ऋण वृद्धि में गिरावट से अर्थव्यवस्था में संकट जारी रहने के संकेत


acute liquidity squeeze chocking sales in rural markets says hul

 

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के आंकड़ों के मुताबिक भारतीय बैंकों की ऋण वृद्धि दर घटकर अपने दो वर्षों के निम्नतम स्तर पर पहुंच गई है.

केयर रेटिंग्स  में मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा कि ऋण वृद्धि में सुस्ती मांग और आपूर्ति में कमी के कारण है. उन्होंने कहा कि उम्मीद की जा रही है कि आगे ऋण वृद्धि 10 फीसदी पर बनी रहेगी.

अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत से ही अर्थिक मोर्चों पर चुनौतियों का समाना कर रही मोदी सरकार पर अर्थव्यवस्था में सुस्ती को लेकर कई सवाल उठाए जा रहे हैं.

साल की शुरुआत की तुलना में बैंकों की ऋण वृद्धि सितंबर अंत में घटकर आधी (8.8 फीसदी) रह गई.

आरबीआई ने बैंक ऑफ बड़ौदा, पंजाब नेशनल बैंक और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के साथ निजी बैंकों में एचडीएफसी बैंक और आईसीआईसीआई बैंक के आंकड़ों के आधार पर रिपोर्ट जारी की है.

बीते महीने इंडिया रेटिंग्स की मासिक रिपोर्ट में अनुमान जताया गया कि ऑटो, आवासीय समेत विभिन्न क्षेत्रों में मांग की कमी के चलते 2020 में भी खुदरा ऋण में गिरावट जारी रहेगी. रिपोर्ट के मुताबिक पर्सनल लोन की मांग में भी कमी बनी रहेगी.

आईएलएंडएफएस समूह में संकट के बाद देश में बीते साल एनबीएफसी (नॉन-बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनियों) में नकदी का संकट पैदा हो गया. एनबीएफसी का ये संकट अब बैंकों के लिए भी समस्या बनता जा रहा है. अब जहां कुछ एनबीएफसी सतर्कता से आगे बढ़ रही हैं वहीं अन्य ने ऋण प्रक्रिया रोक दी है.

ऋण वृद्धि में ये कमी ऐसे समय में आई है जब आरबीआई लगातार रेपो रेट में कटौती कर रहा है. ऐसे में बैंकों द्वारा ब्याज दर में कटौती के बावजूद ऋण वृद्धि नहीं हो रही है.

2019 में अब तक आरबीआई रेपो रेट में 135 आधार अंकों की कटौती कर चुका है.

आरबीआई द्वारा रेपो रेट में कटौती का लाभ उपभोक्ताओं तक पहुंचाने के लिए रिजर्व बैंक ने इस महीने से बैंकों से ऋण को रेपो रेट से जोड़ने की मांग की है. ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि ब्याज दरों में कटौती देखने को मिलेगी, जबकि अर्थशास्त्रियों का कहना है कि इस कदम से ऋण के लिए मांग बढ़ने की संभावनाएं कम ही हैं.


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