अर्थव्यवस्था के लिए खतरे के संकेत, मनरेगा में बढ़ रहा है युवाओं का अनुपात
नोटबंदी और जीएसटी के लागू होने के बाद से मनरेगा के तहत काम करने वाले मजदूरों में 18 से 30 वर्षों के युवाओं का अनुपात बढ़ा है. इससे पहले इसमें लगातार कमी आ रही थी. इस बढ़ोतरी को अर्थव्यवस्था के लिए एक खराब ट्रेंड के तौर पर देखा जा रहा है.
अभी इसके पीछे का कारण साफ नहीं है. लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि कृषि संकट और लगातार कम होते जा रहे रोजगार के अवसरों की वजह से ऐसा हो रहा है.
मनरेगा के तहत काम कर रहे लोगों का आयु आधारित विश्लेषण करने पर सामने आया है कि वित्त वर्ष 2017-18 के बाद से इसमें 18 से 30 वर्ष के युवाओं का हिस्सा बढ़ा है.
वित्त वर्ष 2013-14 में मनरेगा के तहत काम कर रहे 18 से 30 वर्ष के युवाओं की संख्या 1 करोड़ से ज्यादा थी. वित्त वर्ष 2017-18 में यह घटकर 58.69 लाख रह गई. हालांकि, वित्त वर्ष 2018-19 में यह बढ़कर 70.71 लाख हो गई.
युवाओं के इस अनुपात में बढ़ोतरी चालू वित्त वर्ष में भी जारी है. अक्टूबर महीने तक उनकी संख्या 57.57 लाख हो गई है.
इस तरह अगर प्रतिशत अनुपात पर नजर डालें तो 2013-14 में जहां मनरेगा के तहत काम कर रहे युवाओं का अनुपात 13.64 प्रतिशत था और जो 2017-18 में घटकर 7.73 प्रतिशत हो गया, वो 2018-19 में बढ़कर 9.1 और 2019-20 में 10.06 प्रतिशत हो गया.
मनरेगा के साथ निकटता से काम कर रहे एक गैर-सरकारी संगठन ‘मजदूर किसान शक्ति संगठन’ के संस्थापक सदस्य निखिल डे ने बताया, ‘अर्थव्यवस्था मंद पड़ गई है. युवाओं के लिए परिस्थितियां निराशाजनक हैं. जब उन्हें नौकरी नहीं मिलती है तो वे मनरेगा में आते हैं. मनरेगा उनके लिए एक कामचलाऊ व्यवस्था है.’
नवंबर 2016 में मोदी सरकार ने नोटबंदी की थी. वहीं 1 जुलाई, 2017 को सरकार ने जीएसटी को लागू किया था. इन दोनों फैसलों ने अर्थव्यवस्था में खलल पैदा किया. बहुत से विशेषज्ञों का मानना है कि इन फैसलों की वजह से ही अर्थव्यवस्था को मंदी का सामना करना पड़ रहा है. हाल के सालों में जीडीपी वृद्धि दर में भी कमी आई है. वित्त वर्ष 2016-17 में जहां जीडीपी वृद्धि दर 8.2 प्रतिशत थी, वो 2018-19 में 6.8 प्रतिशत रही. चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में यह मात्र पांच प्रतिशत है.
यह भी पता चला है कि हाल के सालों में मनरेगा के तहत काम करने वाले कुल मजदूरों की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई है.