पिछले पांच साल में सांसद निधि के इस्तेमाल में भारी कोताही


sheer drop in utilising mplad fund

 

2019 लोकसभा चुनाव की सरगर्मी लगातार बढ़ती जा रही है. ऐसे में इंडिया टुडे ने एक महत्वपूर्ण खुलासा किया है.

वेबसाइट ने अपने विश्लेषण के आधार पर बताया है कि सोलहवीं लोकसभा में चुने गए सांसदों ने एमपीलैड फंड (सांसद निधि) का प्रयोग प्रभावी ढंग से नहीं किया है. एमपीलैड वो फंड है जो एक सांसद को अपने लोकल एरिया के विकास के लिए मिलता है.

वेबसाइट के अनुसार 2014 लोकसभा में एमपीलैड फंड 2004 और 2009 लोकसभा के मुकाबले प्रभावी ढंग से प्रयोग नहीं किया गया है.

अगर हम 2014 लोकसभा की तुलना 2009 से करें तो पाएंगे कि खर्च ना किए गए एमपीलैड फंड में 214.63 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. वहीं 2004 लोकसभा से तुलना करने पर यह बढ़ोतरी 885.47 प्रतिशत हो जाती है.

चौदवहीं लोकसभा में सांसदों ने एमपीलैड फंड से 176 करोड़ रुपये खर्च नहीं किए. वहीं पंद्रहवीं लोकसभा में यह आंकड़ा 213.21 फीसदी बढ़कर 551.25 करोड़ रुपये हो गया. सोलहवीं लोकसभा में यह आंकड़ा 1,734.42 करोड़ रुपये हो गया.

चिंता की बात तो यह है कि एमपीलैड फंड के खर्चे में ये गुणात्मक कमी तब हुई है, जब केंद्र सरकार की ओर से मिलने वाले इस फंड में कटौती की गई है. 2004 में जहां इस फंड में 14,023.35 करोड़ रुपये डाले गए थे, वहीं 2014 लोकसभा में इसमें 11,232.50 करोड़ रुपये ही डाले गए.

एमपीलैड योजना के तहत हर साल प्रत्येक सांसद को अपने निर्वाचन क्षेत्र का विकास करने के लिए 5 करोड़ रुपये मिलते हैं.

सांसद संबंधित जिला प्रशासन को इस फंड को खर्च करने के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश देता है. प्रत्येक सांसद पहले अपने क्षेत्र के लिए जरूरी विकास कार्यों की लिस्ट बनाता है और उसके पास यह लिस्ट क्षेत्रीय प्रशासन को दे दी जाती है.

इस योजना की एक विशेषता यह भी है कि अगर इसमें आवंटित फंड पूरा खर्च नहीं होता है तो यह फंड अगले वर्ष के फंड में जुड़ जाता है.

अगर हम एमपीलैड फंड का राज्यवार ब्यौरा देखते हैं तो पाते हैं कि केवल चार राज्य और केंद्र शासित प्रदेश ही इसका समुचित उपयोग कर पाए हैं.

दिल्ली के सांसदों ने सबसे बेहतर तरीके से इस फंड का उपयोग किया है. वहीं असम इस फंड के उपयोग में सबसे पीछे रहा है.


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