बीजेपी सरकार में अर्थव्यवस्था के साथ शेयर बाजार भी रहा फिसड्डी
विकास के तमाम पैमानों पर फेल होने के बावजूद कई बार बीजेपी सरकार में स्टॉक मार्केट के बेहतर होने की शेखी बघारी जाती है. लेकिन ये दावा भी तथ्यों पर खरा नहीं उतरता. अंग्रेजी अखबार डेक्कन हेराल्ड ने इस बारे में तथ्यों पर आधारित एक रिपोर्ट पेश की है.
बीजेपी की अगुआई वाली एनडीए सरकार के दौरान स्टॉक मार्केट के उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन ना करने के पीछे खराब नीतियां और नोटबंदी जैसी वजहें बताई जा रही हैं.
बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज के आंकड़ों के मुताबिक मोदी सरकार के दौरान बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज का 30 शेयरों वाला सेंसेक्स 47.4 फीसदी की दर से बढ़ा है, जबकि यूपीए-2 के दौरान ये 54.4 फीसदी की दर से बढ़ा था. यूपीए-1 के दौरान इसमें 70.2 फीसदी की उल्लेखनीय बढ़त दर्ज की गई थी.
इससे पहले 1999-2004 की अटल बिहारी बाजपेई सरकार के दौरान सेंसेक्स में महज 16.7 फीसदी की बढ़त दर्ज की गई थी.
हालांकि अगर 50 शेयरों वाले नेशनल स्टॉक एक्सचेंज के निफ्टी की बात करें तो अंतर थोड़ा कम है, लेकिन ट्रेंड यहां भी एक ही तरह का है. मोदी सरकार के दौरान निफ्टी ने 47.5 फीसदी की बढ़त दर्ज की है. यूपीए-1 में ये वृद्धि 69.5 फीसदी और यूपीए-2 में 49.6 फीसदी रही थी. जबकि बाजपेई सरकार में ये 24.6 फीसदी की दर से बढ़ा था.
बाजार विशेषज्ञों के मुताबिक मोदी सरकार में बाजार की मजबूती ने अर्थव्यवस्था को गति दी, लेकिन नोटबंदी का फैसला और जीसएटी के गलत क्रियान्वयन से इसे धक्का लगा. केयर रेटिंग्स की कविता चाको कहती हैं, “नोटबंदी और जीएसटी के गलत प्रयोग ने अर्थव्यवस्था और बाजार दोनों को नुकसान पहुंचाया.”
इस दौरान कम विदेशी निवेश के चलते भी बाजार को नुकसान पहुंचा है. अगर बीजेपी और कांग्रेस की अगुआई वाली सरकारों के दौरान बाजार में विदेशी निवेश की बात करें तो बीजेपी यहां भी मात खाती है. मोदी के कार्यकाल में विदेशी निवेश में 40 फीसदी की कमी दर्ज की गई.
मोदी सरकार के दौरान 3.76 लाख करोड़ का विदेशी धन बाजार में पहुंचा, जबकि कांग्रेस की अगुआई वाली सरकार में ये 6.03 लाख करोड़ था.
बीते 20 सालों के आंकड़ों पर आधारित इस रिपोर्ट से साफ होता है कि कांग्रेस की अगुआई वाले यूपीए गठबंधन के दौरान स्टॉक मार्केट में सूचीबद्ध कंपनियों ने बेहतर प्रदर्शन किया है.