भारत में तीन वर्षों में लिंगानुपात घटकर 896 हुआ: सीआरएस सर्वे
विश्व के दूसरे सबसे अधिक जनसंख्या वाले देश भारत में जहां एक ओर जन्म दर में कमी आई है वहीं दूसरी ओर बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं के चलते मृत्यु दर में भी गिरावट दर्ज की गई है.
लेकिन 2012-17 के बीच भारत में लिंगानुपात में गिर गया है. 2014-2016 में लिंगानुपात 898 था जो 2015-2017 में घटकर 896 हो गया.
लिंगानुपात प्रति 1000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या के आधार पर नापा जाता है. 2011 जनगणना के अनुसार प्रति 1000 लड़कों पर 940 लड़कियां थीं.
2017 सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (सीआरएस) के सर्वेक्षण से पता चलता है कि कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ में लिंगानुपात सबसे अधिक (961) रहा. जबकि बीजेपी शासित हरियाणा में यह सबसे कम (833) दर्ज किया गया.
इस रिपोर्ट में 31 दिसंबर, 2017 तक के आंकड़े शामिल हैं. यह सर्वेक्षण 2018 में किया गया था जिसके निष्कर्ष 2019 में सार्वजनिक किए गए हैं. सर्वेक्षण के मुताबिक, 2016 में राष्ट्रीय स्तर पर प्रति हजार जन्म दर यानी क्रूड बर्थ रेट (सीबीआर) 20.4 थी जो अगले एक साल में 0.2 अंकों तक घटकर 20.2 हो गई.
26.4 के साथ बिहार में सीबीआर सबसे अधिक रहा. जबकि केरल में सीबीआर सबसे कम (14.2) दर्ज किया गया. सर्वेक्षण के मुताबिक साल 2012 से 2017 के बीच देश के सीबीआर में 1.4 अंकों की कमी आई है. ग्रामीण क्षेत्र में सीबीआर 1.3 अंक नीचे गया जबकि शहरी क्षेत्रों में सीबीआर 0.6 अंक नीचे गया.
दूसरी तरफ, 2017 में राष्ट्रीय स्तर पर प्रति हजार मृत्यु दर यानी क्रूड मोर्टलिटी रेट (सीडीआर) 6.3 थी. कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ में यह सबसे अधिक (7.5) रही, वहीं आम आदमी पार्टी शासित दिल्ली में यह 3.7 दर्ज की गई.
रिपोर्ट में कहा गया है कि बीते पांच वर्षों में राष्ट्रीय मृत्यु दर में 0.7 अंकों की गिरावट आई है.
सर्वेक्षण से पता चलता है कि महिला मृत्यु दर में 0.5 अंकों और पुरुष मृत्यु दर में 0.1 अंकों की कमी आई है. बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं की वजह से 1971 से 1981 के बीच भारत में मृत्यु दर 14.9 से घटकर 12.5 हो गई थी. इसके बाद मृत्यु दर में गिरावट का यही क्रम आगे आने वाले वर्षों में भी जारी रहा, 1991 से 2017 के बीच मृत्यु दर में 9.8 से घटकर 6.3 रह गई.
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स्वास्थ्य क्षेत्र में बीते वर्ष बीजेपी सरकार ने पिछड़े और गरीब लोगों के लिए सरकार ने आयुष्मान भारत योजना की शुरुआत की थी, जबकि यह आंकड़ें 2017 की स्थिति पर रोशनी डालते हैं. ऐसे में योजना लागू होने के बाद स्थिति में कितना सुधार हुआ, यह इस रिपोर्ट से नहीं पता चलता है.
भारत में शिशु मृत्यु दर में भी गिरावट देखने को मिली है. शिशु मृत्यु दर (आईएमआर) के तहत जन्म के पहले, दूसरे, तीसरे और चौथे साल में अपनी जान गवां देने वाले बच्चों की संख्या का आंकलन किया जाता है. 2016 में आईएमआर 34 था जो अगले साल घटकर 33 हो गया. 2016-17 के बीच आईएमआर में 1 अंक की कमी आई.
कांग्रेस शासित मध्य प्रदेश में आईएमआर सबसे अधिक (47) रहा जबकि लेफ्ट फ्रंट की सरकार वाले केरल में यह सबसे कम (10) रहा. 2012 के बाद सालाना 1.8 अंकों की रफ्तार से घटकर आईएमआर 2017 में 33 रह गया. 2012 में यह 42 था, ऐसे में आईएमआर में पांच साल के भीतर 9 अंकों की गिरावट देखी गई.
शिशु मृत्यु दर कम करने पर स्वास्थ्य योजनाओं का विशेष जोर होता है. 1971 में प्रति हजार जीवत बच्चों पर 129 की मौत हुई थी. यह आंकड़ा 1981 में घटकर 110 हो गया. साल 1991 में प्रति हजार जीवत बच्चों पर 80 बच्चों की मौत हुई थी. यह आंकड़ा 2017 में घटकर 33 रह गया. 2017 में 47 फीसदी मौतें स्वास्थ्य संस्थानों में हुई.
सर्वेक्षण में ग्रामीण शिशु मृत्यु दर का बेहतर होना बताता है कि शहरी क्षेत्रों की तुलना में वहां स्थिति बेहतर है. 2012 से 2017 के बीच शहरी क्षेत्र में शिशु मृत्यु दर में 5 अंकों की कमी आई जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह कमी 9 अंकों की रही.
राष्ट्रीय स्तर पर प्रति 30 में से एक नवजात बच्चा, ग्रामीण क्षेत्र में प्रति 27 में से एक बच्चा और शहरी क्षेत्र में प्रति 43 में से एक बच्चा आज भी अपने जन्म के पहले साल में भी दम तोड़ देता है. प्रसव के दौरान स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति पर रिपोर्ट में कहा गया है कि 2017 में प्रसव के दौरान 81.8 फीसदी मां बनने वाली महिलाओं का सरकारी या निजी अस्पतालों में उपचार हुआ.साल 2016 में यह आंकड़ा 80.8 था.