कर्नाटक: सुप्रीम कोर्ट ने कहा, विधानसभा अध्यक्ष को नियमों के मुताबिक फैसला लेने की खुली छूट
कर्नाटक के बागी विधायकों के मामले पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि विधानसभा अध्यक्ष को खुली छूट है कि वो नियमों के आधार पर फैसला लें. कोर्ट ने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष को एक निश्चित समय में फैसला लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता.
उधर बीजेपी नेता और कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदुरप्पा ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा. उन्होंने कहा कि सरकार अपना विश्वास खो चुकी है, इसलिए अब ये ज्यादा दिन टिकने वाली नहीं है.
इससे पहले बागी विधायकों की तरफ से वकील मुकुल रोहतगी ने सुप्रीम कोर्ट में उनका पक्ष रखा था. उन्होंने कहा था कि इस्तीफा सौंपे जाने के बाद उसका निर्णय गुण-दोष के आधार पर होता है न कि अयोग्यता की कार्यवाही लंबित रहने के आधार पर, विधानसभा अध्यक्ष को देखना होगा कि इस्तीफा स्वेच्छा से दिया गया है या नहीं.
रोहतगी ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि कर्नाटक विधानसभा के अध्यक्ष को विधायकों का इस्तीफा स्वीकार करना ही होगा, उससे निपटने का और कोई तरीका नहीं है. उन्होंने कहा कि विधानसभा में विश्वास मत होना है और बागी विधायकों को इस्तीफा देने के बावजूद पार्टी की व्हिप का मजबूरन पालन करना पड़ेगा.
रोहतगी ने कहा था कि बागी विधायकों ने बीजेपी के साथ मिलकर षड्यंत्र रचा है इसे साबित करने के लिए कोई साक्ष्य नहीं है.
विधायकों का पक्ष रखते हुए रोहतगी ने कहा कि अयोग्यता कार्यवाही कुछ नहीं है बल्कि विधायकों के इस्तीफा मामले पर टाल-मटोल करना है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस-जदएस की सरकार अल्पमत में रह गई है, विधानसभा अध्यक्ष इस्तीफा स्वीकार नहीं कर हमें विश्वासमत के दौरान सरकार के पक्ष में वोट डालने के लिए बाध्य करने का प्रयास कर रहे हैं.
विधायकों की तरफ से कहा गया कि विधानसभा अध्यक्ष ने हमें अयोग्य ठहराने के लिए इस्तीफे को लटकाए रखा, अयोग्य ठहराए जाने से बचने के लिए इस्तीफा देने में कुछ भी गलत नहीं है.
इसके बाद कर्नाटक विधानसभा अध्यक्ष की ओर से वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने पक्ष रखा था.
सिंघवी ने कहा था कि विधानसभा अध्यक्ष से तय समय सीमा में विधायकों के इस्तीफे पर फैसला लेने को नहीं कहा जा सकता है.
सिंघवी ने कहा कि कर्नाटक विधानसभा के अध्यक्ष ने अभी तक विधायकों के इस्तीफे और अयोग्यता पर फैसला नहीं लिया है, न्यायालय के पास दंडित करने का पूरा अधिकार है.
कुमारस्वामी की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा था कि विधानसभा अध्यक्ष को तय समय में फैसला करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है, न्यायालय के पास विधानसभा अध्यक्ष को विधायकों के इस्तीफे और अयोग्यता पर यथास्थिति बनाए रखने का अंतरिम आदेश देने का अधिकार नहीं है.
धवन ने कहा कि यह विधानसभा अध्यक्ष बनाम न्यायालय का मामला नहीं है, यह मुख्यमंत्री और एक ऐसे व्यक्ति के बीच का मामला है जो सरकार गिराकर खुद मुख्यमंत्री बनना चाहता है, न्यायालय को विधायकों की अर्जी सुनवाई के लिए स्वीकार नहीं करनी चाहिए थी.