लैंगिक समानता के मानक पर विफल भारत


India ranks 95 among 129 countries in global gender equality index

 

संयुक्त राष्ट्र के ‘सतत विकास लक्ष्य’ (एसडीजी) हासिल करने की दिशा में चार राज्यों/केंद्र शासित राज्यों को छोड़कर भारत के बाकी सभी राज्यों का लैंगिक समानता के मानकों पर प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा है. नीति आयोग ने पहली बार 17 सतत विकास लक्ष्यों में से 13 लक्ष्यों पर देश के अलग-अलग राज्यों के प्रदर्शन का आंकलन कर एसडीजी इंडिया इंडेक्स 2018 जारी की है.

इस रिपोर्ट के अनुसार, लैंगिक समानता के मानक पर भारत के दो राज्य केरल और हिमांचल प्रदेश ही खरे उतर पाए हैं. वहीं, इस मामले में उत्तर प्रदेश का प्रदर्शन सबसे खराब रहा है.

बता दें कि साल 2015 सितंबर में संयुक्त राष्ट्र महासभा में 2030 तक के लिए एक ‘एजेंडा सतत विकास लक्ष्य’ तय किया गया था. इस महासभा में भारत सहित 193 देश शामिल थे जिसमें विश्व की बेहतरी के लिए 17 सतत विकास लक्ष्यों को सुनिश्चित किया गया था. इनमें विश्व से गरीबी, लैंगिक असमानता, भूख कम करने, सामाजिक असमानता कम करने और बेहतर पोषण आदि सुनिश्चित करने जैसे लक्ष्य शामिल थे.

भारत ने सतत विकास लक्ष्यों का यह एजेंडा 1 जनवरी 2016 से 2030 तक के लिए लागू किया है.

इंडेक्स में दिए गए आंकड़ों के अनुसार, हाल में सबरीमला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर लगातार विरोध-प्रदर्शनों का सामना कर रहा केरल और हिमांचल प्रदेश लैंगिक समानता के मानक पर शीर्ष पर हैं. केरल और हिमाचल प्रदेश दोनों को ही इस इंडेक्स में 100 में से 69 अंक मिले हैं. वहीं, जनसंख्या के आधार पर सबसे ऊपर रहने वाले उत्तर प्रदेश का प्रदर्शन 42 अंको के साथ सबसे खराब रहा है.

एसडीजी भारत सूची के वर्गीकरण का आधार

13 एसडीजी के संदर्भ में प्रत्येक राज्य और केन्द्र शासित प्रदेश के प्रदर्शन को 0-100 के पैमाने पर मापा गया है. यह राज्यों के औसत प्रदर्शन को दिखलाता है. यदि किसी राज्य/केन्द्र शासित प्रदेश ने 100  अंक प्राप्त किए तो इसका अर्थ है कि राज्य ने 2030 के राष्ट्रीय लक्ष्यों  को हासिल कर लिया है. 65 – 99 अंक हासिल करने पर उसे ‘अग्रणी’ और 50-64 अंक हासिल करने पर उसका प्रदर्शन अच्छा माना जाता है. जिन राज्यों को  0 – 49  अंक मिलते हैं, उन्हें आकांक्षी राज्यों की श्रेणी में रखा जाता है.

रिपोर्ट के अनुसार, हिमांचल प्रदेश, केरल, तमिलनाडु, चंडीगढ़ और पांडिचेरी जैसे राज्यों ने अग्रणी श्रेणी में जगह अवश्य बनाई है, लेकिन देश का कोई भी राज्य/ केंद्र शासित राज्य निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाया है. वहीं असम, बिहार और उत्तर प्रदेश का प्रदर्शन लैंगिक समानता के मानक पर सबसे खराब रहा है. अगर लैंगिक समानता के मानक पर सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का कुल औसत देखा जाए तो यह 100 में से सिर्फ 36 है. यह बताता है कि लैंगिक समानता के मानक पर देश की समग्र तस्वीर बेहद चिंताजनक है.

एसडीजी इंडेक्स में महिलाओं से जुड़े संकेतक

मातृत्व लाभ: यह संकेतक एसडीजी 1 का हिस्सा है. आंकड़ों के अनुसार. देश की 63.6  फीसदी  महिलाएं ऐसी हैं जिन्हें मातृत्व लाभ नहीं मिल पाता है .

खून की कमी:   भारत में 50 फीसदी गर्भवती महिलाओं में खून की कमी पाई गई है. इस सूचकांक में  दादरा और नगर हवेली का प्रदर्शन सबसे खराब रहा है. केंद्र शासित इस प्रदेश में 67.9  फीसदी गर्भवती महिलाओं में खून की कमी है . बता दें के यह संकेतक 2030  तक एसडीजी 2 का हिस्सा है.

मातृ मृत्यु दर:  भारत में प्रति एक लाख प्रसव पर मरने वाली महिलाओं की संख्या  का औसत 130 है. साल 2030 तक इसको घटाकर 70 करने का लक्ष्य रखा गया है. यह संकेतक एसडीजी 3  का हिस्सा है.

खाना पकाने का ईंधन: भारत में अब तक 56.2 फीसदी घरों में खाना पकाने के ईंधन जैसे रसोई गैस, प्राकृतिक गैस या बायोगैस उपलब्ध नहीं हो पाई है.  महिलाओं के स्वास्थ्य को इससे बड़ा नुकसान होता है. यह संकेतक भारत के एसडीजी 7 लक्ष्य का हिस्सा है .


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