SC ने फाइनेंस एक्ट 2017 के तहत केंद्र द्वारा बनाए गए नियमों के रद्द किया
सुप्रीम कोर्ट ने वित्त अधिनियिम 2017 के सेक्शन 184 की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा. इसके तहत केंद्र सरकार के पास विभिन्न न्यायाधिकरणों के सदस्यों की नियुक्ति और सेवा शर्तों से संबंधित नियम बनाने का अधिकार है.
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने सेक्शन 184 के तहत बनाए गए पुराने नियमों को रद्द कर दिया और केंद्र सरकार को फिर से नए नियम बनाने के निर्देश दिए. सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम ऑर्डर पास करते हुए निर्देश दिया कि जबतक केंद्र सरकार नए नियम ना बना ले, तब तक न्यायाधिकरणों में नियुक्ति संबंधित कानूनों के अनुसार हो.
वहीं इस सवाल पर कि क्या वित्त अधिनियम 2017 को धन विधेयक के तौर पर पारित किया जा सकता है, कोर्ट ने कहा कि इस मुद्दे पर एक बड़ी बेंच के अवलोकन की जरूरत है और इसे उसके पास भेज दिया गया है.
न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि नियुक्ति के तरीके से न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर असर पड़ता है और न्यायाधिकरणों को सैद्धांतिक रूप से विशेष निकाय माना जाता है. इस आधार पर न्यायाधिकरणों में नियुक्तियों की जिम्मेदारी विधायिका को होनी चाहिए.
वहीं धन विधेयक के मुद्दे पर न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि राज्यसभा को दरकिनार नहीं किया जा सकता है. राज्यसभा देश की विविधता को दर्शाती है और शक्ति संतुलन के लिए जरूरी है.
असल में 10 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने रोजर मैथ्यू एंड रिवेन्यू बार एसोसिएसन से जुड़े वित्त अधिनियम 2017 की संवैधानिकता के मामले में फैसला रिजर्व रख लिया था. इस अधिनियम ने विभिन्न न्यायाधिकरणों की शक्ति संरचना को प्रभावित किया था.
याचिकाकर्ता की तरफ से दलील देते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद पी दातर ने कहा कि वित्त अधिनियम जिसे धन विधेयक के तौर पर पास किया गया, वो न्यायाधिकरणों की शक्ति संरचना को नहीं बदल सकता है.
वहीं अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट लोकसभा स्पीकर द्वारा अनुच्छेद 110 के तहत किसी विधेयक को धन विधेयक के तौर पर प्रमाणित करने के निर्णय की न्यायिक समीक्षा नहीं कर सकता है.