स्टूडेंट ऑफ द ईयर 2 : स्टोरी और एक्टिंग से खाली एक घोर नकली फिल्म


Student of the Year 2: A Fake movie without Story and Acting

  धर्मा प्रोडक्शन

निर्देशक – पुनीत मल्होत्रा

कलाकार – टाइगर श्रॉफ, अनन्या पांडे, तारा सुतारिया, हर्ष बेनीवाल

कहानी – अरशद सईद

स्कूल, कॉलेज की अपनी एक अलग ही दुनिया होती है, एक फेंटेसी वर्ल्ड होता है जिसका असल जिंदगी से कोई बहुत ज्यादा वास्ता नहीं होता. जोश, उमंग, उत्साह, ऊर्जा से भरा ये समय सपनों से ज्यादा प्यार और रोमांस के इर्द-गिर्द घूमता है. ज्यादातर यह समय लोगों के जीवन का सबसे बेहतरीन समय होता है, क्योंकि जिम्मेदारियां अभी सर से दूर होती हैं और इश्क कन्धों पर सवार होता है. ऐसे ही जोश, ऊर्जा और लव यंग लवर्स की लव रेसिपी को लेकर 2012 में एक फिल्म ‘स्टूडेंट ऑफ द ईयर’ बनाई गई थी. यह फिल्म करण जौहर की धर्मा प्रोडक्शंस और शाहरुख खान की रेड चिलीज़ एंटरटेनमेंट ने मिलकर बनाई थी. अब उसी फिल्म का सिक्वल ‘स्टूडेंट ऑफ द इयर 2’ हमारे सामने है.

करण जौहर ने ‘स्टूडेंट ऑफ द ईयर’ फिल्म से चार नए एक्टर्स सिद्धार्थ मलहोत्रा, वरुण धवन, आलिया भट्ट और कायोज़ी ईरानी को लॉन्च किया गया था. वहीं अनन्या पांडे और तारा सुतारिया इस फिल्म से बॉलीवुड में कदम रखने जा रही हैं. पहली फिल्म दो लड़कों और एक लड़की की कहानी थी, अब दो लड़कियों और एक लड़के की कहानी है.

कहानी देहरादून के बोर्डिंग स्कूल की है जहां स्कूल के छात्र खुद को स्पोर्ट्स एक्टिविटी के मध्यम से स्कूल का बेस्ट स्टूडेंट साबित करना चाहते हैं. जहां स्कूल की लड़कियों का काम सिर्फ अपने छात्र मित्रों को चीयर अप करना और बूस्ट अप करना भर है! रोहन (टाइगर श्रॉफ) एक साधारण से स्कूल का छात्र स्पोर्ट्स कोटे की बदौलत शहर के सबसे बड़े स्कूल में दाखिला पाता है. वहां का पोस्टर बॉय मानव (आदित्य) रोहन को नीचा दिखाना चाहता है. रोहन किसी भी हाल में स्टूडेंट ऑफ द ईयर बनना चाहता है. रोहन, मिया (तारा सुतारिया) को पसंद करता है, जो डांस कॉम्पटीशन जीतना चाहती है. दूसरी तरफ मानव की बहन श्रेया (अनन्या पांडे) है, जो पैसे वाले घर की मुंहफट लड़की है. श्रेया भी एक महत्वाकांक्षी डांसर है. श्रेया और मिया दोनों लड़कियों को रोहन से प्यार है. बस यहीं मामला फंसा हुआ है कि कौन टूर्नामेंट जीतता है और कौन दिल?

फिल्म रोहन और मानव के खुद को एक दूसरे से बेहतर साबित करने के इर्द गिर्द घूमती है. रोहन की गरीबी और मानव की अमीरी उनकी आपसी जंग को और तीखा बना देती है. दोनों में कौन खुद को स्टूडेंट ऑफ द ईयर बना पाता है, ये फिल्म में शुरू से ही जाहिर है. तारा सुतारिया ‘बेस्ट ऑफ लक निकी’, ‘द सुईट लाइफ ऑफ करण एंड कबीर’ और ‘ओए जस्सी’ जैसे पॉपुलर चाइल्ड टीवी शोज़ का हिस्सा रह चुकी हैं. वहीं अनन्या का परिचय ये है कि वो चंकी पांडे की बेटी हैं . दोनों ही नई नायिकाओं के लिए न तो फिल्म में अभिनय करने का कोई मौका था, न ही उन्हें शायद इसकी तलाश ही थी!

बांद्रा में पले बढ़े पुनीत और आदित्य को देहरादून या बोर्डिंग स्कूल्स में पढ़ने वाले छात्रों के बारे में भी कुछ नहीं पता. फिल्म उतनी ही नकली दिखती है, जितना इसके निर्देशक का विजन. टाइगर श्रॉफ से लेकर मानव और अन्य कलाकारों तक कोई भी बोर्डिंग स्कूल का छात्र जैसा नहीं दिखता. टाइगर श्रॉफ की बॉडी के साथ डांस वाले गानों में उनकी परफोर्मेंस देखने लायक है. लेकिन उनसे एक्टिंग की उम्मीद भी करना उनके साथ नाइंसाफी ही होगी.

अन्य कलाकारों की एक्टिंग की बात करें तो इस फिल्म में ऐसी कोई कोशिश किसी ने भी नहीं की! हां अनन्या पांडे की स्क्रीन प्रजेंस प्रभावी रही है. वे न सिर्फ बेहद खूबसूरत लगती हैं बल्कि उन्हें फिल्म के हर फ्रेम में देखने का मन होता है. उनके मुकाबले तारा सुतारिया बहुत प्रभावी नहीं लगती. बल्कि तारा को देखकर लगता ही नहीं कि वह फिल्म की हीरोइन हैं. हालांकि उनका हुक अप गाना पसंद किया जा रहा है. हर्ष बेनीवाल की पंचलाइनें सही लगती है. यह कहना गलत नहीं होगा कि ‘स्टूडेंट ऑफ द ईयर 2’ के तरह से ‘जो जीता वही सिकंदर’ का पॉलिश्ड वर्जन बन कर रह गई है. फिल्म में विशाल शेखर का संगीत भी कोई खास जादू नहीं जगा पाता.

ढेर पूर्वाग्रहों में सनी ये फिल्म आपका दिमाग बुरी तरह पकाती है. फिल्म न सिर्फ छोटे स्कूलों का मजाक उड़ाती है बल्कि पूरी बेशर्मी से उनके स्टूडेंट्स, टीचर्स, प्रिंसिपल्स सबको मूर्ख बताती है. फिल्म मान कर चलती है कि बड़े स्कूल वाले कूल होते हैं, छोटे स्कूल वाले डफर! छोटे स्कूल वालों की हरकतें चीप होती हैं, वो इडियट ही होते हैं. सब अमीर लोग घमंडी होते हैं, जो अक्सर ही गरीबों को उनकी ‘औकात’ याद दिलाते रहते हैं! और सबसे हैरानी वाली बात यह है कि स्टूडेंट्स पर बनी फिल्म में स्टूडेंट लाइफ की सबसे जरूरी चीज का जिक्र यानी पढ़ाई का जिक्र तक नहीं होता!

इस फिल्म में सब कुछ नकली है. इमोशंस से लेकर सेट्स और डिज़ाइनर कपड़ों तक सब. कबड्डी की प्रिपरेशन ऐसे होती है, जैसे आर्मी की कमांडो ट्रेनिंग हो. एक रेस और एक कबड्डी जैसा टीम गेम जीतकर कोई स्टूडेंट ऑफ़ द ईयर कैसे बनता है ये डायरेक्टर या प्रोड्यूसर ही जाने.

धर्मा प्रोडक्शंस की छवि हिंदी सिनेमा में ऐसी फिल्में बनाने की रही है, जो हकीकत के करीब नहीं होती हैं. पहले ‘केसरी’, फिर ‘कलंक’ और अब ‘स्टूडेंट ऑफ द ईयर 2’. इस साल की धर्मा प्रोडक्शंस की तीनों फिल्मों के साथ दिक्कत यही रही है कि इनका हिंदी सिनेमा के बड़े दर्शक समूह से नाता नहीं जुड़ पाया. एक निर्देशक के तौर पर पुनीत मल्होत्रा को दो फ्लॉप फिल्में बनाने के बावजूद एक ऐसी फ्रेंचाइजी की सीक्वेल मिली, जिसकी पहली फिल्म को युवाओं ने हाथों हाथ लिया था. लेकिन यहां तो बस ऐसा दिखावा है, जिससे दर्शक कहीं भी अपने आप को कनेक्ट नहीं कर पाते.

एक्शन, प्यार, दोस्ती से भरपूर इस फिल्म में स्टोरी, एक्टिंग, संवाद के नाम पर देखने को कुछ नहीं है. फिल्म की लोकेशन कुछ जगह काफी अच्छी है, जो सुखद लगती है. यदि आप सिर्फ टाइम पास के फिल्म लिए देखते हैं तो भी इस फिल्म को देखना टाइम वेस्ट होगा!


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