सभी के लिए भोजन की मांग करने वाली याचिका पर विचार करेगा सुप्रीम कोर्ट


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सुप्रीम कोर्ट उस याचिका पर विचार करने के लिए राजी हो गया है, जिसमें कहा गया है कि भूखमरी से जीवन के अधिकार का उल्लंघन और समाज की गरिमा को ठेस पहुंचती है. साथ ही याचिका में भूखमरी से निपटने के लिए देश भर में सामुदायिक रसोइयां स्थापित करने जैसे रेडिकल कदम उठाने की मांग की गई है.

जस्टिस एनवी रमन्ना के नेतृत्व वाली एक बेंच ने सामाजिक कार्यकर्ताओं अरुण धवन, ईशान धवन और कुंजन सिंह की तरफ से डाली गई याचिका पर सरकार को नोटिस भेजा है. याचिका में तमिलनाडु की ‘अम्मा उन्वागम’, राजस्थान की ‘अन्नपूर्णा रसोई’, कर्नाटक की ‘इंदिरा रसोई’, आंध्र प्रदेश की ‘अन्ना कैंटीन’, दिल्ली की ‘आम आदमी कैंटीन’, झारखंड की ‘मुख्यमंत्री दाल-भात’ और ओडिशा की ‘आहार सेंटर’ योजना का जिक्र है.

याचिका में कहा गया है, “जहां देश में कुपोषण से मरने वाले बच्चों और वयस्कों का आंकड़ा मौजूद है, वहीं भूखमरी से मरने वालों का कोई आधिकारिक आंकड़ा मौजूद नहीं है. 2018 की फूड एंड एग्रीकल्चर रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत में करीब 20 करोड़ लोग कुपोषित हैं. पूरी दुनिया के 24 प्रतिशत कुपोषित लोग भारत में रहते हैं. भारत में कुपोषण विश्व और एशिया दोनों के स्तर से करीब 15 प्रतिशत अधिक है.”

याचिका में सुप्रीम कोर्ट से यह मांग की गई है कि वो मुख्य सचिवों को देश भर में सामुदायिक रसोइयों को ठीक ढंग से चलाने और यह सुनिश्चत करने के लिए योजना तैयार करने का आदेश दे कि कोई भी व्यक्ति भूखे पेट ना सोए. याचिका में केंद्र सरकार द्वारा एक ऐसे नेशनल फूड ग्रिड का निर्माण करने की मांग की गई है जो सार्वजनिक वितरण प्रणाली से अधिक प्रभावी हो.

याचिका में कहा गया, “2017 में हुए राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वे में यह सामने आया है कि देश में करीब 19 करोड़ लोग हर रात भूखे पेट सोने के लिए मजबूर थे. इससे भी अधिक स्तब्ध करने वाला आंकड़ा यह था कि हर दिन कुपोषण की वजह से देश में पांच वर्ष से कम उम्र के 4500 बच्चे मौत के मुंह में समा गए. इस तरह भूखमरी की वजह से हर साल देश में अकेले तीन लाख बच्चों की मौत हुई.”

याचिका में आगे कहा गया कि देश में भूखमरी और कुपोषण से निपटने के लिए कई योजनाओं के चलन में होने के बाद भी देश इन समस्याओं में बुरी तरह फंसा हुआ है. इसके लिए अब और रेडिकल योजनाओं की जरूरत है.


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