इस तरह बनी सोनभद्र हत्याकांड की पृष्ठभूमि


in sonbhadra massacre case should be filed against responsible officers

 

उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में आदिवासियों की निर्मम हत्या के मामले में अब सामने आया है कि मुख्य आरोपी, आदिवासी परिवार को काफी समय से निशाना बना रहा था. लेकिन प्रशासन लगातार इसकी अनदेखी करता रहा जिसके चलते इतना बड़ा नरसंहार हुआ. घटना के बाद सरकार ने उप-प्रभागीय मजिस्ट्रेट और चार पुलिसकर्मियों को बर्खास्त कर दिया.

इस विवाद की शुरुआत तब से होती है जब यज्ञ दत्त और उसके परिवार के 10 लोगों ने बिहार कैडर के रिटायर्ड आईएस अधिकारी की पत्नी और बेटी से 145 बीघे जमीन खरीदी. ये विवादित जमीन 2017 में खरीदी गई. लेकिन इस जमीन पर आदिवासी गोंड परिवार का कब्जा (possession) था. तभी से कब्जे को लेकर यज्ञ दत्त लगातार आदिवासी परिवार को निशाना बना रहा था.

इस बिक्री को अवैध बताते हुए सबसे पहले गोंड परिवार ने राजस्व अधिकारियों से शिकायत की, इसके बाद इसी साल दीवानी अदालत में मुकदमा दर्ज कराया था.

इससे पहले प्रधान यज्ञ दत्त और उसके परिवार ने घोरवाल पुलिस स्टेशन में गोंड समुदाय के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई थी. इस मामले में दर्ज कराई गई पहली दो शिकायतों में 25 लोगों का नाम दिया गया था. जबकि तीसरी शिकायत में पांच लोगों के नाम थे. लेकिन इन तीनों शिकायतों में रामराज का नाम दर्ज था. रामराज ही प्रधान परिवार के खिलाफ मुकदमा लड़ रहे थे.

इस हत्या के मामले में अब तक कुल 29 लोगों को हिरासत में लिया जा चुका है. संयोग से रामराज इस हत्याकांड के मुख्य गवाह हैं. गिरफ्तार किए गए लोगों में भदोही रेलवे स्टेशन के अधीक्षक कोमल सिंह भी शामिल है. कोमल सिंह ग्राम प्रधान के रिश्तेदार हैं. कोमल सिंह की पत्नी भी इस विवादित जमीन के खरीददारों में से एक हैं.

बीते साल 24 जुलाई को गोंड परिवार के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई थी. ये शिकायत ग्राम प्रधान के भतीजे राजकुमार सिंह ने दर्ज कराई थी. उसने अपनी शिकायत में कहा था कि सात ट्रैक्टर में 25 लोग आए और उनकी खरीदी जमीन को जबरन जोत लिया.

इसी मामले में 29 अक्तूबर को एक नई शिकायत दर्ज कराई गई. ये शिकायत प्रधान के रिश्तेदार सोनू कुमार ने दर्ज कराई.

इंडियन एक्सप्रेस रामराज के हवाले से लिखता है कि प्रधान और उनके सहयोगी बीते दो सालों से उसे परेशान कर रहे थे. उन्होंने उसके परिवार के खिलाफ झूठे मामले भी दर्ज करा रखे थे.

इस जमीन विवाद की जड़े पांच दशक पुरानी हैं. यूपी भूमि सुधार अधिनियम 1950 के तहत इस क्षेत्र की करीब 600 बीघा स्थानीय जमीन 1951 के राजस्व दस्तावेजों में बंजर भूमि के रूप में दर्ज है. जो ग्राम सभा की संपत्ति थी. बाद में इसे स्थानीय लोगों ने खेती के लिए जोतना शुरू कर दिया.

गोंड समुदाय के वकील नित्यानंद द्विवेदी कहते हैं कि 1955 में तहसीलदार ने ये जमीन आदर्श शक्ति समिति नाम की एक सोसाइटी को सौंप दी. उन्होंने बताया कि इस सोसाइटी में कुल दस सदस्य थे और बिहार कैडर के आईएस अधिकारी के ससुर इसके अध्यक्ष बने थे.

1989 में जब इस सोसाइटी के अध्यक्ष की मौत हो गई तब एसडीएम ने इसमें से 145 बीघा जमीन आईएएस अधिकारी की पत्नी और बेटी के नाम कर दी. यही वह जमीन है जो ग्राम प्रधान यज्ञ दत्त और उनके परिवार को दो करोड़ में बेची गई.

उन्होंने बताया कि स्थानीय लोगों ने राजस्व अधिकारियों को इस बात की जानकारी दी, लेकिन इस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. द्विवेदी ने बताया कि इस मामले में जनवरी 2018 में एक दीवानी मुकदमा किया गया, जो लंबित है.

उन्होंने बताया कि छह जुलाई को इस नामांतरण के खिलाफ जिला अधिकारियों को शिकायत पत्र दिया गया था, जिसे खारिज कर दिया गया. इसके 11 दिन बाद ही इस हत्याकांड को अंजाम दिया गया.


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