नरेगा पर बयान सरकार की गरीब विरोधी भावनाओं को दिखाती हैं: नरेगा संघर्ष मोर्चा


false claims on MNREGA in economic survey, demand for raising funds for this scheme

 

नरेगा संघर्ष मोर्चा ने संसद में ग्रामीण विकास मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के बयान पर आपत्ति दर्ज की है और कहा है कि मंत्री के बयान से पता चलता है कि उन्हें नरेगा जैसे कार्यक्रम की समझ नहीं है. उनके बयान से सरकार की गरीब विरोधी भावनाएं भी दिखती हैं.

संसद में कई सांसदों ने नरेगा को मिलने वाली अपर्याप्त फंडिंग का मुद्दा उठाया है. ग्रामीण विकास मंत्री ने अपर्याप्त फंडिंग के मुद्दे पर 2014 से लेकर 2019 तक के आकड़ों का हवाला दिया और उसकी तुलना 2008 से लेकर 2013 तक नरेगा के मद में मिलने वाली फंडिंग से की.

नरेगा संघर्ष मोर्चा ने मंत्री की ओर से किए गए इस तरह की तुलना को बेतुका बताया है. मोर्चा का कहना है कि ये आकड़े फंडिंग में आई वास्तविक कमी के लोगों को वाकिफ नहीं कराते.

मंत्री ने यह भी कहा कि सरकार ने नरेगा की फंडिंग में इजाफा किया है जो कि संसद में बोला गया एक सफेद झूठ है. मंत्री ने खुद ये आकड़े पेश किए कि सरकार ने 2017-18 में 55000 करोड़, 2018-19 में 61084 करोड़ और 2019-2020 में 60000 करोड़ रुपये नरेगा के मद में दिए है. ये रकम इसके पिछले वित्त वर्ष में दिए गए 61,084 करोड़ रुपये से कम है.

इसके अलावा ग्रामीण विकास मंत्री ने संसद में यह भी बताया कि 99 फीसदी नरेगा की रकम कामगारों को उनके अकाउंट में सीधे भेजी जा रही है. लेकिन यह कहीं से भी इस सरकार की उपलब्धि नहीं है क्योंकि हाथ में नगद भुगतान करने की जगह अकाउंट में पैसे भेजने की शुरुआत 2010 से पहले ही हो गई थी.

मंत्री ने जिस बात पर प्रतिक्रिया नहीं दी, वो थी फंडिंग के अभाव में देर से कामगारों को होने वाले भुगतान की बात. इसकी वजह से कामगार बुरे दौर से गुजर रहे हैं. लगातार देर से होने वाले भुगतान और आधार आधारित भुगतान व्यवस्था की वजह से बड़े पैमाने पर कामगारों की स्थिति बदतर होती जा रही है.

वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान मंत्री ने बताया कि 268 करोड़ लोगों को नरेगा के तहत रोजगार मिला है और इसमें से 55 फीसदी रोजगार महिला कामगारों को मिले हैं. हालांकि कार्यकर्ताओं और शोधकर्ताओं का कहना है कि नरेगा अपनी क्षमता से कम लोगों को रोजगार मुहैया कर रहा है. लेकिन लगता है कि मंत्री इस तथ्य से वाकिफ नहीं है और दावा कर रहे हैं कि नरेगा के तहत 52 फीसदी लोगों को 100 दिन का रोजगार मिला है.

यह आकड़ा पूरी तरह से काल्पनिक है क्योंकि नरेगा जब से शुरू हुआ तब से आज तक कभी भी 100 दिनों का रोजगार 10 फीसदी से ज्यादा लोगों को नहीं मिला है. औसतन 51 दिन का रोजगार इस योजना के तहत काम करने वाले लोगों को अब तक मिले हैं.

नरेगा संघर्ष मोर्चा का कहना है कि इन झूठे आकड़ों के अलावा ग्रामीण विकास मंत्री ने जो एक बयान दिया है वो काफी आपत्तिजनक है. उन्होंने संसद में कहा कि वह हमेशा इसे चलाये रखने के पक्षधर नहीं हैं क्योंकि यह योजना गरीबों के लिए है और मोदी सरकार का लक्ष्य गरीबी को खत्म करना है.

नरेगा संघर्ष मोर्चा ने उनके इस बयान की दो बिंदुओं के आधार पर कड़ी आलोचना की है. पहला बिंदु यह कि मनरेगा संसद में पास एक कानून है जिसका एक संवैधानिक आधार है. यह किसी मंत्री की इच्छा और उसकी सोच पर आधारित नहीं हो सकता कि वो इस योजना को लेकर क्या सोचते है.

दूसरी बात यह है कि यह सरकार की गरीब विरोधी दुर्भावना को दिखाती हैं. उनके बयान से लगता है कि वो गरीबी और असमानता जैसे जटिल मुद्दों को समझने के बजाए इन मुद्दों को खत्म करने में दिलचस्पी दिखा रही है.


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