लोकतंत्र के लिए खतरा हैं नरेन्द्र मोदी: द इकॉनमिस्ट


The Economist openion on Narendra Modi

 

नरेन्द्र मोदी के अधीन भारत की सत्तारूढ़ पार्टी लोकतंत्र के लिए खतरा है. प्रतिष्ठित अंग्रेजी पत्रिका द इकॉनमिस्ट ने अपने संपादकीय में भारत के मतदाताओं से नरेन्द्र मोदी सरकार को हटाने या कम-से-कम गठबंधन की सरकार बनाने को मजबूर करने की अपील की है.

नवउदारवाद समर्थक पत्रिका ‘द इकॉनमिस्ट’ ने नरेन्द्र मोदी के पांच साल के शासनकाल को उम्मीदों से कम खराब बताया है. ऑरेंज एजेंट शीर्षक से छपे संपादकीय में कहा गया है कि नरेन्द्र मोदी समर्थकों की उम्मीदों को पूरा कर पाने में नाकाम रहे हैं. हालांकि वह उतने बुरे नहीं रहे जितना आलोचकों ने अनुमान लगाया था. पांच साल पहले द इकॉनमिस्ट ने नरेन्द्र मोदी को भारत के लिए बेहतर नहीं माना था. नए संपादकीय में द इकॉनमिस्ट ने उन्हें लोकतंत्र के लिए खतरा बताया है.

द इकॉनमिस्ट अपने संपादकीय में कहा है कि पीएम मोदी के पास उपलब्धियों के नाम पर जितना कुछ है उससे कहीं अधिक वह असफलता ढो रहे हैं.

लंदन से प्रकाशित द इकॉनमिस्ट चुनाव से पूर्व दुनियाभर के नेताओं के बारे में अपनी राय रखती है. इस बार भी नरेन्द्र मोदी के लिए द इकॉनमिस्ट की राय नकारात्मक है. यह पत्रिका मुक्त व्यापार, वैश्वीकरण, मुक्त आव्रजन और सांस्कृतिक उदारवाद के समर्थन के लिए जानी जाती है. दुनियाभर में इसके करोड़ों पाठक हैं.

पत्रिका का संपादकीय लिखता है, “नरेन्द्र मोदी पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद के खिलाफ मजबूत नेता के रूप में खुद को प्रचारित करते रहे हैं.”

साल 1843 से लगातार प्रकाशित पत्रिका के संपादकीय में पाकिस्तान पर हवाई हमले के केन्द्र सरकार के फैसले को लापरवाही भरा कदम बताया गया है. पत्रिका के संपादकीय में कहा गया है कि परमाणु शक्ति संपन्न पड़ोसी देश पर हवाई हमले का अंत एक बड़ी त्रासदी के साथ हुआ.

कश्मीर की खराब हालात के लिए पत्रिका ने नरेन्द्र मोदी की सख्त दिखावे की छवि को जिम्मेदार ठहराया है. संपादकीय कहता है, “नरेन्द्र मोदी की सख्त दिखने की नीति विवादित जम्मू-कश्मीर में आपदा बन गई है, जहां उन्होंने अलगावादी विद्रोहियों को शांत करने के बजाय उन्हें और भड़काने का काम किया है, ठीक उसी समय उन्होंने प्रदर्शनों को बर्बरता के साथ दबाकर उदारवादी कश्मीरियों को भी दूर किया है.”

नरेन्द्र मोदी की ‘छद्म उग्रता’ की वजह से आर्थिक नीति भी प्रभावित हुई है. पत्रिका ने नोटबंदी, जीएसटी और दिवालिया कोड को सरकार की असफलता माना है.

पत्रिका का संपादकीय कहता है, “साल 2016 में नरेन्द्र मोदी ने मनी लॉन्ड्रिंग पर रोक लगाने के लिए अचानक से करीब-करीब सारे नोट को अमान्य करार दिया. यह योजना फेल हुई और इसकी वजह से किसान और छोटे व्यापारियों को भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ा. उन्होंने देश भर में जीएसटी और दिवालिया कोड को लागू किया. जिसका प्रभाव अर्थव्यवस्था पर पड़ा. कांग्रेस सरकार के 10 साल की तुलना में नरेन्द्र मोदी के शासनकाल में अर्थव्यवस्था में मामूली वृद्धि देखने को मिली जबकि इस दरम्यान तेल के दामों में वैश्विक कमी रही है.”

पत्रिका ने रोजगार दे पाने में नरेन्द्र मोदी को असफल बताया है. संपादकीय कहता है कि पांच साल में बेरोजगारी बढ़ी है जो उनके वादों के विपरीत है.

पत्रिका का संपादकीय कहता है कि भारतीय मोदी सरकार की आलोचना कम ही सुन पाते हैं क्योंकि प्रेस और तमाम विरोधी स्वरों को दबा दिया गया है. इसके साथ ही संस्थानों की स्वायत्तता को खत्म करने की कोशिशें तेज हुई हैं.

संपादकीय कहता है, “सरकार की आलोचना भारतीय लोगों के बीच प्राय: कम पहुंच पा रही है क्योंकि नरेन्द्र मोदी ने प्रेस को डराया है, चापलूसों को ईनाम दिया जा रहा है जबकि आलोचना करनेवालों को भूखा मारा(आर्थिक रूप से कमजोर करने), नियंत्रित और परेशान किया जा रहा है. जबकि वह खुद बड़े इवेंट में ही शामिल होते हैं. उनके  कुप्रयासों में प्रतिष्ठित सरकारी संस्थाओं को बरगलाना, केन्द्रीय बैंक आरबीआई के प्रमुख की गरदन मरोड़ना, टैक्स संग्राहकों (आयकर विभाग, आईडी आदि) को राजनीतिक विरोधियों के पीछे लगाना, विश्वविद्यालयों में (भगवा) विचारकों की नियुक्ति और राजनीति में सेना का इस्तेमाल शामिल है.”

संपादकीय में कहा गया है कि नरेन्द्र मोदी की सबसे बड़ी गलती हिन्दू-मुसलमान के बीच तनाव को लगातार हवा देना है. उन्होंने देश के सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री एक हिन्दू धर्मगुरू को बनाया जिसने चुनाव प्रचार को दो विश्वासों की लड़ाई के तौर पर पेश किया.

संपादकीय में लिखा है, “नरेन्द्र मोदी के सबसे करीबी(अमित शाह) ने पड़ोसी देश बांग्लादेश से आने वाले मुसलमान शरणार्थियों को ‘दीमक’ तक कह डाला जबकि बांग्लादेशी हिन्दू शरणार्थियों का खुले ह्दय से स्वागत किया.

पत्रिका अपने संपादकीय में आगे लिखती है, “आम चुनाव में बीजेपी ने एक ऐसे उम्मीदवार को चुनावी मैदान में उतारा है जिसके ऊपर बम विस्फोट करने के लिए साजिश रचने का आरोप है, इस विस्फोट में छह मुसलमानों की मौत हो गई थी.”

नरेन्द्र मोदी और उनकी पार्टी की ओर से लगातार दिए जा रहे भड़काऊ भाषण की आलोचना करते हुए संपादकीय में कहा गया है कि यह सब न केवल घिनौना है बल्कि खतरनाक भी है.

नरेन्द्र मोदी के शासनकाल में स्वघोषित गौरक्षकों के द्वारा मुसलमानों को पीट-पीटकर मारने के चलन का जिक्र करते हुए संपादकीय में कहा गया है कि भारत की एक बड़ी आबादी खुद को दोयम दर्जे का नागरिक महसूस कर रही है.

संपादकीय कहता है, “भारत के अलग-अलग हिस्सों में रहकर पढ़ाई करने वाले कश्मीरी छात्रों की हिंसक राष्ट्रवादी भीड़ ने पिटाई की है.”

संपादकीय में कहा गया है कि केवल कांग्रेस ही बीजेपी को टक्कर देने में सक्षम दिख रही है. संपादकीय कहता है, “बीजेपी की एकमात्र राष्ट्रीय प्रतिद्वंदी कांग्रेस हो सकती है, भले ही कांग्रेस भ्रष्टाचारी हो, कम-से-कम वह भारतीयों को आपस में नहीं लड़वाती है.”

पत्रिका कहती है कि कांग्रेस पार्टी एक प्रभावशाली चुनावी घोषणापत्र के साथ आई है, इसमें हाशिए पर रह रहे लोगों के उत्थान के लिए विचार करने योग्य नीतियों और योजनाओं का जिक्र है. राहुल गांधी की तारीफ करते हुए संपादकीय में लिखा गया है कि राहुल गांधी ने पार्टी का आधुनिकीकरण किया है, वह बीजेपी की तुलना में भारतीय के वोट पाने के ज्यादा हकदार हैं.

संपादकीय में कहा गया है कि आम चुनाव में कांग्रेस और क्षेत्रीय सहयोगियों के द्वारा उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन करने की स्थिति में कांग्रेस गठबंधन में सरकार बना सकती है. संपादकीय में संभावना जताई गई है कि बीजेपी को सरकार बनाने के लिए सहयोगी दलों का समर्थन लेना पड़ सकता है. ऐसे हालात में सहयोगी दलों के बीच खींचतान से बीजेपी की मनमानी पर अंकुश लग सकता है.


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