प्रधानमंत्री श्रम-योगी मानधन योजना: कितना आश्वस्त है मजदूर वर्ग


 schemes for labours in 2019 budget

 

सुबह के छह बजे के आस-पास का वक्त था, हवा इस कदर ठंडी थी की हाड़ कंपा दे और कोहरा ऐसा कि कुछ भी देखना दूभर हो रहा था. लेकिन अपने साजो-सामान के साथ तैयार मजदूरों की आंखे कोहरे को चीरती हुई किसी को तलाश रहीं थी. ये नजारा नोएडा के सेक्टर 57 के लेबर चौक का था. इन विपरीत हालात में मजदूर काम पर ले जाने वालों की बाट जोह रहे थे.

हम सुबह-सुबह लेबर चौक पर मजदूरों के सरोकार के मुद्दों पर बात करने पहुंचे थे. नोएडा के इस इलाके में मजदूर काम की तलाश में इकट्ठे होते हैं. हालात ऐसे होते हैं कि मजदूर ज्यादा और काम कम. इस वजह से काफी लोगों को खाली हाथ ही लौट जाना पड़ता है.

बीती एक फरवरी को नरेंद्र मोदी सरकार ने अपना बजट पेश कर दिया. बजट को देख कर साफ बताया जा सकता है कि चुनाव नजदीक हैं. किसान, मजदूर और मध्य वर्ग के लिए लोकलुभावन योजनाओं की बेहतरीन पैकेजिंग की गई है. इसमें कथित रूप से मजदूरों के हितों को ध्यान में रखते हुए ‘प्रधानमंत्री श्रम-योगी मानधन योजना’ पेश की गई है.

सरकार के इस एलान से मजदूर वर्ग को कितना फायदा हो सकता है, हमने इस बारे में मजदूरों की राय जानने की कोशिश की. पहले तो ज्यादातर लोगों को ऐसी किसी योजना का पता नहीं था, जब बताया तो उनके चेहरे पर खुशी का कोई भाव नजर नहीं आया.

उत्तर प्रदेश के बाराबंकी के रहने वाले जयवीर सिंह राजमिस्त्री का काम करते हैं. उन्होंने बताया कि, ‘ये पेंशन तो बेकार है. हमें तो रोज काम मिल जाए बस, बाकी सब तो हम कर लेंगे. उन्होंने बताया कि महीने भर में 10-12 दिन ही काम मिल पाता है. जैसे-तैसे करके गुजारा चला रहे हैं. ना किराया देने के पैसे हैं, ना बच्चों को पढ़ाने के लिए’.

बिहार के मुज्जफरपुर के रहने वाले जुल्फिकार हैदर भी कुछ ऐसा ही सोचते हैं. उनके मुताबिक बीते कुछ सालों में उन लोगों की हालत और खराब हुई है. नोटबंदी के बाद से ही उनका काम मंदा चल रहा है. ना मजदूरी मिल रही है और ना कोई और काम.

लेबर चौक की भीड़ में कई ऐसे भी थे जो पहले किसी कारखाने में काम करते थे. लेकिन नोटबंदी ने उनकी नौकरी छीन ली और अब वे सड़क पर खड़े होकर काम तलाशते हैं.

गोरखपुर के रहने वाले राकेश ने 12वीं तक पढ़ाई की है. कई नौकरियों के लिए आवेदन किया. लेकिन आज लेबर चौक ही उनका पेट पालता है. उन्होंने कहा कि जब मोदी और योगी जी आए थे तो अच्छे दिन का वादा किया था. आज अच्छे तो नहीं लेकिन बुरे दिन जरुर आ गए हैं.

गीता मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ की रहने वाली हैं. और दिहाड़ी मजदूरी के लिए रोज सुबह चौक पर आ जाती हैं. लेकिन रोज काम कहां मिलता है. महीने में 15 दिन भी काम मिल जाए तो गनीमत समझिए. पेंशन योजना को लेकर उन्हें कोई खुशी नहीं हुई.

इसी भीड़ में हमें कानपुर देहात के रहने वाले महेश भी मिले. उन्होंने भी कहा कि मजदूरी ना मिलना बहुत बड़ी चुनौती है. हालांकि वह ये मानते हैं कि केंद्र की मोदी और उत्तर प्रदेश की योगी सरकार गरीबों के लिए बहुत अच्छा काम कर रही है. लेकिन उनकी हालात सुधर नहीं रही है.

लेबर चौक पर लोगों से बात करते-करते मोटर साइकिल से एक ठेकेदार आया और उसे मजदूरों ने घेर लिया. 3-4 मिनट मोल-भाव के बाद वो दो मजदूरों को अपने साथ ले गया. दोपहर के करीब 12 बजने वाले थे, लेकिन मजदूरों की भीड़ में से 10 फीसदी को अब तक कोई काम नहीं मिला था.

अब कम से कम ये तय हो गया है कि ये लोग खाली हाथ घर लौटने वाले हैं. वैसे इनके लिए ये कोई नई बात नहीं थी. लेकिन आज खाना कैसे पकेगा ये सवाल इन मजदूरों के चेहरे पर साफ दिख रहा था.

सरकार की माने तो ये योजना जीडीपी में आधी हिस्सेदारी रखने वाले असंगठित क्षेत्र के 42 करोड़ मजदूरों के लिए लाई गई है. इसके तहत रेहड़ी वाले, रिक्शा चालक, हथकरघा कामगार, निर्माण कार्यों में लगे मजदूर जैसे असंगठित क्षेत्र में काम करने वालों के लिए पेंशन दी जाएगी.

इसका लाभ उनको मिलेगा जिनकी मासिक आय 15000 रुपये से कम है. उन्हें 60 साल की उम्र के बाद हर महीने 3000 रुपये पेंशन दी जाएगी. और इसके लिए 29 साल के मजदूर को हर महीने 100 रुपये और 18 साल के मजदूर को हर महीने 55 रुपये जमा करने होंगे. इतना ही पैसा सरकार भी जमा करेगी. इस स्कीम के पहले साल के लिए 500 करोड़ राशि आवंटित की गई है.

केंद्र सरकार की ये स्कीम कितनी सफल होती है ये तो वक्त बताएगा. लेकिन फिलहाल मजदूरों की हालत साफ बता रही थी कि पेंशन से पहले इन लोगों को काम की जरूरत है और काम मिल जाए तो शायद पेंशन की जरूरत ही ना पड़े.


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