अयोध्या विवाद: सुप्रीम कोर्ट ने दिया मध्यस्थता का मौका


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सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या जमीन विवाद की सुनवाई को 5 मार्च तक के लिए टाल दिया है. आज सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि हमारे विचार में दस्तावेजों की अनूदित प्रतियां सभी पक्षों को उपलब्ध कराई जाएं.

कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर एक फीसदी भी संभवना है तो मध्यस्थता की जानी चाहिए. कोर्ट ने पक्षकारों से यह भी जानना चाहा कि क्या सभी पक्ष विवाद को सुलझाने के लिये मध्यस्थता की संभावना तलाश सकते हैं.

सुप्रीम कोर्ट 5 मार्च को फैसला लेगी कि अदालत का समय बचाने के लिए मामले को कोर्ट की निगरानी में मध्यस्थता के जरिए सुलझाया जा सकता है या नहीं. इससे पहले सभी पक्षकारों को बताना होगा कि वे मामले में समझौता चाहते हैं या नहीं.

राजनीतिक रूप से अति संवेदनशील राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद की सुनवाई में पांच जजों की संविधान पीठ शामिल है. इस संविधान पीठ में मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एसए बोबडे, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर हैं.

कोर्ट में जस्टिस बोबड़े ने अपनी राय रखते हुए कहा, यह कोई निजी संपत्ति को लेकर विवाद नहीं है. अगर समझौता के जरिए एक फ़ीसदी भी सुलझने की संभावना है तो उसकी कोशिश होनी चाहिए.

पिछली सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा था कि विवाद से जुड़े 50 ट्रंक दस्तावेज हैं. ये दस्तावेज संस्कृत, अरबी, उर्दु, फारसी और हिंदी में है. इन दस्तावेजों का अनुवाद होना है.

शीर्ष अदालत ने इससे पहले 29 जनवरी को प्रस्तावित सुनवाई को 27 जनवरी को रद्द कर दिया था क्योंकि न्यायमूर्ति बोबडे उस दिन उपलब्ध नहीं थे.

इस मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2010 के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 14 अपीलें दाखिल की गयी हैं. चार दीवानी मामलों में दिए गए इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले में कहा गया था कि अयोध्या में 2.77 एकड़ जमीन को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच बराबर-बराबर बांट दिया जाए.

इससे पहले बीती 25 जनवरी को पांच जजों की पीठ का पुनर्गठन किया गया था. क्योंकि पहले पीठ में शामिल रहे न्यायमूर्ति यूयू ललित ने मामले में सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था.

मौजूदा स्थिति के अनुसार, 2.67 एकड़ जमीन विवादित है और इसके चारों ओर 67 एकड़ जमीन है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में विवादित जमीन सहित इस 67 एकड़ जमीन पर यथास्थिति बना रखी है. इससे पहले केंद्र गैर विवादित भूमि को सुप्रीम कोर्ट से मांग चुका है.


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