दलित-आदिवासियों को बड़े पदों में हिस्सेदारी नहीं, ज्यादातर सफाईकर्मी हैं दलित


The majority of Dalits are indulged in the cleaning and leather work

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पेशे के मामले में जाति विशेष की हिस्सेदारी अब भी कमोबेश जस-की-तस बनी हुई है. दलित अब भी सफाई और चमड़े के कामों के पर्याय बने हुए हैं. गैर कृषि कामगारों की हाल में हुई गणना से पता चलता है कि अब भी निम्न माने जाने वाले कामों में अनुसूचित जाति(एससी) और जनजाति(एसटी) समुदाय के लोग आबादी की तुलना में अधिक हैं. वहीं उच्च पदों पर गैर एससी और एसटी समुदाय का वर्चस्व बना हुआ है.

प्राइवेट सेक्टर में कॉरपोरेट मैनेजर और बिजनेस प्रोफेशनल जैसी निर्णय लेने की क्षमता वाली नौकरियों में एससी और एसटी समुदाय के लोगों का प्रतिनिधित्व नहीं के बराबर है.

अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी रिपोर्ट के मुताबिक 93 फीसदी कॉरपोरेट मैनेजर गैर एससी-एसटी समुदाय से आते हैं.

शिक्षक और स्वास्थ्य कर्मियों के मामले में जनसंख्या के अनुपात में एससी-एसटी का प्रतिनिधित्व अन्य सेक्टर की अपेक्षा बेहतर हुआ है. शिक्षा में 8.9 फीसदी और स्वास्थ्य कर्मियों के तौर पर 9.3 फीसदी एससी-एसटी काम कर रहे हैं.

एससी की जनसंख्या कुल आबादी का 16.2 प्रतिशत है. जबकि देश में 8.2 फीसदी एसटी हैं.

शिक्षा और स्वास्थ्य दोनों सेक्टर में एसटी समुदाय का प्रतिनिधित्व जनसंख्या के अनुपात में करीब-करीब बराबर है.

रिपोर्ट के मुताबिक, “पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता है कि एससी-एसटी समुदाय से जुड़े होने का प्रभाव पेशा के चुनाव पर पड़ता है. या हैसियत उनके काम की प्रकृति को निर्धारित करती है. भारत के मामले में जाति से हैसियत तय होती है. लेकिन जाति और पेशा अब भी एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं.”

फिलहाल 13.7 फीसदी एससी और 9.3फीसदी एसटी पुलिसकर्मी हैं. जो अन्य सेक्टर के मुकाबले काफी संतोषजनक प्रतिनिधित्व है.

मिड-डे-मील में दलित रसोईयों की नियुक्ति को लेकर भेदभाव की आवाजें उठती रही हैं. जबकि खाना बनाने के काम में एससी अपनी जनसंख्या के अनुपात में काफी अधिक हैं.  पंजाब में 44 फीसदी दलित खाना बनाने का काम करते हैं. वहीं उत्तर प्रदेश में यह 21 फीसदी है.

गैर-कृषि मजदूरों में सबसे बड़ा तबका एससी-एसटी समुदाय का है.

उत्तर प्रदेश में 46,000 लोग चमड़े के कामों से जुड़े हैं. इनमें 41,000 कामगार चर्मकार, धुनिया और जाटव जैसी जातियों से आते हैं. राजस्थान में 76 हजार सफाई कर्मियों में करीब 52 हजार मेहतर और चुरा जाति से हैं.

शिक्षाकर्मी, स्वास्थ्यकर्मी और पुलिस कर्मी जैसी मध्यम दर्जे की नौकरियों में भले ही एससी और एसटी की हिस्सेदारी बढ़ी है लेकिन सफाई और चमड़े से जुड़े कामों में अब भी बहुसंख्यक एससी समुदाय के लोग ही हैं. पैटर्न यह भी बताता है कि निम्न स्तर के समझे जाने वाले इन कामों में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया है.

उत्तर प्रदेश में 35-59 साल के सफाई कर्मियों में 63.4 फीसदी बाल्मीकि समुदाय से हैं. वहीं 15-34 साल की उम्र में भी यह 62 फीसदी के करीब है.

यही हाल चमड़ा उद्योग में भी है. इस उद्योग में 35-59 साल के 88.2 फीसदी कामगार चमार, धुसिया और जाटव जैसी एससी जातियों से हैं. 15-34 साल के युवाओं में भी यह फीसदी 88.2 है.

हिन्दी भाषी राज्यों मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी कमोबेश यही हालात हैं.


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