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क्या ‘जय भारत’ बोलकर विश्व गुरू बनेगा भारत?


saffronisation of education in bjp tenure

 

नए साल में गुजरात के स्कूली छात्रों को हाजिरी दर्ज करवाने के लिए ‘जय हिन्द’ या ‘जय भारत’ कहना पड़ेगा. गुजरात माध्यमिक एवं उच्चतर माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने यह निर्देश जारी किया है.

नोटिफिकेशन में कक्षा पहली से 12वीं तक की कक्षा के लिए हाजिरी के समय ‘जय हिन्द’ या ‘जय भारत’ कहना अनिवार्य बना दिया गया है.

गुजरात के स्कूल और शिक्षण संस्थान ‘संघ की विचारधारा’ थोपने की प्रयोगशाला रहे हैं. आमतौर पर यहां के स्कूलों की समिति के सदस्य बीजेपी के स्थानीय नेता होते हैं. स्कूलों में यहीं से बीजेपी अपना एजेंडा सेट करती रही है.

यह पहला मौका नहीं है जब बीजेपी ने ‘राष्ट्रवाद’ के नाम पर शिक्षण संस्थानों पर अपना एजेंडा थोपने की कोशिश की है. इससे पहले केन्द्र सरकार ने केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में 207 फुट ऊंचे पोल पर 125 किलोग्राम वजन वाला राष्ट्रीय ध्वज लगाने का आदेश दिया था.

बीजेपी पाठ्यक्रमों में मार्क्स, मैकॉले और मदरसा के वर्चस्व का आरोप लगाती रही है और सत्ता में आने पर किताबों में हिन्दूवादी नजरिए से बदलाव लाती है.

साल 1977 में केंद्र में बनी जनता पार्टी की सरकार में लालकृष्ण आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी मंत्री थे. तब भी पाठ्यक्रम को बदलने की कोशिश हुई. लेकिन सरकार ज्यादा समय तक नहीं चल पाई. और आरएसएस बैकग्राउंड के दोनों नेताओं की कोशिश नाकाम रही.

साल 1998 से 2004 तक प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार रही. मानव संसाधन विकास मंत्री मुरली मनोहर जोशी के नेतृत्व में इतिहास की किताबों को दोबारा लिखा गया. तब राजस्थान की पाठ्य पुस्तकों में नेहरू को कमतर दिखाने की कोशिश हुई. राजस्थान में कक्षा आठ में पढ़ाए जाने वाले समाज विज्ञान की किताब में नेहरू के परिचय को सीमित कर दिया गया था.

किताब के मुताबिक, “संविधान सभा में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 13 दिसंबर 1946 को संविधान के उद्देश्यों को तय करने वाला एक ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ रखा जो 22 जनवरी 1947 को सभी की सहमति से पारित हुआ.” किताब में दिए गए उनके परिचय से कहीं ये पता नहीं चलता था कि नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री थे.

‘हमारे गौरव’ शीर्षक अध्याय में गौरव पुरुषों की सूची में गैर हिन्दू नामों को हटा दिया गया. इस सूची में कवि चंद बरदाई, ‘विश्व के प्रथम शल्यचिकित्सक’ सुश्रुत, प्राचीन काल के गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त और आधुनिक काल के गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन तथा महर्षि पाराशर को जगह मिली.

सरकार बदलने के बाद पाठ्यक्रम बदलने का सिलसिला पुराना रहा है. राजस्थान सहित मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और गुजरात में बीजेपी के शासनकाल में ऐसा पाठ्यक्रम डाला गया जो बच्चों को तर्कशील बनने से रोकता है. 

13 सितंबर 2009 को बीबीसी में छपी खबर के मुताबिक, “कक्षा 11वीं के राजनीति विज्ञान की किताब में राष्ट्रीय आन्दोलन में दीनदयाल उपाध्याय के योगदान को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया है. साथ ही उपाध्याय को अर्थशास्त्री बताया गया है. ऐसे ही इसके भाग दो में एनी बेसेंट के हवाले से हिंदुत्व की तारीफ की गई है.”

बीजेपी शुरुआत से प्राचीन और मध्ययुगीन इतिहास में बदलाव कर ‘भारत गौरव’ का प्रचार करती रही है. वर्तमान में बीजेपी नेतृत्व की सरकारें आधुनिक भारत के इतिहास को मनमाफिक लिखने की कोशिश कर रही हैं.

8 मई 2016 को वेब दुनिया में छपी खबर के मुताबिक तत्कालीन वसुंधरा राजे सरकार ने 8वीं की समाज विज्ञान की किताब से देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू  का नाम हटा दिया था. नए संस्करण में महात्मा गांधी, भगत सिंह, बाल गंगाधर तिलक, सुभाषचंद्र बोस जैसे नेहरू के समकालीन लोगों के नाम हैं.

राजस्थान पाठ्य पुस्तक मंडल राजस्थान के सरकारी स्कूलों के लिए किताबों का प्रकाशन करती है. वेबसाइट पर अपलोड संशोधित संस्करण में हिंदू महासभा के नेता वीडी सावरकर का महिमामंडन किया गया है.

जवाहर लाल नेहरू से संघ का सीधा वैचारिक संघर्ष रहा है. सामाजिक कार्यकर्ता टिकेंद्र सिंह पंवर लिखते हैं, “नेहरू पर मोदी के लगातार हमलों का पहला कारण देश की संकल्पना का धर्मनिरपेक्ष और एक लोकतांत्रिक राष्ट्र का होना है. यह देश को आरएसएस की अवधारणा के बिल्कुल विपरीत बनाता है.”

कांग्रेस नेताओं ने पाठ्यक्रम में बदलाव का विरोध किया था. अशोक गहलोत ने कहा था, “राष्ट्रवाद का दंभ जताने वाले आरएसएस ने आजादी की लड़ाई से न केवल अपने को दूर रखा था, बल्कि सविनय अवज्ञा से लेकर अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन तक का विरोध भी किया था.”

राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद एक बार फिर नेहरू को पाठ्यक्रमों में शामिल करने की बात हो रही है. लेकिन सवाल उठता है कि क्या सरकार बदलने से सत्य भी बदलता है?

पंजाब में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद  सिख गुरुओं के नाम पाठ्यक्रम से हटाने पर विवाद हुआ था. 23 मई 2018 को छपी ख़बर के मुताबिक उत्तर प्रदेश के मदरसों में एनसीईआरटी की किताब पढ़ाने के लिए योगी कैबिनेट ने मंजूरी दी. इसके पीछे संवैधानिक मूल्यों का हवाला दिया गया.

मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर आपातकाल के इतिहास को सीबीएसई के पाठ्यक्रम में शामिल करने की बात पहले ही कह चुके हैं. उन्होंने 26 जून 2017 को जयपुर में आपातकाल की 43वीं बरसी पर आयोजित ‘काला दिवस’ कार्यक्रम में पाठ्यक्रम को अधूरा बताया था. उन्होंने कहा, “हमने यह तय किया है कि हम पाठ्यक्रम में बदलाव कर आपातकाल की सत्यता के बारे में विद्यार्थियों को भी बताएंगे, ताकि इतिहास की सही व्याख्या हो सके.”

ख़बर है कि केन्द्र सरकार एनसीईआरटी की किताबों में आगामी सत्र में व्यापक बदलाव की तैयारी करने जा रही है. नए पाठ्यक्रम में 12वीं की राजनीति विज्ञान की किताब में बीजेपी के उत्थान और कांग्रेस के पतन को प्रमुखता से जोड़ा जाएगा. 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार को ‘कांग्रेस का पतन’ शीर्षक देने की चर्चा है. पाठ्यक्रम में बीजेपी को मुस्लिम महिलाओं का हितैषी कहा गया है. बीजेपी के बारे में कहा गया है कि साल 1985 में शाहबानो मामले में भी उसने पीड़िता का साथ दिया था जबकि कांग्रेस मौलवियों के साथ थी.

दरअसल 12वीं के राजनीति विज्ञान की किताब में कई बातें बीजेपी को असहज करने वाली हैं. ‘स्वतंत्र भारत में राजनीति’ किताब में बीजेपी को सांप्रदायिक पार्टी बताया गया है. किताब में गुजरात में साल 2002 के दंगों के समय मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राजधर्म नहीं निभाने का जिक्र भी है. हालांकि मोदी सरकार के आने के बाद भी इसे अभी तक बदला नहीं गया है.

इस किताब में कहा गया है, “बीजेपी को 1980 और 1984 के चुनावों में खास सफलता नहीं मिली. 1986 के बाद इस पार्टी ने अपनी विचारधारा में हिंदू राष्ट्रवाद के तत्त्वों पर जोर देना शुरू किया. बीजेपी ने हिंदुत्व की राजनीति का रास्ता चुना और हिंदुओं को लामबंद करने की रणनीति अपनाई.”

केन्द्र में बीजेपी-एनडीए की सरकार आने के बाद पाठ्यक्रम में बदलाव और उच्च शिक्षण संस्थानों का भगवाकरण तेज हुआ है. विश्वविद्यालयों में आरएसएस समर्थक कुलपति की भर्ती को प्राथमिकता दी गई है. और संस्थानों में हिन्दुत्व को पोषित करने वाले कार्यक्रमों का खुलेआम आयोजन हुआ है.

बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में ‘श्री राम जन्म भूमि: स्थिति और संभावनाएं’ कार्यक्रम का आयोजन किया गया है. वहीं भारतीय जनसंचार संस्थान के नई दिल्ली केन्द्र में वैदिक मंत्रोच्चारण और यज्ञ जैसे कर्मकांड का आयोजन किया गया. साल 2017 में  मीडिया स्कैन, गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति, नई दिल्ली और आईआईएमसी के संयुक्त तत्वाधान में ‘वर्तमान परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रीय पत्रकारिता’ का आयोजन किया गया.

‘वर्ल्‍ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग 2019’ के टॉप 250 में भारत के एक भी संस्थान को जगह नहीं मिल पाई है. ऐसे में सरकार की पहली प्राथमिकता शिक्षण संस्थानों की गुणवत्ता बढ़ानी होनी चाहिए थी. किताबों में भारत को विश्व गुरू लिखकर और जय भारत बोलकर क्या वास्तव में विश्व गुरू बना जा सकता है?

सभी तस्वीरें – कुमार गौरव


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