की शुरुआत इंडियन पीपुल्स थियेटर एसोसियशन से की थी. लेकिन बाद में उन्होंने 1978 में जन नाट्य मंच की स्थापना की और इसके बैनर तले ही कई लोकप्रिय और प्रभावी नुक्कड़ नाटक खेले.

मेक्सिम गोर्की का नाटक ‘दुश्मन’ और प्रेमचंद की कहानी पर आधारित नाटक ‘मोटेराम के सत्याग्रह’ के अलावा ‘हल्ला बोल’ भी उनके द्वारा खेले गए कुछ बेहद लोकप्रिय नाटक हैं. ‘हल्ला बोल’ नाटक के दौरान ही उनके ऊपर साहिबाबाद में 1 जनवरी, 1989 को हमला हुआ था और इसके बाद दिल्ली के एक अस्पताल में उन्होंने 2 जनवरी को दम तोड़ दिया था.

सफ़दर एक बेहद संवेदनशील और नाजुक मिजाज इंसान थे. समाज के दबे-कुचले लोगों के लिए उनकी संवेदनाएं उन्हें बागी बनाती थीं. नहीं तो और क्या वजह होती कि अच्छी-खासी नौकरी करने वाला एक नौजवान अपनी नौकरी और आराम की ज़िंदगी छोड़ अपनी सामाजिक-राजनीतिक प्रतिबद्धता निभाने लगता है. उन्होंने नाटक के अलावा गीत और कविताएं भी लिखीं. उन्होंने मजदूरों, बच्चों और औरतों के ऊपर कविताएं लिखीं. आइए यहां हम देखते हैं उनकी वो कविता जो उन्होंने मजदूरों को ध्यान में रखकर लिखी थीं.

पढ़ना-लिखना सीखो

पढ़ना-लिखना सीखो ओ मेहनत करने वालों
पढ़ना-लिखना सीखो ओ भूख से मरने वालों

क ख ग घ को पहचानो
अलिफ़ को पढ़ना सीखो
अ आ इ ई को हथियार
बनाकर लड़ना सीखो
ओ सड़क बनाने वालों, ओ भवन उठाने वालों
ख़ुद अपनी किस्मत का फ़ैसला अगर तुम्हें करना है
ओ बोझा ढोने वालों ओ रेल चलाने वालों
अगर देश की बागडोर को कब्ज़े में करना है

क ख ग घ को पहचानो
अलिफ़ को पढ़ना सीखो
अ आ इ ई को हथियार
बनाकर लड़ना सीखो

मजदूरी की खातिर लोग भटकते क्यों हैं?
तुम्हारी सूखी रोटी गिद्ध लपकते क्यों हैं?
पूछो, मां-बहनों पर यों बदमाश झपटते क्यों हैं?
पढ़ो, तुम्हारी मेहनत का फल सेठ गटकते क्यों हैं?
पढ़ो, लिखा है दीवारों पर मेहनतकश का नारा
पढ़ो, पोस्टर क्या कहता है, वो भी दोस्त तुम्हारा
पढ़ो, अगर अंधे विश्वासों से पाना छूटकारा
पढ़ो, किताबें कहती हैं- सारा संसार तुम्हारा
पढ़ो, कि हर मेहनतकश को उसका हक़ दिलवाना है
पढ़ो, अगर इस देश को अपने ढंग से चलवाना है

क ख ग घ को पहचानो
अलिफ़ को पढ़ना सीखो
अ आ इ ई को हथियार
बनाकर लड़ना सीखो

आज सफ़दर को गुजरे 31 साल हो चुके हैं लेकिन सफ़दर जैसे लोग जो इस दुनिया को ख़ूबसूरत बनाने का सपना देखा करते हैं, उनके सपने तब तक ज़िंदा रहेंगे जब तक इसे हासिल नहीं कर लेते.

सभी तस्वीरें- jananatyamanch.org से साभार


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