अयोध्या भूमि अधिग्रहण कानून के खिलाफ याचिका स्वीकार
सुप्रीम कोर्ट अब केंद्र सरकार के 1993 के भूमि अधिग्रहण कानून की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करेगा. इस कानून के आधार पर ही केंद्र सरकार ने अयोध्या में 67 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया था. इस 67 एकड़ भूमि बाबरी मस्जिद की विवादित भूमि भी शामिल है.
लखनऊ के सात निवासियों ने शुक्रवार को भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ के समक्ष यह याचिका दायर की थी. इसके बाद पीठ ने इस मामले को अयोध्या से जुड़े अन्य मामलों के साथ ही सूचीबद्ध कर दिया.
सुप्रीम कोर्ट पहले ही 30 सितंबर, 2010 के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील सुनने के लिए पांच जजों वाली संवैधानिक पीठ का गठन कर चुकी है. जिसमें भारत के मुख्य न्यायाधीश सहित न्यायधीश एसए बोबडे, डीवाई चंद्रचूड़, अशोक भूषण और एस अब्दुल नजीर शामिल हैं. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने विवादित 2.77 एकड़ जमीन को तीन हिस्सों में बांटने का आदेश दिया था. राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जमीन का एक हिस्सा निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड के बीच बांटा जाना था और एक हिस्सा रामलला विराजमान के हिस्से में गया था.
वैसे पीठ को इस मामले में बैठक 29 जनवरी को करनी थी. लेकिन, न्यायधीश एसए बोबडे की अनुपस्थिति की वजह से बैठक टल गई थी.
शुक्रवार की याचिका अयोध्या अधिनियम,1993 को चुनौती देती है. याचिका में कहा गया है कि संसद के पास राज्य से संबंधित भूमि का अधिग्रहण करने का कोई अधिकार नहीं है . बल्कि राज्य के पास अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाले मामलों के संबंध में विशेष प्रावधान करने की शक्ति है. यह दूसरी बार है. पहली बार, यह चुनौती एम इस्माइल फारुकी बनाम केंद्र सरकार मामले में दी गई थी.
1994 के अपने फैसले में न्यायालय की एक संविधान पीठ ने कानून की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा था. नई याचिका में कहा गया है कि अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत हिंदुओं के धर्म संरक्षण के अधिकार का उल्लंघन करता है. याचिका में कहा गया है कि केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार को “पूजा, दर्शन और पूजा के स्थानों पर अनुष्ठान करने से रोकने के लिए भूमि पर स्थित पूजा के स्थानों पर दखल नहीं देनी चाहिए.
इस अधिनियम के तहत विशेष रूप से राम जन्म भूमि न्यास से संबंधित 67 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया गया, जिसमें मानस भवन, संकट मोचन मंदिर, राम जन्मस्थान मंदिर, जानकी महल और कथा मंडप शामिल हैं. याचिका में ये तर्क भी दिया गया है कि संविधान के अनुच्छेद 294 के अनुसार, राज्य के भीतर की भूमि राज्य के अधिकार क्षेत्र में आती है.