सिंचाई के आंकड़ों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करती रहती शिवराज सरकार
मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार अपने कार्यकाल में खेती-किसानी के लिए किए गए कामों के आधार पर कृषि कर्मण का तमगा भी पाती रही और किसान हितैषी होने का श्रेय भी लेती रही लेकिन भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (सीएजी) की ताजा रिपोर्ट खुलासा करती है कि आंकड़ों में जो दिखाई दे रहा है, वैसा हकीकत में है नहीं. आंकड़ों की बाजीगरी कुछ और कहती है और असल तस्वीर कुछ और ही बयां करती है.
सीएजी का मानना है कि प्रदेश में सिंचाई के बढ़ते रकबे के आंकड़ें ‘ओवर रिपोर्टेड’ हैं. ‘सीएजी ’ की यह रिपोर्ट एक बड़े नहर तंत्र के सिंचाई से जुड़े आंकड़ों तक ही सीमित है लेकिन यदि सिंचाई और फसल उत्पादन से जुड़े सभी आंकड़ों की जांच हो तो पता चलता है कि अपनी पीठ थपथपाने के लिए मप्र की भाजपा सरकार ने कैसे आंकड़ों को बढ़ाचढ़ा कर पेश किया है.
मप्र की भाजपा सरकार ने हमेशा यह दावा किया है कि बीते दस सालों में प्रदेश में नहरी सिंचाई का रकबा 20 लाख हेक्टेयर से बढ़ा कर 40 लाख हेक्टेयर किया गया है. राज्यपाल के फरवरी 2018 के अभिभाषण में भी वर्ष 2025 तक प्रदेश में 80 लाख हेक्टर में सिंचाई क्षमता विकसित करने का दावा किया गया था. इस क्षमता को दोगुना किए जाने जैसे आधार पर ही प्रदेश में कृषि उत्पादन बढ़ने तथा कृषि विकास दर दो अंकों में बने रहने को जायज ठहराया जाता रहा है. मगर विधानसभा पटल पर रखी गई ‘सीएजी’ की रिपोर्ट ने इन आंकड़ों के झोल को उजागर करती है.
‘मध्यप्रदेश जल-क्षेत्र पुनर्रचना परियोजना’ की इस ऑडिट रिपोर्ट में बताया गया है कि विश्वबैंक से मिले 1,919 करोड़ रुपयों के कर्ज से संचालित इस परियोजना के तहत प्रदेश के पांच नदी कछारों-चंबल, सिंध, बेतवा, केन और टोंस के सिंचाई तंत्रों के आधुनिकीकरण, पुनर्वास (सुधार) और बेहतर प्रबंधन द्वारा 6 लाख 18 हजार हेक्टर क्षेत्र में सिंचाई सुविधा का विस्तार किया जाना था.
योजना के अनुसार, चंबल नहर तंत्र के आधुनिकीकरण से भिण्ड, मुरैना और श्योपुर जिलों में 2,73,000 हेक्टेयर सिंचाई क्षमता विकसित होनी थी, लेकिन ‘सीएजी’ ने पाया कि कमान क्षेत्र में प्रस्तावित से कहीं अधिक 4,42,000 हेक्टर सिंचाई होना दर्शाया गया है. इसका अर्थ है, सफलता बताने के लिए सिंचाई क्षमता अधिक दिखाई गई, जबकि सामान्य आकलन है कि आमतौर पर सिंचाई क्षमता से आधे का ही उपयोग हो पाता है.
‘सीएजी’ ने इन आंकड़ों की पुष्टि के लिए पार्वती एक्वाडक्ट से मध्यप्रदेश को उपलब्ध पानी के आंकड़ें ज्ञात किए, जो विभाग के आंकड़ों से काफी कम थे. सिंचाई आंकड़ों की सत्यता की पुष्टि के लिए इन्हीं वर्षों में कमाण्ड के जिलों की मंडियों में कृषि उपजों की आवक और उपलब्ध जल से संभावित सिंचित क्षेत्र में तुलना की गई. इस तुलना से यह सिद्ध हुआ कि विभाग द्वारा उपलब्ध करवाए गए सिंचाई के आंकड़ें वास्तविक सिंचाई के मुकाबले 35,786 से लेकर 1,58,263 हेक्टेयर तक यानी दोगुने से अधिक बढ़ा कर दिखाए गए हैं. ‘सीएजी’ ने इसे ‘ओवर रिपोर्टेड’ कहा है. यानि अपनी वाहवाही के लिए आंकड़ों को बढ़ाचढ़ा कर बताना.
सिंचाई क्षमता बढ़ने के इन आंकड़ों पर इसलिए भी यकीन नहीं होता क्योंकि मप्र के कई जिले सूखे की चपेट में रहे तथा जलस्रोतों में सिंचाई के लिए पानी अपर्याप्त ही था. इन्हीं आंकड़ों के आधार पर नीतियां बनती हैं और किसानों की सहायता की योजनाएं भी बनती हैं. ऐसे में मप्र की वास्तविक कृषि स्थिति और चुनौतियों का आकलन करने के लिए आंकड़ों की वास्तविकता को जांचना बेहद आवश्यक हो जाता है.