खाते में सीधे पैसे भेजने वाली योजनाओं को लेकर दायर याचिका पर चुनाव आयोग को नोटिस


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चुनाव के समय ‘डायरेक्ट कैश ट्रांसफर(डीबीटी)’ संबंधित एक जनहित याचिका के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस भेजकर चुनाव आयोग से स्पष्टीकरण मांगा है. पीआईएल में आरोप लगाया गया है कि मतदान के समय कैश ट्रांसफर बिना बजट के किया गया है.

लाइव लॉ में छपी खबर के मुताबिक पीआईएल में आम चुनाव के समय सरकार की ओर से घोषित और लागू की गई डीबीटी योजनाओं को असंवैधानिक और भ्रष्ट चुनाव व्यवहार के तौर पर चिह्नित करने की अपील की गई है.

इसके साथ ही पीआईएल में सुप्रीम कोर्ट से चुनाव आयोग को कल्याणकारी योजनाओं और उपहार आदि देने संबंधी नियमों को लेकर गाइडलाइन जारी करने के निर्देश देने की अपील की गई है.

यह पीआईएल आंध्र प्रदेश के इल्लुरु विधानसभा से जनसेना पार्टी के उम्मीदवार डॉक्टर पेंटापति पुल्ला राव ने दायर की है.

पीआईएल में कहा गया है कि केन्द्र सरकार की पीएम किसान सम्मान निधि योजना के साथ-साथ आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल की सरकारों की योजनाओं से सत्तासीन पार्टी को गलत तरीके से चुनाव में फायदा पहुंचा है.

पीएम किसान सम्मान निधि योजना के तहत साल में तीन किस्तों में 6,000 रुपये प्रति किसानों को देने की योजना है. यह योजना चुनाव से ठीक तीन महीने पहले एक दिसंबर 2018 को शुरू हुई थी. योजना के तहत दूसरी किस्त की राशि 2,000 रुपये आम चुनाव के मध्य में अप्रैल महीने में किसानों के एकाउंट में डीबीटी किए गए थे.

याचिकाकर्ता अर्थशास्त्री राव ने पीआईएल में कहा है कि आंध्र प्रदेश की सरकार की ओर से चुनाव के समय लाभार्थियों के एकाउंट में पैसे भेजे गए थे.

चुनाव आयोग की ओर से गाइडलाइन जारी नहीं किए जाने की वजह से आंध्र प्रदेश सरकार ने पसुपु कुमकुमा योजना के तहत 94 लाख महिला स्वयं सहायता समूह को प्रति समूह 10,000 रुपये के हिसाब से 9400 करोड़ रुपये भेजे. यह योजना जनवरी 2019 में लागू की गई थी.

इसके साथ ही पश्चिम बंगाल, झारखंड और तेलंगाना सरकार की ओर से भी कुछ इसी तरह की योजनाएं चुनाव के समय घोषित की गईं.

जेएनयू और शिकागो विश्वविद्यालय के छात्र रहे आवेदनकर्ता के मुताबिक ऐसे कैश ट्रांसफर आदर्श चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन करते हैं. जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 के सेक्शन 123(1) के तहत वोट पाने के लिए कोई उपहार देने और उम्मीदवार या उनके एजेंट की ओर से किए गए वादे को घूस देने की श्रेणी में रखा गया है.

आवेदनकर्ता कहते हैं कि चुनाव के समय कैश ट्रांसफर जैसी योजनाएं जनप्रतिनिधित्व कानून के तहत भ्रष्ट आचरण के तहत आती हैं.

याचिका में साल 2013 में सुब्रमण्यम बालाजी बनाम तमिलनाडु सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए चुनाव से ठीक पहले सरकार की ओर से दिए जाने वाले उपहारों के मामलों में गाइडलाइन जारी करने के निर्देश दिए जाने की मांग की गई है.

याचिका में कहा गया है कि बिना बजट के कैश ट्रांसफर किए गए हैं जिसकी वजह से वेतन में देरी सहित कई अन्य सरकारी कामों में रुकावट आईं हैं.

याचिका में उपहार, डीबीटी सहित अन्य कल्याणकारी योजनाएं जो स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों पर प्रभाव डालती हैं, को लागू करने के लिए न्यूनतम छह महीने का समय निर्धारित करने के लिए दिशा-निर्देश देने की मांग की गई है.


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