2019 आम चुनाव में अहम होगी सोशल मीडिया की भूमिका


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2019 लोकसभा चुनावों के लिए राजनीतिक पार्टियों ने अपनी कमर कस ली है और पार्टियों के सोशल मीडिया कैंपेन तैयार हो चुके हैं. किसी भी राजनीतिक पार्टी के दफ्तर पर सोशल मीडिया वॉर रूम एक अहम विभाग हो गया है. यहीं पार्टियां अपनी सोशल मीडिया स्ट्रटेजी को उनका आखिरी रूप देती हैं.

सोशल मीडिया वॉर रूम

इन वॉर रूम्स में एक सोशल मीडिया टीम होती है. इस टीम में ऑडिया, वीडियो और ग्राफिक के जानकार होते हैं. ये टीम अपने सभी प्लेटफॉर्म के लिए कॉन्टेंट तैयार करती है. जो कैंपेन को उनका आखिरी रूप देकर पोस्ट करते हैं. इसके साथ ही ये दूसरी पार्टियों के कैंपेन पर भी कड़ी नजर रखते हैं. टीम के कुछ सदस्यों को अपनी पार्टी के खिलाफ फैलाए जा रहे कॉन्टेंट की निगरानी करने का काम दिया जाता है. साथ ही यही टीम सोशल मीडिया के जरिए अपने कार्याकर्ताओं तक निर्देश भी पहुंचाती है.

फेसबुक, व्हाट्स एप, ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर आपकी नजरों के सामने से गुजरने वाला कोई भी राजनीतिक प्रचार इन्हीं वॉर रूम से निकलता है. शायद ही कोई आदमी होगा जिसके सामने सोशल नेटवर्किंग साइट्स खोलते ही ये प्रचार न गुजरते हों.

2014 आम चुनावों में बीजेपी सोशल मीडिया की उभरती हुई ताकत को समझ गई थी. इस दौरान जनता के बीच बीजेपी नेताओं और पार्टी की सकारात्मक छवि बनाने में सोशल मीडिया कैंपेन का अहम योगदान रहा. सोशल मीडिया को अपने राजनीतिक कैंपेन के लिए चुनने की ये बीजेपी की ही पहल थी जिसके बाद सभी पार्टियों ने इसके महत्व को समझा.

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने साल 2015 में अपना ट्विटर अकाउंट बनाया, जबकि कई बड़े बीजेपी नेता 2014 चुनावों से पहले ही इसका इस्तेमाल करने लगे थे.

भारत में आज करीब 45 करोड़ लोगों के पास स्मार्टफोन है.

अगले साल चुनावों में लगभग 90 करोड़ मतदाता अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेंगे. इनमें से लगभग 50 करोड़ लोग आज सोशल मीडिया पर एक्टिव हैं. जिसमें से 30 करोड़ लोग फेसबुक का इस्तेमाल करते हैं, जबकि 20 करोड़ लोग व्हॉट्स एप का इस्तेमाल कर रहे हैं. साथ ही करीब 10 करोड़ लोग ट्विटर का इस्तेमाल करते हैं.

मिंट ने अपनी एक खबर में लिखा है कि सोशल मीडिया और डेटा विश्लेषण आम चुनावों में दो अहम किरदार होंगे. इस दौरान फेक न्यूज फैलाने और ट्रोलिंग के लिए इस मंच के
इस्तेमाल की संभावनाओं से बिलकुल भी इंकार नहीं किया जा सकता.

इंडियास्पेंड के आंकड़े बताते हैं कि बीते एक साल में फेक न्यूज की वजह से 30 लोगों की मौत हुई. जांच के बाद पता चला कि इनमें से ज्यादातर बच्चा चोरी करने की अफवाहों को आधार बनाकर फैलाई गई फेक न्यूज थी.

व्हॉट्स एप राजनीतिक पार्टियों की पहली पसंद

भारतीय राजनीति में प्रचार करने लिए भाषण और पोस्टर का इस्तेमाल पुराना होता जा रहा है. व्हॉट्स एप राजनीतिक पार्टियों की पहली पसंद बनता जा रहा है.

राजस्थान में इस समय कांग्रेस के करीब 90 हजार व्हॉट्स एप ग्रुप एक्टिव हैं. जबकि बीजेपी करीब 15 हजार ग्रुप्स को सीधे कंट्रोल कर रही है और 1 लाख ग्रुप्स को पार्टी कार्यकर्ता कंट्रोल कर रहे हैं. हम अंदाजा लगा सकते हैं कि ये आंकड़े केवल एक राज्य के हैं.

फेसबुक और उनकी मैसेजिंग सर्विस व्हॉट्स एप की ओर से अब तक फेक न्यूज रोकने के लिए कोई नीति सामने नहीं आई है. हाल ही में व्हॉट्स एप ने भारत में मेसैज फॉर्वड करने की लिमिट को 5 व्यक्तियों या ग्रुप्स तक सीमित कर दिया था.

राजस्थान विधानसभा चुनावों के दौरान राजस्थान पुलिस ने 10 लोगों की एक टीम बनाई जो सोशल मीडिया पर चुनाव से संबंधित सूचनाओं पर नजर रख रही थी. टीम का काम था कि चुनावों से जुड़ी फैलाई जा रही सभी गलत खबरों पर नजर रखना और फिर उसे संबंधिक अधिकारियों को जांच के लिए सौंप देना.

सोशल मीडिया के जरिए आज लगातार गलत सूचना और नफरत फैलाई जा रही है. इससे निपटना पुलिस और चुनाव आयोग की प्रथामिकताओं में तो शामिल है, लेकिन इसे लेकर प्रशासन की ओर से अब तक ठोस कदम या नीति सामने नहीं आई है.


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