सोरेन सरकार ने पत्थलगड़ी आंदोलनकारियों पर से देशद्रोह का मुकदमा हटाया
झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने शपथ ग्रहण के बाद अपने पहले कैबिनेट फैसले में पत्थलगड़ी आंदोलन में भाग लेने वाले आदिवासियों और कार्यकर्ताओं पर से देशद्रोह मुकदमा वापस ले लिया है.
यह कदम हेमंत सोरेन के दूसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेने के तत्काल बाद उठाया गया है.
पत्थलगड़ी आंदोलन छोटा नागपुर काश्तकारी अधिनियम (सीएनटीए) और संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम (एसपीटीए) में संशोधन के विरोध में शुरू हुआ था. रघुवार दास की सरकार की ओर से 2016 में यह दोनों संशोधन लाए गए थे जिससे आदिवासियों की भावनाओं को चोट पहुंची थी और उन्होंने इसका जमकर विरोध किया था.
इन संशोधनों को लेकर आदिवासियों की आपत्ति थी कि इन बदलावों के तहत गैर-आदिवासियों और कंपनियों को आदिवासियों की जमीन हड़पने में आसानी होगी. इन कानूनों में बदलाव जमीन अधिग्रहण का विरोध करने वालों पर गोली चलाने का अधिकार भी पुलिस को देती है.
ये दोनों ही संशोधन सदन में विपक्ष के हंगामे के बीच पास कराए गए थे और इन पर उस वक्त पर्याप्त बहस भी नहीं किया गया था.
पत्थलगड़ी आंदोलन के तहत गांव की सीमा पर पत्थर गाड़कर उस पर संविधान की पांचवीं अनुसूची का उल्लेख किया जाता है जो आदिवासियों को उनके रीति-रिवाज और परंपराओं के संरक्षण की इजाजत देता है.
गौरतलब है कि ये दोनों ही भूमि कानून झारखंड को एक आदिवासी बहुल प्रदेश के तौर पर एक विशेष पहचान का दर्जा देते हैं.
हाल में हुए विधानसभा चुनावों में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो)-कांग्रेस- राष्ट्रीय जनता दल (राजद) गठबंधन ने 81 सदस्यीय सदन में 47 सीटों पर जीत दर्ज कर बहुमत हासिल किया था.
मुख्यमंत्री के रूप में सोरेन का यह दूसरा कार्यकाल है. इससे पहले वह 2009 और 2013 के बीच उपमुख्यमंत्री और मुख्यमंत्री रहे थे.