दक्षिण अफ्रीका की एक अदालत ने ‘रंगभेदी झंडे’ के बेवजह प्रदर्शन पर रोक लगाई


south african court partially bans display apartheid flag

  Denis Farrell/AP

दक्षिण अफ्रीका की एक अदालत ने देश के ‘रंगभेदी झंडे’ को फहराने पर आंशिक रूप से प्रतिबंध लगा दिया है. अदालत का कहना है कि ऐसे प्रदर्शन नफरत और उत्पीड़न को बढ़ावा देते हैं. नेल्सन मंडेला फाउंडेशन की ओर से कोर्ट में इस मामले की अपील की गई थी.

21 अगस्त को दक्षिण अफ्रीका की इक्वॉलिटी अदालत ने तथाकथित रंगभेदी झंडे पर प्रतिबंध लगा दिया. झंडे में नारंगी, सफेद और नीले रंग की तीन पट्टियां हैं, जिसका मध्य ब्रिटेन का, ऊपर का हिस्सा ऑरेंज फ्री स्टेट और नीचे का हिस्सा दक्षिण अफ्रीकी गणराज्य का प्रतीक है.

सुनवाई के दौरान जज फिनीस मोजापेलो ने कहा कि पुराने झंडे का किसी भी तरह का अनावश्यक प्रदर्शन जातिवादी और भेदभावपूर्ण है.

मोजोपेलो ने आगे कहा कि यह साफ तौर पर हानिकारक होने और नुकसान पहुंचाने के इरादे को दर्शाता है. यहां तक कि यह काले लोगों के खिलाफ नफरत को बढ़ावा देता है और प्रचारित करता है.

अंग्रेजी वेबसाइट अल जजीरा में छपी खबर के मुताबिक अब झंडा प्रदर्शित करने पर जुर्माना लगेगा हालांकि मामले में गिरफ्तारी नहीं होगी.

रंगभेद के जमाने से चले आ रहे इस झंडे को राजनीतिक समारोहों और रग्बी मैचों में दक्षिणपंथी और रूढ़िवादी समूहों की ओर से प्रदर्शित करते हुए देखा गया है.

प्रतिबंध के समर्थकों ने कुछ दिन पहले सोशल मीडिया पर #morethanaflag से रैली की थी. वहीं,  विरोधी झंडे के प्रदर्शन पर लगे आंशिक प्रतिबंध को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ मान रहे हैं.

अक्टूबर 2017 में मारे गए किसानों के लिए श्वेत नागरिकों की तरफ से किए गए एक आंदोलन के दौरान इस झंडे का प्रदर्शन किया गया था. इसके बाद नेल्सन मंडेला फाउंडेशन की तरफ से अदालत में एक याचिका दायर की गई थी.  फाउंडेशन का तर्क था कि झंडे का फहराना उन्हें अपने बीते दिनों की याद दिलाता है.

फाउंडेशन ने बयान में कहा “पुराने झंडे का अनावश्यक प्रदर्शन काले लोगों के लिए मजदूरों की कैद, हत्या, यातना, अपहरण, भेदभाव, कर्फ्यू और भयावह अत्याचारों को दोबारा स्थापित करने को उकसाने के जैसा है.

फाउंडेशन के सीईओ सेलो हैटंग ने कहा कि हमें ऐसा राष्ट्र बनना चाहिए जो विविधता का उत्सव मनाए न कि मतभेद पर लड़े.

1948 में रंगभेद कानून की औपचारिक घोषणा से 20 साल पहले 1928 में पुराने झंडे को अपनाया गया था.  दक्षिण अफ्रीका में लोकतंत्र की स्थापना के बाद 1944 में  बहुरंगी रेनबो फ्लैग ने आधिकारिक तौर पर इसकी जगह ले ली.


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