अब ‘कार बम’ है आतंकियों का नया हथियार


security lapse in jammu kashmir pulwama terror attack

 

जम्मू-कश्मीर में आतंकी हमलों के दौरान ऐसा कम ही हुआ है कि आतंक फैलाने के लिए फिदायीन हमले में कार का इस्तेमाल किया गया है.

द टेलीग्राफ में छपी खबर के मुताबिक, यह हमला अफगानिस्तान और सीरीया की याद दिलाता है क्योंकि इस तरह के फिदायीन आतंकी हमले में कार या गाड़ियों का इस्तेमाल इन देशों में ज्यादा होता है.

जैश-ए-मोहम्मद साल 1999 के बाद कल कश्मीर के पुलवामा में दूसरा फ़िदायीन हमला करने में कामयाब रहा. गोरिपोरा इलाके के अवंतिपोरा में हुए इस आतंकी हमले में सीआरपीएफ के 37 जवानों की मौत हो गई है. हमले में एक छोटी आकार की गाड़ी का इस्तेमाल किया गया था. ग्रह मंत्रालय ने कहा है कि ये एक फिदायीन हमला था.

काकापोरा के रहने वाले आदिल अहमद ने कल शाम 3 बजकर 15 मिनट पर जम्मू कश्मीर हाईवे पर अपनी कार से इस हमले को अंजामा दिया. अहमद ने अपनी विस्फोटक से भरी गाड़ी उस समय ब्लास्ट की जब हाईवे से सीआरपीएफ का काफिला गुजरा रहा था.

इस हमले के बाद राज्य की पूरी सुरक्षा व्यवस्था पर बड़े सवाल खड़े हो गए हैं. क्योंकि सुरक्षा जांच एजेंसियों से मिली जानकारी के मुताबिक इस हमले की चेतावनी काफी समय पहले ही जारी कर दी गई थी. इसके अलावा जांच एजेंसियों ने यह भी आशंका जताई थी कि आतंकी गुरुवार को जम्मू कश्मीर हाईवे से गुजरने वाले सीआरपीएफ के काफिले पर कड़ी नजर रख हुए हैं.

सुरक्षा अधिकारियों ने बताया कि यह हमला कुछ वैसे ही है जैसा साल 2000 में हुआ था. वो बताते हैं कि जम्मू कश्मीर में आतंकी संगठन आईईडी ब्लास्ट और गोली बारी को ही आतंक का हथियार बनाते हैं. वो याद करते हुए बताते हैं कि घाटी में यह अपनी तरह का दूसरा हमला है.

सुरक्षा एजेंसियों में मौजूद सूत्रों ने बाताया कि हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्रालय की एक मीटिंग हुई थी, जिसमें जांच एंजेसियों से प्राप्त जानकारी के आधार पर कार हमले को लेकर आगाह किया गया था.
एक सुरक्षा अधिकारी ने बताया कि “जांच एजेंसियां बीते एक साल से ऐसे हमले की चेतावनी जारी कर रही थीं, पर हमले की चेतावनी से निपटने का कोई उचित समाधान मौजूद नहीं था.”

अलग-अलग अधिकारियों के मुताबिक इस तरह की खुफिया चेतावनी होने के बावजूद सुरक्षा बलों ने कोई ठोस कदम उठाए या नहीं या इसे गंभीरता से लिया गया या नहीं, ये आगे जांच में ही साफ हो पाएगा.

एक अधिकारी ने बताया कि जहां से यह काफिला गुजर रहा था, वहां पहले ही सारी सुरक्षा जांच पूरी कर ली गई थी.

वो सवाल पूछते हुए है कि “जांच के बावजूद इतना बड़ा आतंकी हमला कैसे हुआ? अब यह जांच से बाद ही साफ हो पाएगा कि इसमें कहां चूक हुई, क्या इस दौरान जांच की सभी मानदंडों पर गौर किया गया था.”

सीआरपीएफ के निदेशक आरआर भटनागर ने बताया कि “2500 जवानों का यह काफिला जम्मू से श्रीनगर की ओर जा रहा था. जिसमें सीआरपीएफ की कई बसे शामिल थीं, हर एक बस में करीब 35 से 40 जवान मौजूद थे.”

उन्होंने घटना की निंदा करते हुए कहा, “बीते कुछ समय में हुआ सीआरपीएफ पर यह सबसे बड़ा हमला है. कश्मीर में इस तरह के हमले नहीं होते हैं. अब यह जांच के बाद ही साफ हो पाएगा कि इस दौरान सभी सुरक्षा के सभी कदम उठाए गए या नहीं.”

सीआरपीएफ के एक अधिकारी ने बताया कि “बीते दो दिनों से खराब मौसम के कारण हाईवे बंद था. इसलिए जब हाईवे यातायात के लिए खुला तो बड़ी संख्या में जवान जम्मू से श्रीनगर के लिए रवाना हुए. अमूमन करीब 1000 जवान काफिले का हिस्सा होते हैं, लेकिन कल के काफिले में करीब 2,547 जवान शामिल थे.”

काफिले में क्षतिग्रस्त हुई बस के अलावा कुछ बसों पर गोली बारी के भी निशान पाए गए हैं. आशंका जताई गई है कि बस में कार से विस्फोट करने वाले आतंकी के साथ अन्य आतंकी भी मौजूद थे. फिलहाल हमले को किस तरह अंजाम दिया गया इसे लेकर कोई आधिकारिक सूचना नहीं जारी की गई है.

लेथपोरा कमांडो ट्रेनिंग सेंटर घटना स्थल से कुछ ही दूरी पर मौजूद है. इस सेंटर पर जैश के आतंकियों ने एक साल पहले 31 दिसंबर, 2017 को हमला किया था, जिसमें सीआरपीएफ के सात जवानों ने अपनी जान गंवाई थी. इसके अलावा लेथपोर के पास पामपोर में जून, 2016 में आतंकियों ने बड़े आतंकी हमले को अंजाम दिया था. जिसमें आठ जवानों की मौत हो गई थी और 22 से ज्यादा जवान घायल हो गए थे.

जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्य पाल मलिक ने माना है कि गुरुवार को हुआ पुलवामा आतंकी हमला आंशिक रूप से खुफिया विफलता का परिणाम है. खासकर इस तथ्य के कारण कि सुरक्षा बल विस्फोटकों से लदी स्कॉर्पियो और मूवमेंट का पता नहीं लगा सके. इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए मलिक ने कहा, ‘हम इसे (खुफिया विफलता) स्वीकार नहीं कर सकते. हम हाईवे पर चलते हुए विस्फोटकों से भरे वाहन का पता नहीं लगा पाए या उसकी जांच नहीं कर पाए. हमें स्वीकार करना चाहिए कि हमसे गलती हुई है.


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