स्वच्छ भारत मिशन: हकीकत से ज्यादा स्वच्छ तस्वीर दिखाते सरकारी आंकड़े


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अगर सरकार की मानें तो देश खुले में शौच से छुटकारा पाने के एकदम करीब है. स्वच्छ भारत मिशन के पोर्टल पर मौजूद आंकड़े कुछ ऐसा ही बयान कर रहे हैं. इन आंकड़ों के मुताबिक देश के कुल 37 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 27 अब खुले में शौच से मुक्त हो चुके हैं.

पोर्टल पर मौजूद सूचना के मुताबिक देश के 98 दशमलव छह फ़ीसदी परिवारों के पास शौचालय उपलब्ध है.

धरातल पर हालात कैसे हैं ये एक अलग मसला है. फिलहाल अभी हम इन आंकड़ों की तुलना एक अन्य गैर लाभकारी शोध संस्था के आंकड़ों से करेंगे. ‘रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर कम्पैसिनेट इक्नॉमिक्स’ (आरआईसीई) नाम की शोध संस्था ने हाल में ही स्वच्छ भारत को लेकर एक सर्वे किया है.

इस सर्वे के मुताबिक उत्तर भारत के चार बड़े राज्यों में अभी 44 फ़ीसदी लोग खुले में शौच करते हैं. इन राज्यों में बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान शामिल हैं. लेकिन अचरज की बात ये है कि सरकार की वेबसाइट के मुताबिक बिहार को छोड़कर बाकी के तीनों राज्य या तो पूरी तरह से खुले में शौच से मुक्ति पा चुके हैं या बड़े पैमाने पर इनके निवासी शौचालय का प्रयोग कर रहे हैं.

स्वच्छ भारत मिशन पोर्टल के मुताबिक मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के गांवों में 100 फ़ीसदी परिवारों के पास शौचालय मौजूद है. जबकि आरआईसीई के सर्वे के मुताबिक इन तीनों राज्यों में सभी परिवारों के पास शौचालय मौजूद नहीं है.

स्वच्छ भारत मिशन के इतर सरकारी आंकड़े भी कुछ अलग ही कहानी कहते हैं. हालांकि ये आंकड़े थोड़ा पहले के हैं. लेकिन हालात जादुई तरीके से बदले ऐसा भी नहीं है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (एनएफएचएस) 2015-16 के आंकड़ों के मुताबिक उत्तर भारत के इन चारों राज्यों के लगभग आधे परिवारों के पास शौचालय उपलब्ध नहीं था.

सरकारी आंकड़ों में स्वच्छ भारत को लेकर जितना खुशनुमा माहौल दिखाया गया है उतना भले ही ना हो, लेकिन सफाई के मामले में बेशक सुधार हुआ है. इस सर्वे में पाया गया है कि बीते कुछ सालों में शौचालय का प्रयोग बढ़ा है. साल 2014 में 37 फ़ीसदी लोगों के पास शौचालय था, जो 2018 में बढ़कर 71 फ़ीसदी हो गया.

इस सर्वे से इस बात का भी खुलासा हुआ है कि 2014 में जिन लोगों के पास शौचालय नहीं था उनमें से 57 फ़ीसदी लोगों के पास 2018 में शौचालय है. इनमें से 42 फ़ीसदी लोगों को शौचालय बनाने में सरकारी सहायता मिली है. इस सर्वे के आंकड़ों में राज्यों के बीच अंतर साफ देखा जा सकता है.

एक तरफ जहां मध्य प्रदेश में 83 फ़ीसदी लोग जिनके पास 2014 में शौचालय नहीं था 2018 में शौचालय की सुविधा ले रहे हैं. दूसरी तरफ बिहार में ये आंकड़ा सिर्फ 37 फ़ीसदी तक पहुंच पाया है.

सिर्फ शौचालय बन जाने भर से स्वच्छता का मिशन तो पूरा होने से रहा इसके लिए उनका प्रयोग भी जरूरी है. आरआईसीई ने अपने सर्वे में शौचालय की उपलब्धता के अतिरिक्त इसके प्रयोग को लेकर भी सवाल रखे थे. इसके परिणाम में साफ हुआ कि इन राज्यों में 2014 के 70 फ़ीसदी के मुकाबले 2018 में 44 फ़ीसदी लोग ही खुले में शौच कर रहे हैं. इनमें सबसे ज्यादा गिरावट मध्य प्रदेश में हुई.

सर्वे से ये बात भी सामने आई है कि शौचालय होने के बावजूद बड़ी संख्या में लोग खुले में शौच भी कर रहे हैं. इन चारों राज्यों में 23 फ़ीसदी ऐसे परिवार हैं जिनके पास शौचालय की व्यवस्था मौजूद है इसके बावजूद ये लोग खुले में शौच कर रहे हैं.
राजस्थान और उत्तर प्रदेश में तो ऐसे लोगों की संख्या में इजाफा हुआ, जो शौचालय होने के बावजूद खुले में शौच के लिए जा रहे हैं.

इस सर्वे से एक बात तो साफ हो गई है कि स्वच्छ भारत मिशन ने शौचालय बनाने में तो कुछ हद तक कामयाबी हासिल की है. लेकिन व्यवहार संबंधी परिवर्तन में कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ है.


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