भारत में छह लाख डॉक्टरों और 20 लाख नर्सों की कमी
भारत में छह लाख डॉक्टरों और 20 लाख नर्सों की कमी है. भारत में हर 10,189 लोगों पर एक सरकारी डॉक्टर है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हर एक हजार लोगों पर एक डॉक्टर की सिफारिश की है. इस तरह भारत में छह लाख डॉक्टरों की कमी है. भारत में हर 483 लोगों पर एक नर्स है यानी 20 लाख नर्सों की कमी है.
अमेरिका के ‘सेंटर फॉर डिज़ीज़ डाइनामिक्स, इकॉनॉमिक्स एंड पॉलिसी’ (सीडीडीईपी) की रिपोर्ट के मुताबिक एंटीबायोटिक उपलब्ध हो तब भी भारत में लोगों को बीमारी पर 65 फीसदी खर्च खुद उठाना पड़ता है. यह हर साल 5.7 करोड़ लोगों को गरीबी के गर्त में धकेलता है.
सीडीडीईपी की रिपोर्ट में ये बातें सामने आई हैं:-
1 भारत में छह लाख डॉक्टरों और 20 लाख नर्सों की कमी है
2 भारत में बीमारी पर 65 फीसदी खर्च खुद उठाना पड़ता है.
3 भारत में बीमारी की वजह से 5.7 करोड़ लोग को गरीबी रेखा के नीचे चले जाते हैं.
4 एंटीबायोटिक दवाइयों के लिए प्रशिक्षित स्टाफ की कमी है.
5. एंटीबायोटिक दवाई नहीं मिलने की वजह से दुनियाभर में हर साल 57 लाख लोगों की मौत होती है.
वैज्ञानिकों ने पाया है कि भारत में एंटीबायोटिक दवाइयां देने के लिए उचित तरीके से प्रशिक्षित स्टाफ की कमी है जिससे जीवन बचाने वाली दवाइयां मरीजों को नहीं मिल पाती हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में हर साल 57 लाख ऐसे लोगों की मौत होती है जिन्हें एंटीबायोटिक दवाइयों से बचाया जा सकता था. यह मौतें कम और मध्यम आय वाले देशों में होती हैं. ये मौतें एंटीबायोटिक प्रतिरोधी संक्रमणों से हर साल होने वाली अनुमानित 700,000 मौतों की तुलना में अधिक हैं.
सीडीडीईपी ने यूगांडा, भारत और जर्मनी में बातचीत और सामग्री का अध्ययन कर कम, मध्य और उच्च आय वाले देशों में उन पहलुओं की पहचान की जिनके चलते मरीज को एंटीबायोटिक दवाएं नहीं मिलती हैं.
सीडीडीईपी के निदेशक रमणन लक्ष्मीनारायण ने कहा कि एंटीबायोटिक दवाई के प्रतिरोध से होने वाली मौतों की तुलना में एंटीबायोटिक नहीं मिलने से ज्यादा लोगों की मृत्यु हो रही है.