आरक्षित श्रेणी में नियुक्ति के लिए विभाग होगा आधार
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि देश के केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति में आरक्षण विश्वविद्यालय में कुल सीटों की संख्या के आधार पर नहीं, बल्कि विभाग के आधार पर दिया जाएगा. इस तरह उसने 7 अप्रैल, 2017 के इलाहाबाद हाई कोर्ट के निर्णय को बरकरार रखा है.
केंद्र सरकार ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस निर्णय के खिलाफ याचिका दायर की थी, लेकिन जस्टिस यू यू ललित और इंदिरा बनर्जी की पीठ ने याचिका को खारिज कर दिया.
केंद्र ने यह याचिका पिछले साल 5 मार्च को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा जारी किए गए उस आदेश के बाद जारी की थी जिसमें यूजीसी ने विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की आरक्षित पदों पर नियुक्ति विश्वविद्यालय में आरक्षित श्रेणी में खाली कुल सीटों की संख्या के बजाय विभाग के आधार पर करने की बात कही थी. यूजीसी ने अपने इस आदेश का आधार इलाहाबाद हाई कोर्ट के निर्णय को ही बनाया था.
हालांकि सरकार ने यूजीसी के आदेश को वापस नहीं लिया लेकिन उसने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने तक विश्वविद्यालयों में नियुक्ति प्रक्रिया रोक देने के लिए कहा था. उसने यूजीसी के आदेश को पलटने के लिए एक विधेयक भी कैबिनेट की मंजूरी के लिए भेजा था, लेकिन अब तक इस पर भी कोई प्रगति नहीं हुई है.
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि अगर विश्वविद्यालय में खाली कुल सीटों को आरक्षण का आधार बनाया जाए तो इससे कुछ विभागों में केवल आरक्षित श्रेणी के शिक्षक रह जाएंगे और कुछ में केवल सामान्य श्रेणी के. यह विसंगति संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन होगी.
केंद्र सरकार की ओर से सालिसिटर तुषार मेहता ने तर्क दिया कि विभाग को आरक्षण का आधार बनाने से ऐसी स्थिति आ जाएगी जहां कुल सीटों की संख्या इतनी होगी ही नहीं कि उनमें सभी आरक्षित श्रेणियों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो सके.
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील को खारिज करते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट के निर्णय को तार्किक माना.
जानकारों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से केंद्रीय विश्वविद्यालयों में एससी, एसटी और ओबीसी श्रेणियों के शिक्षकों की संख्या में भारी गिरावट आएगी.
वहीं इस पूरे मामले में एक बार फिर केंद्र सरकार की मंशा पर सवाल गहराएंगे. इन सवालों का आधार इसलिए मजबूत है क्योंकि केंद्र की मोदी सरकार के कार्यकाल में ही यूजीसी ने आरक्षण के लिए विभाग को आधार बनाने का आदेश जारी किया.
उसने इस आदेश को वापस नहीं लिया. फिर इस आदेश को पलटने वाले विधेयक को भी वह संसद में पेश नहीं कर सकी. अब सुप्रीम कोर्ट ने भी उसकी याचिका खारिज कर दी.